भोपाल-कुछ वर्ष पूर्व तक सर्दियों की शुरुआत होते ही मुरैना की गजक की याद सताने लगती थी, लेकिन धीरे-धीरे इसके लजीज स्वाद ने इसको बारहमासी बना दिया। आज मुरैना की गजक की मांग पूरे वर्ष भर रहती है। यह सच है कि सर्दियों में इसकी डिमांड कई गुना बढ़ जाती है, लेकिन गर्मियों में भी इसको खाने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है।
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यूं मुरैना में गजक की शुरुआत 18वीं शताब्दी के मध्य पूर्व हुई। संयोग से बनी इस गजक रूपी मिठाई को प्रारंभ में छपरा और डलिया में रखकर गाँव-गाँव बेचा जाता था। धीरे-धीरे इसकी प्रसिद्धि बड़ी और यह हाट बाजार में ठेलों पर बिकने लगी। वर्तमान में पोरसा से लेकर सबलगढ़ तक मुरैना जिले की सभी तहसीलों में गजक प्रमुखता से बनती और बिकती है। जिलेभर में छोटे-बड़े गजक निर्माताओं की संख्या एक सैकड़ा से अधिक हैं, वहीं विक्रय करने वालों की संख्या दुकानदारों और हाथ ठेले वालों को मिलाकर गिनी जाए, तो सैकड़ों में बैठेगी।
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गजक के प्रति लोगों का रुझान बढ़ने के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण इसका मिलावट रहित होना है। गुड़ और तिल से बनने वाली गजक के अनेक फायदे भी हैं। तिल के प्रयोग के कारण यह गर्म तासीर रखती है और सर्दियों में इसके सेवन से स्वास्थ्य को लाभ होता है। इसमें कई तरह के विटामिन होते हैं।
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सौंदर्यीकरण में भी यह सहायक है और चेहरे से झुर्रियाँ मिटाने का काम करती है। गजक में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं जैसे आंतों को पुष्ट करना, शुष्क त्वचा को तेल के गुण प्रदान कर, रूखेपन से दूर ले जाना। शरीर को पुष्ट करना, रक्त संचार को ठीक करना।
मुरैना जिले में घरेलू उद्योग के रूप में लगातार विकसित हो रहे
गजक उत्पादन में लगभग 3000 से अधिक लोग रोजगार पा रहे हैं।
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मुरैना गजक का स्वाद जिला और प्रदेश सहित देश की सरहद को
पार कर विदेश तक पहुँच चुका है, इसलिए देश के हर बड़े शहर में
इसके नाम से गजक की दुकानें मिल जाती हैं।
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