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हलषष्ठी पर्व पर माताओं ने संतानों की दीर्घायु व् सफलता के लिये रखा व्रत

हलषष्ठी पर्व पर माताओं ने संतानों की दीर्घायु व् सफलता के लिये रखा उपवास

खल्लारी-ग्रामीण क्षेत्रों में हलषष्ठी पर्व पर माताओं ने अपने संतानों की दीर्घायु और सफलता के लिये व्रत रखा व् सगरी (कुण्ड) बनाकर हलषष्ठी देवी माता की विशेष पुजा अर्चना की । इस अवसर पर पण्डितों ने हलसष्ठी पर्व के सम्बन्ध में छः अध्यायों के कथा का विधि पूर्वक कथा वाचन भी किया।

पुजा अर्चना पश्चात माताओं ने अपने बच्चो को छह बार पोता भी लगाये। जहां यह परम्परा संतानों को नजर न लगे इस उद्देश्य से किया जाता है। छत्तीसगढ के परम्परा अनुरूप श्रद्धा पूर्वक महिलाओं ने हलषष्ठी पर्व पर भोजन में पसहर चावल, छः प्रकार के भाजी की सब्जी, दोना पत्तल में खाना, पीतल के बर्तन में प्रसाद बनाते है इसके अलावा भैंस का दूध, भोजन में घी, दही का भी उपयोग किया जाता है।

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हलषष्ठी पर्व पर माताओं ने संतानों की दीर्घायु व् सफलता के लिये रखा उपवास

द्वापर युग में माता देवकी ने भी रखा था व्रत-

हलषष्टी (कमरछट) पर्व के संबंध में खल्लारी के महराज भवानी दास वैष्ण ने बताया की इस पर्व से यह कहानी जूडी हूई है, जहां द्वापर यूग में माता देवकी स्वंय यह व्रत रखी थी। क्योंकि उस समय राजा कंस अपने आप को मौत से बचाने के उद्देश्य से देवकी के सभी संतानों को जान से मारते जा रहे थे।

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इस समस्या पर देव ऋषी नारद ने माता देवकी को कमरछट (हलषष्टी) व्रत रहने का सलाह दिया और माता देवकी ने देव ऋषी नारद का सलाह मान कर श्रद्धा भाव से व्रत रही,

जिससे व्रत के अदभूत चमत्कार से भगवान कृष्ण बच गये

और इसके पश्चात कुछ वर्षों बाद भगवान कृष्ण और बलराम दोनों भाई,

राजा कंस को मार द्वापर युग में कंस के अत्याचार का खात्मा कर दिया।

इसके बाद से सभी माताये अपने-अपने संतानों के खुशहाली और सुख शांति

के लिये इस व्रत को बडे ही खुशी व श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाते आ रहे है।

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