बैकयार्ड पोल्ट्री योजना के तहत 153 गरीब परिवारों को रंगीन चूजों का किया गया वितरण-

ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने में पशुधन विकास विभाग की अहम भूमिका है, ग्रामीण आर्थिक विकास के लिए अत्यंत गरीब तबके के हितग्राहियों के लिए बैकयार्ड योजना अंतर्गत हितग्राहियों का चुनाव किया गया

बैकयार्ड पोल्ट्री योजना
महासमुंद:जिले में पशुधन  विकास विभाग द्वारा विभिन्न योजनाए वर्षों की तरह सुचारू रूप से चल रही है। इस क्रम में बैकयार्ड पोल्ट्री वितरण योजना के अंतर्गत महासमुंद विकासखण्ड के आदिवासी बहुल्य एवं सामान्य पिछडे  वर्ग के 36 ग्रामों में 153 गरीब परिवारों को मुर्गी के चूजे वितरण किये गये.
पशुपालन विभाग के उपसंचालक ने बताया कि इस साल जिले के 800 गरीब परिवारों को इस योजना से लाभान्वित करने का लक्ष्य रखा गया है। उन्हे चूजों के लालन-पालन एवं देख-रेख संबंधी प्रशिक्षण भी दिया गया है । लगभग तीन हजार रूपये मूल्य प्रति इकाई के अंतर्गत 45 रंगीन चूजे चयनित हितग्राहियों अनुसूचित जान जाति एवं अनुसूचित जाति को 90 प्रतिशत एवं अन्य पिछड़ा वर्ग एवं सामान्य वर्ग को 75 प्रतिशत तक अनुदान पर दिये गये.
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने में पशुधन विकास विभाग की अहम भूमिका है। विभाग द्वारा ग्रामीण आर्थिक विकास के लिए अत्यंत गरीब तबके के हितग्राहियों के लिए बैकयार्ड योजना अंतर्गत इस साल जिले के 800 हितग्राहियों का चुनाव किया गया है। योजना अंतर्गत 28 दिवसीय रंगीन 45 चुजे प्रत्येक हितग्राही को प्रदाय किया जाता है। उन्हे दिये गये चूजे देशी प्रजाति के है, जिन्हे विशेष देख-रेख की जरूरत नही होती है। प्रत्येक हितग्राही को चूजे के साथ साथ कुक्कुट आहार भी प्रदाय किया जाता है.
योजना के तहत प्रदाय किये जा रहे चूजे में 50 प्रतिशत नर एवं 50 प्रतिशत मादा है। इनका अंडा उत्पादन 60 से 70 प्रतिशत प्रतिवर्ष होता है तथा अंडे से बच्चे सेने की इनमें विशेष क्षमता होती है। इन मुर्गे एवं मुर्गियों में रोग प्रतिरोधात्मक क्षमताअधिक होती है, जिससे बीमारी उसमें कम लगती है। हितग्राहियों के यहा मुर्गियों की निरंतरता बनाये रखने के लिए उनको अंडा उत्पादन हेतु प्रशिक्षण एवं प्रोत्साहन दिया जाता है। चार से छह माह के उम्र में इन मुर्गे-मुर्गियों का वजन 2 से 2 किलो 500 ग्राम हो जाता है, तथा इनकी बिक्री दर देशी मुर्गे एवं  मुर्गियों की तरह बाजार दर के बराबर होती है, जिसके कारण मुर्गे एवं मुर्गियों का 200 से 300 रू. प्रति किलो दर से आसानी से ग्रामीण परिवेश में ही बिक्री हो जाती है। इनको कोई विशेष बाजार की आवश्यकता नहीं होती.

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