महासमुंद-जिले के प्रसिद्ध व्यंगकार महेश राजा की लघुकथा पाँच दृश्य:पाँच दृष्टि वर्तमान परिपेक्ष्य में,सावधानी जरूरी,भोजन, अवसरऔर अवसर सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है।
पाँच दृश्य:पाँच दृष्टि /वर्तमान परिपेक्ष्य मेंः
समूचा राष्ट्र एक वैश्विक महामारी के प्रकोप से गुजर रहा था।चारों तरफ हाहाकार थे।लोग बीमार हो रहे थे।मृत्यु को प्राप्त हो रहे थे। शासन ने अपनी तरफ से सारे प्रबंध कर रखे थे।पहले जनता कर्फ्यू फिर धारा 144,लाक डाउन।आवश्यक सेवाओं की पूर्ति, गरीबों के भोजन का प्रबंध,पलायन कर रहे मजदूरों के रहने खाने की व्यवस्था सुचारु रुप से जारी थी।
सेना के वीर,पुलिस महकमा डाक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ रात दिन एक कर जनता की सेवामें लगे हुए थे। लोगों के घर में रहने की हिदायत थी।परंतु कुछ कट्टर और नासमझ लोगों की भूल और लापरवाही ने इस प्रकोप को बढ़ा दिया था। इसी सँदर्भ में एक छोटे से शहर के कुछ घरों में घट रही घटनाओं पर एक दृष्टि ड़ालते है।
(1) एक छोटी सी झोंपडी में एक नन्हीं बच्ची अपनी मांँ के साथ रहती थी। माँ कहीं से मांँग लाती.दोनों किसी तरह से अपना पेट भर लेते।बच्ची छोटी थी.सुबह से माँ कहीं नहीं गयी थी।पर दिन में एक गाड़ी में कुछ लोग आये थे।भोजन के पैकेट और कच्चा अनाज छोड़ गये थे।मोबाईल से फोटो खींचे थे,और आगे बढ़ गये थे।बच्ची की माँ हाथ जोड़ कर खड़ी थी।बच्ची ललचाई नजरों से भोजन के पैकेट देख रही थी।कितने दिनों बाद इतना सारा भोजन उसने देखा था।वह सोचना चाह रही थी,कुछ कहना चाह रही थी।पर,छोटी थी तो चुप रही।माँ बेटी मिल कर जल्दी जल्दी खाना खाने लगी।
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(2) थोडा़ आगे एक कमरें वाले घर में मुन्ना ,अपने बाबू और मांई के साथ रहता था। बाबू दिन भर रिक्शा चलाता और देर शाम घर लौटता।मांई आसपास की काँलोनी के दो तीन घरों में झाड़ू- कटका का काम करती।दिन भर थक कर दो रोटी कमा पाते।
परंतु आज वे दोनों घर पर ही थे।मांई कह रही थी, कोई भयानक बीमारी आयी है,तो मालकिन ने एक माह की पगार देकर उसे घर में रहने को कहा है।बाबू भी सोये हुये थे। मांई बाजू की राशन दुकान से चावल, दाल,आलू ,तैल आदि जरूरी सामान ले आयी थी।सरकार ने दो माह का मुफ्त राशन एक साथ दे दिया था।वह सोच रही थी।आज दाल,चावर रोटी और सब्जी सब कुछ बना कर मुन्ने को खिलायेगी।
मुन्ना सोच रहा,क्या हुआ है,यह उसे नहीं पता.. पर..चलो…अब कुछ दिनों तक मांई बाबू को दिन भर खटना तो नहीं पड़ेगा।यह सोच कर वह खुश हो रहा था।
(3) राजू खेलते खेलते थक गया था।वह अपनी मम्मी के पास रसोई में गया और कुछ खाने को मांँगने लगा।मम्मी ने उसे बाजू में बैठाया,कहा,-“बेटा,बस झट से परांठे और गरम दूध देती हूं।”
भोजन करते हुए राजू ने कहा,-“मम्मी मेरे सब दोस्तों से फोन पर बात हुयी थी।सब कह रहे थे कि उनके पापा उन सबके साथ घर पर ही है।तो फिर मेरे पापा क्यों घर पर नहीं है?वे तो भोजन के लिये भी घर पर नहीं आते?”
मम्मी ने बताया,-“बेटा तुम्हारे पापा एक कर्तव्य शील पुलिस अधिकारी है।हमारे देश पर एक संँकट आया है।तुम्हारे पापा सब की सेवा में लगे है।इसलिये वे घर नहीं आ पा रहे।हम सबको उन पर गर्व है।” राजू समझ गया।सिर हिलाकर दौड़ता हुआ अपने कमरे में जाकर ड्रांईग बनाने लगा।
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(4) पापा मम्मी टी.वी. पर देश की वर्तमान हालात के समाचार सुन रहे थे। तभी रूद्र और गुड़िया अपना अपना गुल्लक लेकर आये।मम्मी कुछ कहती उससे पहले रूद्र ने दोनों गुल्लक फोड़ ड़ाले।अब वे दोनों उसमें निकले रुपयों और सिक्कों का हिसाब लगाने लगे।
पापा मम्मी अचरज भरी नजरों से उन दोनों को देखते रहे।दोनों बच्चे हर माह पापा मम्मी से कुछ रुपये लेकर उसमें ड़ालते और अगले वर्ष अपने लिये नये जूते या बैग खरीदते।रूद्र तो किसी को भी अपना गुल्लक छूने तक न देता।
पूरे रूपये गिन कर बच्चों ने एक साथ कहा,-“1740रुपए ।यह लिजिए पापा,यह आप उन गरीबों को दे दिजिये, जिन्हें इसकी ज्यादा जरुरत है।” मम्मी ने समझाया, बेटा,पर तुम्हारे जूते…।रूद्र बीच में ही कह उठा-“,वो फिर आ जायेंगें।” पापा मम्मी को बड़ा गर्व हो आया बच्चों पर।।
(5) महिला अपने कमरे में पति की तस्वीर के सामने चुप बैठी थी।उसकी आँखों के आँसू भी सूख चुके थे। पिछले दिनों एक मरीज की सेवा करते हुए उसके डाक्टर पति ,स्वयं संक्रमित होकर बीमारी से ग्रसित हो स्वर्ग सिधार गये थे।
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तभी बेटा युगल दौड़ता आया,-“मम्मी, मम्मी देखो,आज सारे समाचार पत्रों में पापा की फोटो छपी है।और टीवी पर भी पापा की बहादुरी के चर्चे हो रहे है।पापा ने देश की बहुत सेवा की है।सब उनके गुणगान गा रहे है।मम्मी ,मैं भी बड़ा होकर ड़ाक्टर ही बनूंँगा और देश और बीमारों की सेवा करूँगा।” महिला ने बेटे को गले से लगाया और रूंधे गले से कहा,-“हाँ ,बेटा,मैं तुम्हें खूब पढ़ाऊंगी और जरूर ड़ाक्टर ही बनाऊँगी।”
सावधानी जरूरी
-शासन ने घोषणा कर दी थी कि एक तारीख से सभी शालाओं में अध्यापन कार्य शुरु हो जायेगा। पालक और बच्चें सब खुश थे।कुछ पालक सुरक्षा को लेकर चिंतित थे। राज समझदार बच्चा था।उसने सारी तैयारियां कर ली थी।साथ ही मास्क और सेनेटाइजर भी रख लिया था।
शाला के प्रांगण में सब पुराने दोस्त इकट्ठे हुए।सभी ने एक दूसरे का हाल पूछा और दूरी बनाये रखी। जैसे ही घंटी बजी।सब प्रार्थना स्थल की ओर बढ़े।
राज ने देखा बिरजू भैया ने घंटी बजाकर हाथ धोये।परंतु उन्होंने मास्क नहीं पहना था।राज ने अपनी बैग से नया मास्क निकाल कर उन्हें दिया और कहा,भैया सावधानी जरूरी है। दूर से राज की कक्षा शिक्षिका यह दृश्य देख रही थी।उन्होंने मुस्कुराकर फिर हाथ उठा कर राज को आशीर्वाद दिया।
भोजन
रिक्शा वाला रमुआ जैसे ही घर पहुंचा और अभी हाथ पांव धो ही रहा था कि पत्नी रामी ने आकर शिकायत शुरू कर दी,आज फिर ,दुकानदार ने सडा हुआ आटा और खराब चावल दे दिये।
रमुआ ने लोटा एक तरफ रखा ,फिर हंसते हुए कहा ,भागवान! यही मिल रहा है,वह कम है क्या?उधार भी तो बहुत चढ गया है।महंगाई ससुरी बढती ही जा रही है,और सवारी अब ई रिक्शा मे बैठना पसंद करे है।हमारे तो बुरे हाल है।कोई बैठता है तो मौलभाव कर कम पैसे देता है।एक लंबी उसाँस ली।
फिर कहा,चल,जो कुछ बना है दे दे.कल को यहभी नसीब न हो। हां चुनाव सर पर है,विरोधी पार्टी वाले महंगाई और टैक्स विरोधी जुलूस निकालने वाले है।अच्छा काम मिलने की उम्मीद है।कुछ रूपये मिल जाये तो किसी अच्छी दुकान से अच्छे चावल ला दूंगा।
चावल और भाजी के साथ प्याज खाते हुए रमुआ फिर बोला,ये नेता लोग हर चुनाव मे गरीबी हटायेंगे का वादा करते है,पर हर बार जीतने के बाद भूल जाते है।हमारा तो कोई माई बाप ही न रहा।सोचता हूं, इस बार किसी को भी वोट न दूं।सभी एक जैसे ही है।
भोजन कर जल्दी से मैले गमछे से हाथ पोंछते हुए अपना सायकिल रिक्शा निकाल कर रैली वाले स्थान की ओर बढ चला।रामी दरवाजे तक आयी,पहले उसे और फिर आसमान की ओर देखते हुए भीतर चली गयी।
अवसर
सुनील ने पूछा-घरवाल़े तैयार हुये? संगीता-“मम्मी को कोई प्राब्लम नहीं,पर,पापा…वे अपने समान उच्च परिवार के विनोद से मेरा ब्याह करने वाले है।वे कभी नहीं मानेंगे।”
औसत परिवार का था सुनील।देखने में सुदर्शन।संयोग से धनी परिवार की इकलौती सुपुत्री संगीता से मित्रता हो गयी थी।बात प्यार मुहब्बत तक पहुँच गयी।
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सुनील को अपने सपने धराशायी होते नजर आये।एशो आराम गाड़ी बँगला खटाई में नजर आने लगे। सुनील-“अब ,क्या करें?भाग जाये। संगीता-“नहीं.. नहीं.. इससे पापा की बदनामी होगी?”
सुनील,-“फिर?अब क्या करेंगे? संगीता सुनील के प्यार में जरूर थी,पर थी समझदार।बोली-“सब वक्त पर छोड़ देते है।” सुनील मुँह लटकाये लौट पड़ा,किसी और अवसर की तलाश में।
जीवन परिचय
महेश राजा
जन्म:26 फरवरी
शिक्षा:बी.एस.सी.एम.ए. साहित्य.एम.ए.मनोविज्ञान
जनसंपर्क अधिकारी, भारतीय संचार लिमिटेड।
1983 से पहले कविता,कहानियाँ लिखी।फिर लघुकथा और लघुव्यंग्य पर कार्य।
दो पुस्तकें1/बगुलाभगत एवम2/नमस्कार प्रजातंत्र प्रकाशित।
कागज की नाव,संकलन प्रकाशनाधीन।
दस साझा संकलन में लघुकथाऐं प्रकाशित
रचनाएं गुजराती, छतीसगढ़ी, पंजाबी, अंग्रेजी,मलयालम और मराठी,उडिय़ा में अनुदित।
पचपन लघुकथाऐं रविशंकर विश्व विद्यालय के शोध प्रबंध में शामिल।
कनाडा से वसुधा में निरंतर प्रकाशन।
भारत की हर छोटी,बड़ी पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन और प्रकाशन।
आकाशवाणी रायपुर और दूरदर्शन से प्रसारण।
पता:वसंत /51,कालेज रोड़।महासमुंद।छत्तीसगढ़।
493445
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