Home आलेख आगामी चुप्पी,पेट,भोजन और हालात,वापसी व् बचपन और लाल गुलाब-लघु कथा

आगामी चुप्पी,पेट,भोजन और हालात,वापसी व् बचपन और लाल गुलाब-लघु कथा

प्रसिद्ध लघु कथाकार महेश राजा की पढ़िए लघुकथा

महासमुंद:-जिले के प्रसिद्ध लघु कथाकार महेश राजा की लघु कथाए- आगामी चुप्पी,पेट,भोजन और हालात,वापसी व् बचपन और लाल गुलाब सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है ।

आगामी चुप्पी-स्कूल से आते ही केवल ने जूते और बस्ते को एक तरफ फेंका।फिर मेज पर रखा मम्मी का मोबाइल उठाथा और गेम खेलना शुरु कर दिया। राशि कामकाजी महिला है।उसे अनेक काम थे।उसने केवल को आवाज लगा कर कपड़ें बदलने और हाथ-मुँह धोने के लिया कहा। केवल ने अनसुना कर दिया।उसका पूरा ध्यान मोबाइल पर था। राशि ने दूध गर्म कर उसमें बोर्नविटा मिलाया और फिर से केवल को आवाज दी।केवल भीतर के कमरे में बिस्तर पर पसर कर गेम खेल रहा था।

राशि सुलझी महिला थी।वह ड़ाँट-फटकार या मारपीट में विश्वास न ही रखती थी।वह दूध का गिलास लेकर भीतर के कमरे में पहुँची।केवल को मोबाइल में उलझा देखकर बोली,”यह क्या बेटा आपने कपड़े भी नहीं बदले और हैंडवॉश भी नहीं किया और मोबाइल हाथ में ले लिया।यह ठीक नहीं।”केवल बेध्यानी में कह उठा-“आपको क्या? राशि ने पूर्ण संतुलन से कहा,”बेटे हम आपकी मम्मा है। हमें तो आपकी परवाह रहेगी न। दिन भर मोबाइल पर नजरें रमाये रखने से आँखें खराब हो जायेगी। फिर आँखों में मोटे मोटे चश्मे लग जायेंगे।चलिये,अब हाथ-मुँह धो लिजिये।”

सहारा इंडिया के पीड़ित निवेशको ने प्रभारी मंत्री लखमा से लगाई न्याय की गुहार

आगामी चुप्पी,पेट,भोजन और हालात,वापसी व् बचपन और लाल गुलाब-लघु कथा

इस बार केवल ने मोबाइल बंद कर गुस्से से पलंग पर पटका और कहा-“आप भी तो दिन भर मोबाइल पे रहती हो ,आपको कुछ हुआ?फिर हमें क्यों डाँटती हो और मना करती हो।” इस पर राशि मौन हो गयी। वह इस बात का क्या जवाब देती? अगर ये कहती कि उसको मोबाइल पर बहुत सारे काम करने पड़ते है, इस बात को आज की पीढ़ी स्वीकार कर पाती?शायद नहीं!

परंतु बच्चे के लिये क्या सही है क्या गलत।इसका निर्धारण और हल माता- पिता को ही करना है।यह कठिन जरूर है।एक यक्ष प्रश्न की तरह भी है।पर,हम सबको इसका हल ढ़ूंढ़ ना ही होगी।नहीं तो हमेंशा के लिये चुप्पी साध लेनी होगी। भावी चुप्पी जो बड़ी धातक है।

पेट,भोजन और हालात

रिक्शा वाला रमुआ जैसे ही घर पहुंँचा और अभी हाथ -पांँव धो ही रहा था कि पत्नी रामी ने आकर शिकायत शुरू कर दी,आज फिर ,दुकानदार ने सड़ा हुआ आटा और खराब चावल दे दिये। रमुआ ने लोटा एक तरफ रखा ,फिर हंँसते हुए कहा -“,भागवान! यही मिल रहा है,वह कम है क्या?उधार भी तो बहुत चढ गया है। महंँगाई ससुरी बढ़ती ही जा रही है,और सवारी अब ई- रिक्शा मे बैठना पसंद करे है। हमारा तो बुरा हाल है, कोई बैठ भी जाये तो मौल भाव शुरु कर देता है ।”-एक लंँबी ऊंसाँस लेकर कहा।कुछ देर के मौन के बाद फिर कहा,

-“,चल,जो कुछ बना है परोस दे. क्या पता कल को यहभी नसीब न हो।” पर,हांँ,चुनाव सर पर है,विरोधी पार्टी वाले महंगाई और टैक्स विरोधी जुलूस निकालने वाले है।अच्छा काम मिलने की उम्मीद है।कुछ रूपये मिल जाये तो किसी अच्छी दुकान से अच्छे चावल ला दूंगा।”

जीवन रूकने का नहीं चलने का है नाम को साबित किया बीजाटोला के लखन सिंह ने

आगामी चुप्पी,पेट,भोजन और हालात,वापसी व् बचपन और लाल गुलाब-लघु कथा

चावल और भाजी के साथ गोंदली खाते हुए रमुआ फिर बोला-“,ये नेता लोग हर चुनाव मे गरीबी हटायेंगे का वादा करते है,पर हर बार जीतने के बाद भूल जाते है।हमारा तो कोई माई बाप ही न रहा।सोचता हूं, इस बार किसी को भी वोट न दूं।सभी एक जैसे ही है।”

भोजन कर जल्दी से मैले गमछे से हाथ पोंछते हुए अपना सायकिल रिक्शा निकाल कर रैली वाले स्थान की ओर बढ चला।रामी दरवाजे तक आयी,पहले उसे और फिर आसमान की ओर देखते हुए भीतर चली गयी।

वापसी

कैब आ चुकी थी।मांँ-बाबूजी वापस जा रहे थे।वे गांव से पंद्रह दिनों के लिये शहर आये थे।बाबूजी की तबियत खराब रहती थी तो एक बड़े अस्पताल में सारे चेकअप करवाकर दो माह की दवाई ले ली थी।उन्हें बुरा लग रहा था,पर मां-बाबूजी को गाँव में रहना ही माकूल लगता था।

उन्होंने मांँ और बाबूजी के पैर छुये।पत्नी और मायरा ने भी।माँ ने मायरा को गले से लगा कर खूब आशीर्वाद दिये।
बाबूजी स्थिर निगाहों से उन्हेँ व मायरा को देख रहे थे।कैब चल पडी।हाथ हवाओं में उठे और वापस हो गये वे स्टेशन जाना चाहते थे,पर उनकी मीटिंग थी।सब भीतर की ओर चल पड़े।मायरा साथ जाने की जिद कर रही थी.उसे मुश्किल से समझाया था।

जन्मदिन की पार्टी में बहस के बाद एक युवक को मारा चाक़ू,उपचार के दौरान हुई मौत

आगामी चुप्पी,पेट,भोजन और हालात,वापसी व् बचपन और लाल गुलाब-लघु कथा
मन भरा हुआ था.तैयार होने वाश रूम चले गये। इधर पत्नी कह रही थी कि बाबूजी वाशरुम का ठीक से उपयोग नहीं करते थे।साफ नहीं रखते थे। आज ही पूजा को बुलवा कर सब चकाचक करवाऊंँगी।पलंग की बेड़शीट भी बदलवानी होगी। मायरा अपने दादु को याद कर रही थी,दादु कितने अच्छे थे।वे उसे बहुत लाड़ करते थे।हाँ ,दादी कभी कभी डाँट देती थी।पर,टेस्टी टैस्टी चीजें बना कर खिलाती थी।

वे अपने रूम से सब सुन रहे थे।उनकी आँखों में आँसू भर आये।उन्हें वे सब याद आ रहा था कि माँ बाबूजी कितनी कठिनाइयोँं से उसे बड़ा किया था,खूब पढ़ा-लिखा कर अफसर बनाया था। आँसूओं कोरूमाल से पोंँछ कर अपनी बैग लेकर वे आफिस जाने के लिये बाईक निकलने लगे।

बचपन और लाल गुलाब

वे संगम बाग मे अकेले बैठे हुए थे। सुबह की सैर। सभी दौड़ लगा रहे थे।पास ही दो बच्चे, एक लड़का एक लड़की फुगड़ी खेल रहे थे। साथ ही चुपके-चुपके फूल तोड़ रहे थे। वे अतीत मे खो गये।गुजरात से छत्तीसगढ़ अचानक आना हुआ था।वे बहुत छोटे थे।जीवन मे अभाव था,पर संतोष और खुशी थी।

पास ही एक बगीचा था। खेलते खेलते वे बाग मे झूला झूलते। पड़ौस के ही एक परिवार की गोलमटोल बिन्नी भी वहांँ आती। खेल खेल मे पहचान हो गयी।लड़ते झगड़ते वे दोस्त बन गये। बिना एक-दूसरे के रह नहीं पाते थे। बिन्नी चंँचल थी।एक कोने में गुलाब के पौधे थे।लाल गुलाब खिल उठे थे।बच्ची भी उसे लाल गुलाब जैसी ही लगती।

बगीचे मे फूल तोड़ने की सख्त मनाई थी।पर बच्ची जिद करती,तो वह चुपचाप फूल तोड़ कर लाता।जब वह गुलाब का लाल फूल बिन्नी को देता तो वह खुश हो जाती।उसे भी अच्छा लगता।यह खेल चलता रहा। अचानक हालात ने रूख बदला।पारिवारिक कारणों से उसके परिवार को वापस गुजरात जाना पडा।

गोली काण्ड हत्या का खुलासा,02 वर्षो से था प्रेम-प्रसंग,पहले दिन का प्लान हुआ फेल

आगामी चुप्पी,पेट,भोजन और हालात,वापसी व् बचपन और लाल गुलाब-लघु कथा

जाने के आखरी दिन वह बगीचे पहुंँचे।बच्ची रूंँआंसी थी।उसे भी पता चल गया था।माली के रहते भी उसने गुलाब के दो लाल फूल लाकर बिन्नी थमा दिये थे,और झट भाग कर आटो मे बैठ गया था। बिन्नी के आँखोँ में आँसू थे।वह भी चुप-चुप था। अचानक कँधे पर किसी मासूम के हाथ रख देने से उनकी तंद्रा टूटी।वे वर्तमान मे लौट आये।थोड़ा बुरा भी लगा।कितना सुंदर ख्वाब देख रहे थे।

देखा एक प्यारी -सी बच्ची गुलाब का फूल लिये उन्हें पुकार रही थी। उन्हें लगा कि बिन्नी लौट आयी है,पर यह कहाँ संभव था।बच्ची के सिर पर हाथ फेर कर उन्होंने गुलाब काफूल ले लिया।आंँखो की कोर से आँसू छलक आये। रूमाल निकाल कर आँसूओं को पोँछते हुए वे घर की तरफ लौट आये।

उनके पास न अब बचपन की वह गोलमटोल बिन्नी थी और न ही वो लाल गुलाब थे। शहर मे हर कोई आज रोज ड़े मना कर रहे थे। वे घर पहुंँच कर बिना कपड़े बदले चुपचाप लेट गये। थोड़ी देर नींद आ जाये तो पुराने दर्द को शायद कुछ सुकून मिले। उन्होंने आँखे बंद कर सोने की व्यर्थ कोशिश की।वे जानते थे आज की रात उन्हें नींद नहीं आने वाली।

हमसे जुड़े :–https://dailynewsservices.com/