नई दिल्ली-देश की राजधानी के प्रसिद्ध लघु कथाकार डा.अंजु लता सिंह की लघु कथा – आड़, उपहार,कसक सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है ।
आड़-वह आज राकेश को बीवी जी के पास लेकर जाएगी वही कुछ समझाएंगी तो ठीक रहेगा. दसवीं में फेल क्या हुआ पढ़ाई छोड़कर ही बैठ गया..आवारा दोस्तों में उठ बैठकर ढीठ सा हो गया है.. बस्ती की खोली में खटिया पर लेटे-लेटे काॅलोनी के घरों में बर्तन और सफाई का काम करने वाली सुमन इसी उधेड़बुन में लगी थी.
तभी ऊंघता हुआ सोहन पास आकर बोला-ना तो ये मेरा साथ देवै है अर ना ही कपड़े प्रैस कराने में तेरी कोई मदद करे है..अठारह बरस का मरद हो रहा है..सरम तो हैइ ना इसे..तेरे लाड़ की आड़ मेंई यो बरबाद हो रओ है..जब तब पइसे पकड़ाए देवे है मुंहमांगे.. जाड़े की संध्या अंधेरे से हाथ मिला रही थी..फटियल स्वेटर पर मैली सी फटियल गरम चादर ओढ़े, गले में मफलर लपेटे सोहन भी अपनी मूंगफली,गजक और रेवड़ी की ठेली पर अधसुलगीअंगीठी धरकर धीरे-धीरे ठेलता हुआ काॅलोनी की ओर बढ़ने लगा था।
सामने से बेटे को आते देख ठिठककर बोला-ले तू ही ले जा आज ठेली…हमरा बदन बहुतई पिराय रओ है। हम ना करिबैं अइसा काम…हुंह..सरम लगती है हमको। हमका चार सौ रूपया चाहिये…फिलम देखे खातिर..चिकन बिरयानी खाएंगे … जल्दी दे दो पइसे. नहीं हैं हमरे पास पइसा..जा.. कामचोर कहीं का…खुद कमा फिर खैयो ..
पिता पुत्र की आपसी तनातनी बढ़ने लगी थी। तराजू बाट हाथ में उठाकर ताबड़तोड़ वार करते हुए पिता की जेब से मुट्ठी भर नोट खींचकर भागते हुए राकेश ने एक बार फिरसे मुड़कर पिता के सिर पर भारी बाट दे मारा.. लहुलुहान शरीर लड़खड़ाकर गिरा तो उठ ही ना सका. बुक्का फाड़कर रोती चीखती सुमन का सिर बुरी तरह चकराने लगा था…आसपास जमा भीड़ फुसफुसा रही थी-मेहतारी नेई सिर चढ़ा रखो थो जादा लाड़ तो बुरोई होवै है…लाड़ की आड़ में हत्यारा बन गओ… तमासा तो होनाई था।
उपहार
अभी बेटा ,बहू क्लीनिक से निकलकर माॅल में गए होंगे..गुड फ्राई डे जो है।शादी को एक साल पूरा नहीं हुआ है,लेकिन नववधू सुनीति ने मेरे घर आंगन में कदम रखते ही उजाला सा कर दिया है। लगता है आज मेरे जन्मदिन पर कुछ उपहार ही ले आएं। हम भी पतिदेव की तारीफ करके नई बहू के आगे रौब ही मार लेंगे.
कल सुनीति को अपने ससुर जी से कहते हुए सुना भी था-पापा जी!मम्मा को तीस साल हो गए हैं जाॅब करते हुए ।सुबह पांच बजे उठकर लगातार स्कूल से लौटने तक कितनी मेहनत करती आ रही हैं ।इस बार मम्मा को बढ़िया सा कोई
गिफ्ट लाकर दीजियेगा आप। अरे भई! ये तो संसार में एक ही लाजवाब गिफ्ट था, जो मुझे मिला और मैं भी इनके लिये सबसे बड़ा उपहार हूं। तुम्हारी मम्मा तो तो संतुष्ट नारी की मिसाल हैं।
रात गई बात गई…इनकी चिकनी चुपड़ी बातों की अभ्यस्त हूं।मैं जानती हूं ये कभी कुछ भी नहीं लाएंगे।
बहू से बोल ही पड़ी थी आखिरकार। सोचकर मैंने लंबी सांस ली और देखा-घड़ी में 9बज चुके थे।हाय!ये तो बड़े झूठे निकले आज तो बाहर डिनर पर ले जा रहे थे।तभी धमाचौकड़ी मचाते हुए तीनों घर में घुसे और बहू बोली-मम्मा!जल्दी से सुंदर सूट पहनो केक काटेंगे डिनर करेंगे।
एक सुंदर सा पैकेट मेरे हाथों में थमाकर -हैप्पी बर्थ डे डियर मम्मा..कहकर सुनीति मेरे गले में बांहे डालकर झूल गई । पैकेट खोलकर देखा-वाॅयो का व्हाइट कलर का लैपटॉप था।नीचे कोने में लिखा था- विद लव माई लव हैप्पी बर्थ डे टू यू योअर स्टोन मैन(पति…देव) मैं भांप चुकी थी हो न हो यह सब कारस्तानी बहू की ही होगी।ऐसा मीठाअहसास ही मेरे लिये सबसे बड़ा उपहार था ।
कसक
दीदी अपनी कोमल हथेलियां फैलाकर मुझसे अक्सर कहा करती थीं-तरू!मेरी जीवन रेखा कटी हुई है.लगता है जल्दी ही ऊपर चली जाऊंगी. ‘कैसी अंधविश्वासी हो दी आप भी ‘कहकर मैं बात का विषय बदल देती.
राखी पर अचानक ही दीदी को पूजा की थाली लिये चक्कर आ गए और आंखों के आगे अंधेरा छा गया.चैक अप के बाद
ब्रेन ट्यूमर की खबर सुनकर हम सभी सन्न रह गए थे.
स्नेहिल दीदी दिनोंदिन कमजोर हो रही थीं .एम्स में इलाज चला.रात दिन एक करके जीजू उन्हें गेहूं घास,एलोवेरा जाने क्या क्या उपचार स्वरूप देते रहे. लैपटॉप पर अहर्निश चिपके रहने वाले पति अब उनकी सेवा में जुट गए थे. बहू अक्सर कमरे में आकर अपने दो वर्षीय बेटे को दादी से मिलवाने की औपचारिकता निभाती रहती.
मां की तीमारदारी की ललक और मातृस्नेह की विवशता नवविवाहिता बेटी पूर्वा को उनके पास खींच लाई थी.
बहू अब ननद के आने पर बेफिक्र सी हो चुकी थी.कई बार ससुराल से बुलावा आने पर भी पूर्वा स्थिति को भांपकर भी मां को छोड़कर नहीं जा सकी थी.जाने किस मिट्टी की बनी होती हैं ये बेटियां. मैंने भी स्कूल से लौटती बार अपनी गाड़ी दी के घर पर रोककर उसे खूब देर तक समझाया पर सब व्यर्थ रहा।मां से बेटी का अटूट लगाव देखकर मन ही मन सुखद अहसास भी होता.
दीदी के सारे शरीर पर नील पड़ चुके थे.जगह जगह इंजेक्शन लगने से चोट के से निशान गहरा गए थे.
तिल तिल मरती दीदी फिर भी हमेशा की तरह मुस्कुराती रहतीं…अरे सांई से जो लगन लगाए उसे मौत क्या डराए?
पूर्वा भी अपने घर नहीं लौट पाई.बहू बेटे नौकरी में दूर जा बसे.दीदी ने भी आखिरकार दम तोड़ ही दिया .
समाज सेवा में निरंतर जुटे जीजू को कृशकाय देखकर आभास होता है मानो चलती फिरती मौत अब भी जिंदा है बस औरत की मौत सी नहीं.
संक्षिप्त परिचय
हमसे जुड़े :–https://dailynewsservices.com/