बागबाहरा-छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक स्वर्णा धान का उत्पादन होता है।धान की जिस वेरायटी ने किसानों को मालामाल भी किया अब वहीं उन्हें इसकी ख़ाहिश में कमी आ रही है। शुरुवात में किसानों को इसके विपुल उत्पादन के कारण किसानों ने सरना को अपनाया पर हालात बदले औऱ सहकारी समितियों ने राइस मिलर्स से सांठगांठ कर इस वेरायटी को मोटा किस्म के धान के रूप में कम दाम में खरीदे जाने के कारण अब उनका मोह भंग हो गया है।
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भाजपा नेता पूर्व जनपद अध्यक्ष नरेन्द्र चन्द्राकर ने कहा कि आज स्वर्णा (सरना) धान की सर्वाधिक माँग है ,अधिकाँश उपभोक्ता इसे पसन्द करते हैं, इसलिए हमेशा बाजार में इसकी मांग बनी रहती है।जिसके कारण और अन्य धानो से इसमे चावल एवरेज ज्यादा होने तथा अरवा और उसना दोनों चावल बनने से दोनों राइस मिल वालों के लिए प्राथमिकता का धान हैं ।
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इसी कारण से सहकारी समितियों में इस धान की अलग ग्रेडिंग करने का शासकीय निर्देश भी है ।परन्तु कुछ समितियों में इसे मोटा अनाज मे ग्रेडिंग करके बाद मे राइस मिल वालों सेँटिग कर उन्हें मोटा किस्म के रूप में सप्लाई करते हैं । फायदा होने से मिल वाले भी स्वीकार कर लेते है ।
शासन, राइस मिल, सहित सबकी पसंद और उपभोक्ताओं के लिए भी इस धान की चावल को समुचित रूप से उपलब्ध कराने तथा क्वालिटी मे किसान और ज्यादा ध्यान दे,इस बिंदु पर शासन को ध्यान देना चाहिए और किसानों को स्वर्णा( सरना) धान उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करने के लिए 20 /रू प्रति किवटल बोनस देना चाहिए ।