महासमुंद-जिले के प्रसिद्ध व्यंगकार महेश राजा की लघुकथा परिंदे, मन का मीत,साहित्य सम्मेलन,और प्रवृति सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है।
परिंदे
अचानक अरूपा का फोन आया तो अन्विति आश्चर्य मिश्रित भाव से उछल पड़ी। वे दोनों कालेज के दिनों की सहेलियाँ थी।फिर विवाह और बाद में बच्चे हो गये।धीरे धीरे सम्पर्क टूटता गया। औपचारिक बातों के दौरान अरूपा ने बताया कि बेटी डाक्टर है,और वेलसेट है।बेटा एक्सपोर्ट इंपोर्ट बिजनेस में है,बहु हाउस वाइफ है,एक पोता भी है। अचानक अरूपा के स्वर में तल्खी आ गयी। पूछने पर बोली,-“आज बहु ने पहली बार उनका विरोध किया।सामने से जवाब दिया।”
अन्विति समझ गयी।वह पढ़ीलिखी सफल गृहिणी थी।आजकल तो लगभग हर घर की यही कहानी है।सांत्वना आदि देकर पूछा तो अरूपा खुल कर बोली-“अब तक तो सब ठीक चला।पर,आज बहु कह रही थी,-‘बारह बरसों से आपको सुनते चली आ रही हूँ, अब नहीं… अब मैं भी कहूंगी.. मेरा बच्चा भी अब बड़ा हो गया है। इस घर पर मेरा भी बराबरी का हक है’। बेटा भी आजकल बहु का होकर रह गया है। शिकायत करो तो हँस कर टाल जाता है।शायद अब वे अलग रहना चाहते है।पर,मेरे मोह का क्या करूं,मेरा तो इकलौता बेटा है।उससे अलग कैसे रह पाऊंगी।”
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अन्विति ने अपनी बात कही कि मेरे भी दो बेटे है,बहुएं है,एक प्यारा सा पोता है।वे अपनी अपनी जाब के सिलसिले में बड़े शहरों में रच-बस गये है।हम दोनों साल में दो बार उन सबके यहाँ जाते है।साल में दो तीन बार वे सब यहाँ आ जाते है।और पारिवारिक कार्यक्रमों में तब एक साथ आ जुटते है।कोई दखल नहीं।सब स्वतंत्र,समझदार।ऐसे में प्रेम भी बना रहता है।
आगे वे बोली-“शादी से पहले तुम ही कहती थी न कि सबको अपने ढ़ंग से जीने का हक है।बस यही बात फालो करे।साथ रहो तो प्रेमपूर्वक और अलग रहो तो भी मतभेद रहे पर,मनभेद नहीं हो।”
” -सारे मोह त्याग दो।यही मोह जीवन में हमें बहुत तकलीफ़ देता है।” ” -एक बात और बहु को बेटी समझ कर व्यवहार करो,फिर देखो वह तुम्हारे कदमों में आ बिछेगी।”-“अरुपा,बच्चे अब बड़े है गये है,उन्हें अपनी उड़ान उड़ने दो।नहीं तो आगे पछतावे के सिवाय कुछ भी हाथ नहीं आयेगा।”
अरुपा ने फोन रख दिया था। अन्विति सोच रही थी कि निजी संबंधों में हमारे “ईगो” ही आड़े आते है।वरना प्यार और स्नेह के बीच पारस्परिक मतभेद के लिये तो जगह ही शेष नहीं रह जाती। वे अरूपा को जानती थी।मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि उनके बीच सब ठीक हो जाये।।
मन का मीत
आज अचानक साहित्य पर बात करते हुए राज और रीमा में मनमीत विषयक बात छिड़ गयी। राज दर्द भरी आवाज में बता रहा था।बचपन से लेकर बड़े होते तक साथ रहा।बहुत चाहती थी वो पीले फ्राक वाली गोलमटोल लड़की।भाग्य का दोष या स्वयं की गलती से उसे खो दिया।आज भी उसे याद करता हूँ, उसकी पूजा करता हूँ। बहुत याद आती है वो।क ई रात तकिये भिगोते हुए कटी।अब इस जन्म में तो मनमीत संभव नहीं।
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रीमा बड़ी सादगी से बोली,उस समय यह सब सोचा नहीं था।पापा ने विवाह कर दिया।ससुराल चली गयी।पहली बार ससुराल आयी तो वो मन का मीत मिलने आया था,उसकी आँखों में खामोशी और आँसू थे।पूछने पर विवाह में क्यों नहीं आये।वह बहुत धीमे स्वर में बोला,तुम्हें चुपचाप दिल में बसा के रखा था।दूसरे का होते कैसे देख पाता।तुम्हारी शादी में मैं नाच ही न पाता।
कहते कहते रीमा की आवाज भीग गयी थी।उस नादान ने एक बार कहा तो होता।पर,आज यह सोचना अच्छा लगता है,कि कोई तो था जीवन में जो दिलोजान से चाहता था।भले ही वह मन का मीत न बन पाया।
साहित्य सम्मेलन
नगर के युवाओं ने इस बार त्योहार पर एक बडा आयोजन करने का विचार किया।वे उत्साह से जुट गया।नगरवासियों का भरपूर सहयोग मिला।आखिर बडे आयोजनों का छोटा शहर जो था। तैयारियां पूर्ण हुई।काफी प्रचार होने से आसपास के गांवों से भी लोग आ जुटे।काफी भीड जमा हो गयी।आयोजक गण मेहनत सार्थक होते देख कर प्रसन्न थे।थोडा देर से ही सही सम्मेलन शुरू हुआ।देर रात तक कार्यक्रम चला।
पर इस बार किसी कवि को माईक से समस्या थी तो किसी को माईक वाले से।किसी ने नगरजनों को सामान्य समझ कर रिपीट रचना ए सुनायी या चुटकुले सुनाये।अच्छी रचनाओं की पारी आयी तो श्रोता उठ कर जाने लगे।नाश्ते और चाय के साथ समापन हुआ। प्रबुद्ध जनों में इस कार्यक्रम की बडी तीखी आलोचना हुई।
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.एक प्रतिष्ठित व्यापारी ने कहा,यह सब सुनने के लिये हमने योगदान दिया,अपना कीमती समय बिगाड़ा। किसी ने इसे हास्य सम्मेलन कहा।मिली जुली प्रतिक्रिया रही।नगर में बहुत दिनों से कोई आयोजन न हुआ था तो चलो भीड ईकट्ठा हुई।लोगों से मिलना जुलना हुआ ,यह कह कर संतोष कर लिया। लाखों रूपये खर्च हुए थे.साथ ही युवा वर्ग ने रातदिन मेहनत की थी।इस बात नेआयोजकों को सोचने पर मजबूर कर दिया।
एक साहित्य की समझ रखने वाले मित्र ने कहा,-“इससे अच्छा तो नगर के कवियों को पढाया जाता,वे अच्छा कर जाते”।वे सब सुन कर मौन थे।आजकल साहित्य में भी व्यापार घुस गया है।नाम चल गया तो बस।अनायास गुरू वर याद आ गये।वे जीवित थे तो नगर में विशिष्ट साहित्यिक, संगीत समारोह आदि होते थे।लोग साल भर याद करते थे।पर,वे दिन अब नहीं रहे।सब कुछ बदल गया।
पास ही एक पढा लिखा युवक किसी से कह रहा था,- ‘ऐसे ही तुकबंदी ,चुटकुले या एक दूसरे की बेईज्ज़ती सुननी थी तो 930,बजे सोनी टीवी पर कपिल शर्मा शो क्या बुरा था।घर बैठे आराम से खाते पीते हुए आनंद से पूरा परिवार एक साथ देख लेता।’
प्रवृति
एक अभिजात्य कालोनी में पीली कोठी से घर की बहु गाय को रोटी देने बाहर आयी।त्यौहार की वजह से कामवाली नहीं आ रही थी।भरापूरा परिवार था।उस परकाम का बोझ ज्यादा था।
तभी पड़ोस की आंटी नजर आयी।बहु ने अभिवादन किया।आंटी हाउसवाइफ थी।धार्मिक प्रवृति की।उनके पति जनसंपर्क विभाग से सेवानिवृत्त हुए थे।बेटा मुंबई में विप्रो कंपनी में इंजीनियर था।बेटी अमेरिका में ब्याही गयी थी।शांत,सुसंस्कृत परिवार।
आंटी से घर परिवार, बच्चों की बातें होती रही।तभी कोठी से बहु की सास की भरावदार आवाज सुनाई दी-“बहु कहाँ हो?”बहु ने आंटी को नमस्ते की।घर के भीतर चली आयी।सास ने पूछा-“क्या कह रही थी,पडोसन?जरूर हमारी बुराई कर रही होगी।”
बहु ने बताया ऐसा कुछ नहीं था बसघर परिवार की बातें हो रही थी। सास फिर रूखे स्वर मेंबोली-“ठीक है,ठीक है ज्यादा मैलजोल बढ़ाने की जरूरत नहीं।वे हमारे स्तर के नहीं है।” बहु कहना चाह रही थी कि आंटी ऐसी नहीं है।वे भली महिला हैआप तो हमेंशा ताने मारती रहती हो।और सबको गलत ही समझती हो।
प्रत्यक्ष में वह किचन की ओर बढ़ चली।बहुत सारे काम शेष थे।सासुमां तो थोड़ी देर तक यही पुराण करती रहेगी।यह रोज की बात है। बहु किचन में थी।सासुमां अपनी बेटी को फोन लगा रही थी।अब उनके बीच घंटो तक चलने वाला था सास-बहु पुराण। यह रोज की ही बात थी।
जीवन परिचय
महेश राजा
जन्म:26 फरवरी
शिक्षा:बी.एस.सी.एम.ए. साहित्य.एम.ए.मनोविज्ञान
जनसंपर्क अधिकारी, भारतीय संचार लिमिटेड।
1983 से पहले कविता,कहानियाँ लिखी।फिर लघुकथा और लघुव्यंग्य पर कार्य।
दो पुस्तकें1/बगुलाभगत एवम2/नमस्कार प्रजातंत्र प्रकाशित।
कागज की नाव,संकलन प्रकाशनाधीन।
दस साझा संकलन में लघुकथाऐं प्रकाशित
रचनाएं गुजराती, छतीसगढ़ी, पंजाबी, अंग्रेजी,मलयालम और मराठी,उडिय़ा में अनुदित।
पचपन लघुकथाऐं रविशंकर विश्व विद्यालय के शोध प्रबंध में शामिल।
कनाडा से वसुधा में निरंतर प्रकाशन।
भारत की हर छोटी,बड़ी पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन और प्रकाशन।
आकाशवाणी रायपुर और दूरदर्शन से प्रसारण।
पता:वसंत /51,कालेज रोड़।महासमुंद।छत्तीसगढ़।
493445
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