गुजरात के गांधीनगर में प्रवासी वन्यजीवों के संरक्षण के लिए कॉप-13 का होगा आयोजन

प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण को लेकर 13वां कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ यानी कॉप-13, गुजरात के गांधीनगर में आयोजन। 17 फरवरी से 22 फरवरी तक चलने वाले सीएमएस कॉप-13 में दुनिया भर के कई देशों के प्रतिनिधि लेंगे हिस्सा और तेज़ी से लुप्त होती प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण के बारे में चर्चा करेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इस सम्मेलन का उद्घाटन करेंगे।दुनिया भर में हो रहे जलवायु परिवर्तन और अवैध रूप से शिकार किए जाने के कारण प्रवासी प्रजातियों के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है। साथ ही गैर काननूी शिकारों के कारण प्रवासी प्रजातियों समेत जंगली जानवरों की संख्या भी घटी है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तत्वावधान में प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण को लेकर 13वां कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ यानी कॉप-13 का आयोजन किया जा रहा है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 17 फरवरी को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए COP13 सम्मेलन का उद्घाटन करेंगे। इसके साथ ही, कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठन वन्यजीवों के संरक्षण के सर्वोत्तम तरीकों से संबंधित एक प्रदर्शनी का आयोजन करेंगे। 22 फरवरी को कार्यक्रम का समापन होगा। 16 तारीख को पूर्व-कोप बैठक का आयोजन भी किया जाएगा।

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भारत सरकार 1983 से सीएमएस की सिग्नेटरी है और यह प्रवासी समुद्री प्रजातियों की रक्षा और संरक्षण के लिए कार्य कर रहा है। COP13 की थीम ‘अतिथि देवो भव’ भारतीय परंपरा पर आधारित है जिसमें मेहमान को देवता का दर्जा दिया जाता है। कार्यक्रम की थीम है ‘प्रवासी प्रजातियां पृथ्वी को जोड़ती हैं और हम मिलकर उनका अपने घर में स्वागत करते हैं.’। COP 13 का लोगो दक्षिणी भारत के पारंपरिक आर्टफ़ॉर्म ‘कोलम’ से प्रेरित है। कॉप-13 का शुभंकर, “Gibi – द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड” है। यह गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजाति है, जिसे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत सर्वोच्च सुरक्षा का दर्जा दिया गया है।संरक्षण की सीएमएस सूची में भारत की तीन प्रजातियां ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, एशियन एलिफेंट और बंगाल फ्लोरिकन समेत दुनिया भर के पक्षियों की लुप्तप्रायः प्रजातिया शामिल हैं। इस कार्यक्रम के जरिए आवास-विखंडन, प्लास्टिक प्रदूषण, पक्षियों की अवैध हत्या, ऊर्जा और सड़क संरचना पर चर्चा की जाएगी, जिससे कि घरती से लुप्त होती इन प्रवासी प्रजातियों को एक सुरक्षित वातावरण मुहैया कराया जा सके।

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