फसल अवशेष न जलाए, भूमि को उपजाऊ बनाए : किसानों से अपील

फाइल फोटो

गरियाबंद:फसल कटाई के बाद खेत में पड़े अवशेष को जलाने की प्रवृति को लेकर कृषि विभाग के अधिकारियों ने किसानों से अपील करते हुए फसल अवशेष प्रबंधन के लाभ एवं उसे जलाने के दुष्प्रभाव से किसानों को अवगत कराया है। कृषि अधिकारियों ने बताया कि फसल कटाई के उपरांत खेत में पड़े हुए अवशेष के साथ ही जुताई कर हल्की सिंचाई-पानी का छिड़काव करने के पश्चात ट्राइकोडर्मा एवं जैविक वेस्ट डिकम्पोजर का छिड़काव करने से फसल अवशेष 15 से 20 दिन पश्चात कम्पोस्ट में परिवर्तन हो जायेगें जिससे अगली फसल के लिए मुख्य एवं सूक्ष्म तत्व प्राप्त होगें। फसल अवशेष को कम्पोस्ट में परिवर्तन होने की गति बढ़ाने के लिये सिंचाई उपरांत यूरिया का छिड़काव भी किया जा सकता हैं.

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फसल अवशेष के कम्पोस्ट में परिवर्तन होने से जीवांश की मात्रा मृदा में बढ़ जाती है जिससे मृदा की जलधारणा क्षमता तथा लाभदायक सूक्ष्म जीवों – सूक्ष्म तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है जो रासायनिक उर्वरकों के उपयोग क्षमता को बढ़ा देती है, ऐसा करने से कम रासायनिक उर्वरक डालकर अधिक पैदावार ली जा सकती हैं। फसल कटाई उपरांत खेत में बचे हुए फसल अवशेष को इकðा कर गड्ढे में डालकर गोबर का छिड़काव करें तत्पश्चात ट्राइकोडर्मा या वेेस्ट डिकम्पोजर डालकर कम्पोस्ट तैयार करें। धान के पैरे को यूरिया से उपचार कर पशुओं के सुपाच्य एवं पौष्टीक चारे के रूप में उपयोग किया जा सकता हैं.

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फसल अवशेष जलाने के दुष्प्रभाव फसल अवशिष्ट जलाने से निकलने वाले धुएं में मौजूद जहरीली गैसों से न सिर्फ मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है साथ ही वायु प्रदूषण का स्तर भी बढ़ रहा हैं। फसल अवशिष्ट जलाने से मृदा का तापमान बढ़ने के कारण मृदा की संरचना बिगड़ जाती है तथा लाभदायक सूक्ष्म जीवियों (मित्र कीटों) की संख्या भी कम हो जाती है। जीवांशा पदार्थ की मात्रा कम हो जाने से मृदा की उत्पादकता कम हो जाती हैं। फसल अवशिष्ट जलाने से केचुएं, मकड़ी जैसे मित्र कीटों की संख्या कम हो जाने से हानिकारक कीटों का प्राकृतिक नियंत्रण नही हो पाने के फलस्वरूप मजबूरन मंहगे तथा जहरीले कीटनाशकों का इस्तेमाल करना आवश्यक हो जाता हैं। एन.जी.टी. के प्रावधानों के तहत फसल अवशेष जलाना एक दंडनीय अपराध है, फसल अवशेष जलाने पर 2500 रूपये से 15000 रूपये तक जुर्माने का प्रावधान है.