Home आलेख “पालक,खबर व्  टेढ़ी पूँछ वाले कुत्ते की फिलासफी”-लघु कथा महेश राजा की

“पालक,खबर व्  टेढ़ी पूँछ वाले कुत्ते की फिलासफी”-लघु कथा महेश राजा की

"बाबूजी पालक होते तो यह सब थोडे ही करना पडता।" उसके मासूम चेहरे पर एक अजीब सा दर्द था

महेश राजा की लघुकथा उपयोगिता के साथ पढिए अन्य लघुकथा

महासमुंद-जिले के प्रसिद्ध लघु कथाकार महेश राजा के “पालक,खबर व् टेढ़ी पूँछ वाले कुत्ते की फिलासफी” सुधि पाठकों के लिए लिए उपलब्ध है । रविवार की सुबह छुट्टी का दिवस पर,सौदा सुलफ के लिये उचित दिवस।अन्य दिन तो भागमभाग, अपडाउन में ही निकल जाता है।चाय नाश्ता निबटा कर पत्नी जी ने एक लंँबी फेहरिस्त एवम थैला थमा दिया। मैंने पूछा-“,सब्जी क्या लाऊ?”

इस पर पत्नी ने कहा-,आज आपकी छुट्टी है.कुछ बढिया बनाते है।जैसे पालक पनीर,मटर पुलाव।यह सब ले आईये और हां,ताजी धनिया पती साथ ही हरा लहसुन लाना न भूलियेगा।” मै थैला लेकर बाजार की तरफ चल पडा। राह मे साहुजी मिल गये तो गपशप करते टी स्टाल की तरफ मुड गये। वहांँ से निकल कर नुक्कड पर पहुंचा तो देखा,एक छोटा बालक एक किनारे पर बोरी बिछा कर ताजी सब्जी लेकर बैठे हुए थे।
मैंने बच्चे से पूछा,”पालक है क्या ,बेटा?”

बच्चा अपलक मुझे देखता रहा। कुछ कह न पाया।तभी बालिका जो शायद उसकी बडी बहन थी,आ पहुंची।मैने उससे भी यही सवाल किया। अन्यमनस्क वह बुदबुदाई,-“बाबूजी पालक होते तो यह सब थोडे ही करना पडता।”
उसके मासूम चेहरे पर एक अजीब सा दर्द था।साथ ही उसकी भीगी आवाज मन को छू गयी।

पूछने पर बालिका ने बताया, उसकी मां का एक एक्सीडेंट मे निधन हो गया था।पिता को तो कभी देखा ही नहीं। मैंने पूछा,पढने जाते हो?”-“कहांँ,साहब,ले देकर तो दो जून की रोटी नसीब है।पडौस की एक टीचर दीदी ने एक खोली और यह काम दिलाया है।जैसे तैसे काम चल रहा है।

घर काम करोगी पूछने पर उसने ना कही,भाई छोटा है।हां मेहनत कर उसे पढाना है।” फिर बोली-“क्या क्या लेंगे।सारी सब्जीयाँ ताजी है,यह टमाटर लिजिये,देशी है। मैंने जरूरत से ज्यादा सब्जी ली और सौ का नोट दिया। कहा,-“चिल्हर रख लो।” वह बोली ,,नहीं साहब जो वाजिब है ,वही लेंगे।”

शेष रुपये वापस कर वह दूसरे ग्राहक की सब्जी तौलने लगी। मै भरे मन से घर की तरफ लौटा।पत्नी को सबकुछ बता कर उन मासूमों के लिये कुछ करने की बात सोचने लगा।

खबर

पड़ोस के राज्य में उपचुनाव हो रहे थे। दो मित्र आपस में फोन पर बात कर रहे थे।”और क्या खबर है आप लोगो की? कैसे चल रहे हैं चुनाव?”- “लगभग शांति है,बस…. इस बार चार पांच लोग ही मरे।छिटपुट साम्प्रदायिक दंगे भी हुए।नाबालिग के साथ बलात्कार की घटनाएं हुयी।दो तीन बसे जलायी गयी।शेष सब कुछ कन्ट्रोल मे है।” साथी का जवाब था।

 टेढ़ी पूँछ वाले कुत्ते की फिलासफी-

एक टेढ़ी पूँछ वाले कुत्ते ने सीधी पूंँछ वाले कुत्ते से पूछा,”क्यों पार्टनर! तुम्हारी दूम सीधी कैसे हो गयी ? क्या तुम्हारे मालिक ने इसे पोंगली मे डाल दिया था”? सीधी पूंँछ वाला कुत्ता पहले हीन भावना से ग्रसित हुआ फिर साहस बटोर कर उसने कहा,”बात दरअसल यह है कि मैं अपनी पूंँछ सीधी करने की प्रेक्टिस कर रहा हूं।”

टेढ़ी पूंछ वाला कुत्ता बोला,” कुत्ते की पहचान को क्योंं संकट में ड़ाल रहे हो।अभी हम कुत्ते इतने स्थापित नहीं हुए है कि चुनाव मे खडे हो सके। जब तक हमारी पूंछ टेढी रहेगी,आदमी हमेंशा हम कुत्तों से डरेगा।”

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