महासमुंद- जिले के ख्यातिप्राप्त लघुकथाकर महेश राजा की लघु कथाए जागी आँखों का सपना,गुगल और आम आदमी, मेहमान नवाजी सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है ।
जागी आँखों का सपना-समय ठीक नहीं चल रहा था। लह बोर हो रहा था।चुपचाप सामने वाली सफेद दीवार को देख रहा था। महसूस हुआ,सब कुछ ठीक हो गया है,पहले की तरह। सभी पहले के जैसे ही सामान्य जीवन जीने लगे है।वह भी चौक वाले समौसे और शाम के मथुरावासी गुपचुप चाट का मजा ले रहा है।
अलादीन जीन और कवि महोदय,गुनगुनी घूप,पालक,छोटा सा इंद्रधनुष-महेश राजा
बच्चे स्कूल जाने लगे है।सब स्वस्थ दिख रहे है। तभी दीवार पर एक छिपकीली ने भागते कीड़े को पकड़ लिया था।कीड़ा बचने को छटपटा रहा था। उसकी जागी हुयी तंद्रा भंग हुयी।वास्तविकता से सामना हुआ जो बहुत कष्टदायक था। फिर भी एक क्षण को भी सकारात्मक सोचना उसे अच्छा लगा।वह सोच रहा था।जल्द ही सब ठीक होगा।
गुगल और आम आदमी
शहर अनजाना था।वे यूं ही भटक रहे थे।तभी एक ट्रक चालक उनके समीप आया और एक पता पूछने लगा।उन्होंने कहा,वे तो इस जगह पर नये है।आप किसी दुकानदार से पूछिये। फिर उन्होंने चालक से पूछा,-“आप गूगल मैप का सहारा क्यों नहीं लेते?” चालक हँसा,-“साहब इसी गूगल महाशय की वजह से ही सुबह से भटक रहा हूं।ठीक से बताते ही नहीं।”
उन्हें लगा,ठीक ही तो है,आखिर है तो यह कम्प्यूटराईज्ड न।ईंसान ने जो फीड किया है,वही बतायेगा न।फिर सुना है,यह सरल रास्तों की तरफ ही सही चलता है।हां,बच्चों को शहर में इसी का सहारा लेते हुए देखा है। चालक को शायद दुकानदार ने सही रास्ता बता दिया था।वह खुश होकर उनके समीप आया,बोला,साहब ,-“आपका जमाना ही ठीक था।पूछ पूछ कर आप लोग बदरीनाथ हो आते है।हमारे नसीब में तो भटकन ही लिखी है।”
मेहमान नवाजी
कुछ लोग बैठने आये थे।पहले तो मेजबान ने उन्हें दरवाजे पर ही अटकाये रखा।बातें होती रही। फिर वे भीतर आये।बैठे।बातें होती रही।मेजबान ने पानी भी न पूछा। अब वे जाने को हुए तो मेजबान ने कहा,अरे बैठिये।चाय पीकर जाईये। उन लोगों ने हाथ जोड़े और बाहर निकल गये।
अभी अभी
बेटा बाहर से आया था तो भूखा था।आते ही बोला- ‘माँ कुछ खाने को दो न।’ मां ने सारा काम छोड़ कर रोटी और साग परोस दिया। इकलौता बच्चा था।वे अकेली थी।सिलाई-बुनाई कर अपना व बेटे का पेट पालती थी। बेटे को जोर की भूख थी ।वह खाता गया।
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पर्यावरण दिवस पर विशेष “पर्यावरण रक्षा” अंजाना ड़र,मन का सँतोष,परवरिश-महेश राजा
वह स्नेहमयी नजरों से बेटे को भोजन करते देखती रही।यहाँ तक कटोरदान की अंँतिम रोटी भी उसे परोस दी।सब्जी तो पहले ही समाप्त हो गयी थी। अचानक बेटे को कुछ याद आया, बोला’-माँ …तुमने खाया कुछ ?’ वे तंद्रा से जागी , बेटे को देखा और झटपट बोली- हाँ… खाया न बेटा…-..अभी..अभी…।
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