बलौदाबाजार :-किसानों द्वारा खेत मे फसल अवशेष जलाने से संबंधित कृत यदि शासन के संज्ञान में आता है तो उस स्थिति में अर्थदण्ड का प्रावधान किया गया है। अर्थदण्ड के अन्तर्गत 2 एकड़ तक के भू-स्वामी को 2500/- रूपये तक तथा 2 से 5 एकड़ तक 5000/- तथा 5 एकड़ से अधिक के भू-स्वामी को 15000/- रूपये अर्थदण्ड का प्रावधान किया गया है।
फसल अवशेष को जलाना वर्तमान में देशव्यापी समस्या बनी हुई है तथा प्रदुषण का सबसे बड़ा कारण भी है, इसके नियंत्रण हेतु देश के प्रत्येक किसान तथा नागरिक जागरूक होना पड़ेगां भविष्य में आने वाली मुसीबतों को गंभीरता से लेते हुए फसल अवशेष जलाना छोड़कर इसका उचित प्रबंधन करना है,जो कि वर्तमान समय की मांग है। इसके साथ ही किसान अपने अपने गांव के गाैठान में पैरा का दान कर सकते है।
किया जा रहा है प्रचार-प्रसार
कलेक्टर चंदन कुमार के निर्देश पर उप संचालक कृषि दीपक कुमार के मार्गदर्शन में कृषि विभाग द्वारा मैदानी अमलो के माध्यम से प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। जिले में खरीफ 2023 अंतर्गत 196690 हेक्टेयर में धान की फसल ली गई थी जिसकी की कटाई का कार्य जारी है। वर्तमान में कृषको द्वारा हार्वेस्टर के माध्यम से धान की कटाई कराने का प्रचलन बढ़ा है, तथा कटाई पश्चात अगले फसल के तैयारी के लिए खेत में बचे हुए पैरा (पराली) के तत्काल निराकरण हेतु इसे जला दिया जाता है, जो उचित कृत्य नहीं है, वर्तमान समय में यह पर्यावरण तथा स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बड़ा समस्या बन चुका है।
फसल अवशेष जलाने के दुष्प्रभावः-
फसल अवशेष जलाने पर्यावरण में कई प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न होती है, इससे निकलने वाले धुंए में मौजूद जहरीली गैसो से न सिर्फ मानव स्वास्थ्य पर विपरित प्रभाव पड़ता है बल्कि वायु प्रदुषण का स्तर भी बढ़ रहा है। इससे मृदा का तापमान बढ़ता जिसके कारण मृदा की संरचना बिगड जाती है तथा लाभदायक सूक्ष्मजीवों की संख्या कम हो जाती है। जीवांश पदार्थ की मात्रा कम हो जाने से मृदा की उत्पादकता कम हो जाती है।
पराली को जलानें से बचे, नही तो लग सकता है जुर्माना
फसल अवशिष्ट जलाने से केचुए, मकड़ी जैसे मित्र कीटों की संख्या कम हो जाने से हानिकारक कीटो का प्राकृतिक नियंत्रण नहीं हो पाता है , फलस्वरूप मजबूरन महंगे तथा जहरीले कीटनाशकों का इस्तेमाल करना आवश्यक हो जाता है। केवल एक टन पैरा जलाने से 5.5 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 2.3 कि.ग्रा. फास्फोरस. 2.5 कि.ग्रा. पोटेशियम और 1.2 कि.ग्रा. सल्फर जैसे मिट्टी के पोषक तत्व नष्ट हो जाता है। अतः जरुरत है कचरा समझे जाने वाली फसल अवशेषों को खेत में सोना समझकर मिला देने की फसल अवशेष को न जलाकर पर्यावरण के अनुकूल इसका उचित प्रबंधन किया जा सकता है।
फसल अवशिष्ट का प्रबंधन कैसे करेंः-
फसल कटाई के उपरांत खेत में पड़े हुये फसल अवशिष्ट के साथ ही जुताई कर हल्की सिंचाई पानी का छिडकाव करने के पश्चात ट्राइकोडर्मा का छिडकाव करने से फसल अवशिष्ट 15 से 20 दिन पश्चात् कम्पोस्ट में परिवर्तित हो जायेंगे, जिससे अगली फसल के लिए मुख्य एवं सूक्ष्म तत्व प्राप्त होंगे। फसल अवशिष्ट को कम्पोस्ट में परिवर्तित होने की गति बढ़ाने के लिए सिचाई उपरांत यूरिया का छिड़काव भी किया जा सकता है।
तैयार करे कम्पोस्ट
फसल अवशिष्ट के कम्पोस्ट में परिवर्तित होने से जीवांश की मात्रा मृदा में बढ़ जाती है जिससे मृदा की जलधारण क्षमता तथा लाभदायक सूक्ष्म जीवों सूक्ष्म तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है जो रासायनिक उर्वरको के उपयोग क्षमता को बढ़ा देती है। ऐसा करने से कम रासायनिक उर्वरक डालकर अधिक पैदावार ली जा सकती है। फसल कटाई उपरांत खेत में बचे हुए फसल अवशिष्ट को इकट्ठा कर गड्ढे में डालकर गोबर का छिड़काव करें तत्पश्चात ट्राइकोडर्मा या अन्य अपघटक डालकर कम्पोस्ट तैयार करे।
फसल कटाई उपरांत फसल अवशिष्ट खेत में ही पड़े रहने तथा इन्हें बिना जलाये भी उपयुक्त कृषि यंत्री द्वारा बोनी की जा सकती है। ऊपर बिछे अवशिष्ट नमी संरक्षण, खरपतवार नियंत्रण एवं बीज के सही अंकुरण के लिए मल्चिंग (पलवार) के रूप में कार्य करेंगे। फसल अवशिष्ट का उपयोग मशरूम उत्पादन के लिए किया जा सकता है। धान के पैरा को यूरिया से उपचार कर पशुओं के सुपाच्य एवं पौष्टिक चारे के रूप में उपयोग किया जा सकता है। फसल अवशिष्ट का उपयोग अन्य कार्यों जैसे कार्ड बोर्ड एवं खुरदुरे कागज निर्माण हेतु कच्चे माल के रूप में किया जा सकता है।
कृषि यंत्रो का भी करे प्रयोग
फसल अवशिष्ट प्रबंधन हेतु कृषि यंत्रो का भी प्रयोग किया जा सकता है । फसल कटाई के उपरांत खेत पर फसल अवशेष पड़े रहने के बाद भी बिना जलाए बीजों की बोनी हेतु जीरो सीड कम फर्टिलाईजर ड्रील हैप्पी सीडर का प्रयोग किया जा सकता है। कम्बाइन हार्वेस्टर से कटाई के पश्चात् सुपर सीडर, स्ट्रा रीपर/स्ट्रा बेलर मल्चर का उपयोग कर फसल अवशिष्ट का प्रबंधन किया जा सकता है।
“वेस्ट डिकम्पोजर” का वितरण
कृषि विभाग द्वारा फसल अवशेष के प्रबधन हेतु सभी विकासखंडो में “वेस्ट डिकम्पोजर” का वितरण किया जा रहा है, जो की फसल अवशेष का शीघ्र अपघटन कर कम्पोस्ट तैयार करने हेतु अत्यंत उपयोगी उत्पाद है। वेस्ट डिकम्पोजर के एक बोतल से 30 से 40 दिन में 1 लाख मेट्रिक टन जैव अपशिष्ट को अपघटित कर के कम्पोस्ट तैयार किया जा सकता है। इसके लिए 200 लीटर पानी में 2 किलो गुड डाल कर एक बोतल वेस्ट डिकम्पोसर अच्छे से मिला दे तथा इसे ढक कर एक सप्ताह के लिये छोड़ दे, एक सप्ताह के पश्चात यह घोल उपयोग के लिए तैयार हो जाता है। घोल को फसल अवशेष में छिड़क कर 30 से 40 में कम्पोस्ट तैयार किया जा सकता है। कृषि विभाग के मैदानी अमलों से संपर्क करके कृषक “वेस्ट डिकम्पोजर” प्राप्त कर सकते हैं।
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