Home आलेख दाम्पत्य जीवन:दो चित्र,केअर,खुशियाँ,भेद व् कानून :-महेश राजा की लघु कथाऐ

दाम्पत्य जीवन:दो चित्र,केअर,खुशियाँ,भेद व् कानून :-महेश राजा की लघु कथाऐ

अव्यक्त प्रेम,असल बात,शाम की थकी लडकी,प्रभुत्व की बात व् अंतर-महेश राजा

महासमुंद:-जिले के प्रसिद्ध लघु कथाकार महेश राजा की लघु कथाए- दाम्पत्य जीवन:दो चित्र,केअर,खुशियाँ,भेद व् कानून सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है ।

दाम्पत्य जीवन:दो चित्र

1/पति ए बाहर से लौटते। पतिपत्नी साथ भोजन करते टी.वी.देखते।दस बजे सोने चले जाते।पत्नी ए पति ए के सीने से लिपट कर सो जाती। फिर वह करवट बदल लेती थोडी देर में उसे गाढी नींद आ जाती पतिदेव जागते रह जाते।।

2/ पति बी दौरे से लौटते समय पर भोजन करते।अपने कमरे में चले जाते। देर तक किताब पढ़ते,या मोबाइल पर बातें करते या ऊँची आवाज में भजन सुनते।पत्नी सो न पाती।थोडी देर बाद पतिदेव खर्राटे भर कर सो जाते।पत्नी बी रात भर जागती रहती।

 

केअर-

उसकी आँखे खुल गयी थी।बाहर अँधेरा था।घडी में देखा,साढे तीन बज रहे थे। पतिदेव और अवि सो रहे थे।बिना आवाज किये वह दरवाजा खोल बाहर आयी।ताजी हवा साँस में घुली तो अच्छा लगा। नित्य कर्म से निबट कर वह छत में पहुंची।छत साफ की।अब गमलों पर काम करना था। तभी मुडकर देखा पतिदेव शाल लिये खडे थे.अपने हाथों से ओढाकर बोले,इतनी जल्दी उठ गयी।बाहर ठंड है।बीमार पड जाओगी।

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उसने हल्का सा स्मित दिया।पति खडे रहे।उसने पूछा सोयेंगे कि चाय बना दूँ।उन्होंने अँगडाई लेते हुए कहा,थोडी देर आराम करूंगा।सात बजे रायपुर निकलना है। उठा देना। उसकी आँखों में आँसू आ गये।कितना ध्यान रखते है, वे मेरा।फिर उत्साह से भर कर शेष काम में जुट गयी। सबके लिये पानी गरम करना था।चाय नाश्ते की तैयारी करनी थी।उसके होंठों पर पसंदीदा नग्मा आ गया।वह गुनगुना उठी।

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खुशियाँ-

वे अन्यमनस्क और उदास से बैठे थे।अकेलापन महसूस कर रहे थे। तभी अचानक मौसम परिवर्तित हुआ।हवाएं चलने लगी।पेड पौधे हिलने शुरु हो गये। बच्चे झूला झूल रहे थे।बैंडमिंटन खेल रहे थे।खिलखिला रहे थे। उन्होंने दृष्टि उठाकर देखा। एक नन्हीं परी पेडों के पीछे से झाँक रही थी।आँखे मिली तो बच्ची मुस्कुरा उठी।वे भी हँस पड़े।
लगा जिंदगी बहुत खूबसूरत है।बस ! इसे जीने का सलीका आना चाहिये‌।

भेद-

वे घर के बाहर टहल रहे थे‌।पडोस की एक प्यारी बच्ची बहुत ही मायूसी से बच्चों को सायकिल चलाते देख रही थी। उन्होंने पूछा,बिटिया,आपका मन नहीं करता,सायक्लिंग का। बहुत इच्छा होती है।मम्मी एलाउ नहीं करती।कभी कभी संडे या शाम को थोडी देर चलाने देती है। वे बोले, पर मैं तो रोज चलाता हूं। इस पर वह दुःखी स्वर में बोली,आप ब्वाय है न।आपको थोडे ही मनाही है,गर्ल के लिये मना है।

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कानून

नगर के मुख्य चौक का चौराहा।सबसे व्यस्त।एक तरफ स्टेशन,एक ओर बस स्टेंड और शेष दो मुख्य बाजारों से जोड़ता। एक तरफ कांग्रेस भवन,हनुमान जी मंदिर।एक ओर सुंदर चाप भंड़ार जहाँ सुबह शाम भीड़ का जमावड़ा रहता। एक ट्रेफिक पुलिस मेन खड़ा रहता।भरसक कोशिश करता ट्रेफिक कंट्रोल करने की।

सुंदर चाप में गरमागरम नाश्ता बन रहा था।कार और बाईक की लाईन लगी थी।एक जागरूक जन ने ट्रेफिक वाले को यह बताया कि भीड़ ज्यादा है,रोड़ रूक रहा है। ट्रेफिक मेन ने सुंदर चाप के सामने खड़ी सरकारी गाड़ी की तरफ इशारा किया जिसमें यातायात अफसर की पत्नी ,बच्चे सहित थी।वे नाश्ता के पैकेट का इंतजार कर रही थी। उस गाड़ी के जाते ही ट्रेफिक पुलिस एक्टिव हो गये।डंडा लेकर सब गाडियोंँ को हटाने लगे।साथ ही कुछ का चालान काट दिया। “चले आते है,शाम होते ही भीड़ बढ़ाने।कानून नाम की कोई चीज है कि नहीं……।

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