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भगवान श्रीराम के वनवास काल की स्मृतियों को सहेजने तीर्थों का हो रहा है कायाकल्प

चंदखुरी के बाद शिवरीनारायण में भी विकास का काम पूरा हुआ After Chandkhuri, development work was also completed in Shivrinarayan.

भगवान श्रीराम के वनवास काल की स्मृतियों को सहेजने तीर्थों का हो रहा है कायाकल्प

रायपुर-08 अप्रैल से शुरू हो जाएगा तीन दिवसीय भव्य लोकार्पण समारोह छत्तीसगढ़ से जुड़ी भगवान श्रीराम Lord Shri Ram के वनवास काल की स्मृतियों को सहेजने तथा संस्कृति एवं पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राम वन गमन पर्यटन परिपथ परियोजना शुरू की गई है। इसके अंतर्गत प्रथम चरण में चयनित 9 पर्यटन तीर्थों का तेजी से कायाकल्प कराया जा रहा है।

इस परियोजना के अंतर्गत इन सभी पर्यटन तीर्थों की आकर्षक लैण्ड स्कैपिंग के साथ-साथ पर्यटकों के लिए सुविधाओं का विकास भी किया जा रहा है। 139 करोड़ रूपए की इस परियोजना में उत्तर छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले से लेकर दक्षिण छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले तक भगवान श्रीराम के वनवास काल से जुड़े स्थलों का संरक्षण एवं विकास किया जा रहा है। चंदखुरी के बाद अब शिवरीनारायण में भी विकास कार्य पूरा हो चुका है।

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मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने चंदखुरी स्थित माता कौशल्या मंदिर में वर्ष 2019 में भूमिपूजन कर राम वनगमन पर्यटन परिपथ के निर्माण की शुरूआत की थी। इस परिपथ में आने वाले स्थानों को रामायणकालीन थीम के अनुरूप सजाया और संवारा जा रहा है। छत्तीसगढ़ शासन की इस महात्वाकांक्षी योजना से भावी पीढ़ी को अपनी सनातन संस्कृति से परिचित होने के अवसर के साथ ही देश-विदेश के पर्यटकों को उच्च स्तर की सुविधाएं भी प्राप्त होगी।

छत्तीसगढ़ की संस्कृति एवं परम्परा में प्रभु श्री राम Lord Shri Ram रचे-बसे है। जय सिया राम के उद्घोष के साथ यहां दिन की शुरूआत होती है। इसका मुख्य कारण है कि छत्तीसगढ़ वासियों के लिए श्री राम केवल आस्था ही नहीं है बल्कि वे जीवन की एक अवस्था और आदर्श व्यवस्था भी हैं। छत्तीसगढ़ में उनकी पूजा भांजे के रूप में होती है। रायपुर से महज 27 कि.मी. की दूरी पर स्थित चंदखुरी, आरंग को माता कौशल्या की जन्मभूमि और भगवान श्रीराम Lord Shri Ram का ननिहाल माना जाता है। छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम दक्षिण कोसल है।

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रघुकुल शिरोमणि श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या है लेकिन छत्तीसगढ़ उनकी कर्मभूमि है। वनवास काल के दौरान अयोध्या से प्रयागराज, चित्रकूट सतना गमन करते हुए श्रीराम ने दक्षिण कोसल याने छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के भरतपुर पहुंचकर मवई नदी को पार कर दण्डकारण्य में प्रवेश किया। मवई नदी के तट पर बने प्राकृतिक गुफा मंदिर, सीतामढ़ी-हरचौका में पहुंचकर उन्होनें विश्राम किया। इस तरह रामचंद्र जी के वनवास काल का छत्तीसगढ़ में पहला पड़ाव भरतपुर के पास सीतामढ़ी-हरचौका को माना जाता है।

छत्तीसगढ़ की पावन धरा में रामायण काल की अनेक घटनाएं घटित हुई हैं जिसका प्रमाण यहां की लोक संस्कृति, लोक कला, दंत कथा और लोकोक्तियां हैं। राम वन गमन पर्यटन परिपथ के अंतर्गत प्रथम चरण में सीतामढ़ी-हरचौका (जिला कोरिया), रामगढ़ (जिला सरगुजा), शिवरीनारायण (जिला जांजगीर-चांपा), तुरतुरिया (जिला बलौदाबाजार), चंदखुरी (जिला रायपुर), राजिम (जिला गरियाबंद), सप्तऋषि आश्रम सिहावा (जिला धमतरी), जगदलपुर और रामाराम (जिला सुकमा) को विकसित किया जा रहा है।

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कोरिया जिले का सीतामढ़ी रामचन्द्र जी के वनवास काल के पहले पड़ाव के नाम से भी प्रसिद्ध है। पौराणिक और ऐतिहासिक ग्रंथों में रामगिरि पर्वत का उल्लेख आता है। सरगुजा जिले का यही रामगिरी-रामगढ़ पर्वत है। यहां स्थित सीताबेंगरा- जोगीमारा गुफा की रंगशाला को विश्व की सबसे प्राचीन रंगशाला माना जाता है। मान्यता है कि वन गमन काल में रामचंद्र जी के साथ सीता जी ने यहां कुछ समय व्यतीत किया था, इसीलिए इस गुफा का नाम सीताबेंगरा पड़ा।

जांजगीर-चांपा जिले में प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण शिवनाथ, जोंक और महानदी का त्रिवेणी संगम स्थल शिवरीनारायण है। इस विष्णुकांक्षी तीर्थ का संबंध शबरी और नारायण होने के कारण इसे शबरी नारायण या शिवरीनारायण कहा जाता है। ये मान्यता है कि इसी स्थान पर माता शबरी ने वात्सल्य वश बेर चखकर मीठे बेर रामचंद्र जी को खिलाए थे।

यहां नर-नारायण और माता शबरी का मंदिर है जिसके पास एक ऐसा वट वृक्ष है, जिसके पत्ते दोने के आकार के हैं। चंदखुरी के बाद अब शिवरीनारायण में भी विकास कार्य पूरा हो जाने से राज्य में पर्यटन तीर्थों की नयी श्रृंखला आकार लेने लगी है।

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