महासमुंद-जिले के प्रसिद्ध व्यंगकार महेश राजा की लघुकथा डाँट-फटकार,अकेलापन,यह समय भी गुजर जायेगा व अपनी -अपनी रोजी सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है।
डाँट-फटकार
बड़े साहब का किसी बात पर पत्नी से झगड़ा हो गया था सुबह से मूड़ आँफ था।आफिस देर से पहुँचे। सीनियर आफिसर कोई फाईल लेकर आये तो उन्हें बेवजह खूब डांँट पिलायी। सीनियर ने बाहर आकर तुरंत अपने जूनियर को बुलाकर खूब लताड़ा।
जूनियर आफिसर को कुछ समझ नहीं आया।केबिन मे पहुंँचे तो बड़े बाबू दिख गये।शुरु हो गये,-“बिना बुलाये क्यों आ गये?जाईये ,अपनी टेबल पर जा कर काम किजिये।” बडे बाबू को अचरज हुआ।ऐसा कभी नहीं हुआ।साहब ने हमेंशा साथ बैठा कर चाय पिलायी है।जरूर सुबह सुबह मेम साब से पंगा हुआ होगा।उन्होंने सर झटका।पर मूड़ बिगड़ चुका था।किसी फाईल के बहाने छोटे बाबू को खूब ड़ाँटा।
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छोटे बाबू कहाँ पीछे रहते,उन्होंने चपरासी के कान खींचे,- आज “चाय पानी क्यों नहीं आयी अब तक?सब कामचोर हो गये है।” चपरासी केबिन से निकला,पानी पिलाने वाले छोकरे को झाड़ा-कहा-” चाय ला बे।” छोकरा आफिस से बाहर निकला।उसकी नजर सड़क किनारे सो रहे पूंँछ कटे कुत्ते पर पड़ी।उसने एक भद्दी गाली देते हुए कुत्ते को जोर की लात जमायी।कुत्ते को कुछ समझ नहीं आया कि एकाएक यह क्या हो गया।वह कांँय..कांँय करता एक तरफ भाग खड़ा हुआ। छोकरा तालियांँ बजाते हुए खुश हो कर हंँसने लगा।
अकेलापन
बँद गली का आखरी मकान था।चारों तरफ एक अजीब सी खामोशी छायी हुई थी। एक भीड नुमा रैला आया।दरवाजा खटखटाने लगा।यह चुनाव प्रचार करने वाले लोग थे।आज घर घर पहुंच ने का आखरी दिन था।कल मतदान होना था।
काफी देर खटखटाने के बाद दरवाजा खुला।एक कृशकाय शरीर वाली बुजुर्ग महिला प्रगट हुई।प्रश्न वाचक नजरों से सबको देखने लगी। एक ने हिम्मत कर कहा,दादी वो कल चुनाव है तो…।
अधूरापन, बँटवारा, तलाश जारी है,अजनबी, तलाश जारी है, तेरे मेरे सपने-
वह मौन रही। फिर किसी ने कहा,-“आपको कोई काम हो ‘हमारे लायक सेवा हो तो बताये।” वह शून्य में देखते रही। काम…सेवा…नहीं!फिर पथरीले स्वर में बोली,-“सेवा करनी हो तो अपने माँ -बाप की करना.. अब…जाओ ..तुम लोग।। हो सके तो शोर कम मचाना।दिल की मरीज हूं।जाते समय दरवाजा बंद कर देना।”
लाठी टेकते वह भीतर चली गयी। बाहर देर तक एक अजीब सी खामोशी छायी रही…देर तक…
यह समय भी गुजर जायेगा
टीवी पर विशेष बुलेटिन सुन कर वे हटे।लाकड़ाउन तीन मई तक बढ़ा दिया गया था।विपदा को देखते हुए यह जरुरी भी था। चाय पीते हुए वे पुराने दिन याद कर रहे थे।कितने सुहाने दिन थे।रोज पांच बजे उठकर निवृत होकर योग करते फिर मित्रों के साथ कलेक्टर रोड़ पर सैर को निकल जाते।
वापसी में विश्राम साहु की होटल में मलाईवाली चाय और तात्कालिक विषयों पर ढ़ेर सारी बातें होती। खाने पीने के सदा से शौकीन रहे। स्नान ध्यान के बाद सब्जी बाजार निकलते तो कभी सुखी होटल से समौसे लेते या फिर सुंदर के यहां से ईडली पैक करवाते।
शाम को कभी सुंदर के आलूचाप या बाम्बे भेल या मथुरा वासी की चाट या गोलगप्पे खाते।रात को भोलाराम की मलाई कुल्फी या डिब्बे वाली आइसक्रीम लाते।अचानक से समय परिवर्तन हुआ।एक महामारी ने पूरे विश्व को परेशानी में डाल रखा था।
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संपूर्ण लोकडाउन था।चीजें भी ठीक से नहीं मिल रही थी। दोपहर को पत्नी जी ने लौकी की रसेदार सब्जी,रोटी और चांवल बनाये थे।बेमन से खाकर उठे। .आज टीवी देखने का मन नहीं कर रहा था।मन व्यथित था।सोच रहे थे।हमें तो यह सब नसीब है।बेचारे रोज कमाने खाने वाले गरीब वर्ग का क्या हाल हो रहा होगा?हालांकि सरकार उन तक खाद्य सामग्री पहुंचाने का पूरा प्रयास कर रही थी।
दोपहर सो गये।मन ही मन तय किया ,आज शाम को वे एक समय का उपवास रखेंगे।सिर्फ़ दूध ही लेंगे। देर तक सोते रहे।उठ कर किचन में गये तो पत्नी जी नाश्ते में समौसे बनाने की तैयारी में जुटी थी।उन्हें देख कर मुस्कुरायी।
झूले पर बैठे चाय पीते पीते वर्तमान स्थिति पर विचार कर रहे थे कि पत्नी जी किचन से साड़ी के आँचल से सिर पर उभर आये पसीने को पोंछते हुए आयी।फिर पास बैठकर बोली-“ऐ जी रोज रोज खिचड़ी या दाल चांवल खाकर ऊब गये थे।आज नाश्ते में समौसे बनाये है।सोच रही हूं, रात के भोजन में आपकी पसंदीदा दाल फ्राय और तंदूरी रोटी बना देती हूँ।अभी तो हम सबको घर पर रह कर ही देश का साथ देना होगा,तो क्यों न हँसते हुए इसका सामना करें।”
चाय के कप समेट कर पत्नी जी फिर भीतर चली गयी ।वे सोचने लगे वाकई नारी को ईश्वर ने एक उपहार की तरह बनाया है उसमें बड़ी शक्ति होती है।।मन की बात भी कितना आसानी से पढ़ लेती है,और अपने कर्तव्य में हरदम डटी रहती है।
उन्होंने एक गहरी साँस ली।ईश्वर को याद किया और मन में विचार किया,-सुखदुःख, विपति उनका आना जाना यह सब जीवन चक्र का एक हिस्सा ही है।यह समय भी बीत जायेगा और फिर से अच्छे समय की वापसी होगी ही..तब तक धैर्य से एक दूसरे का सहारा बन कर इस विपदा का सामना करना होगा। मन में इन सकारात्मक भाव का आना उन्हें अच्छा लगा।
अपनी -अपनी रोजी
दो व्यक्ति सुबह सैर करते हुए अचानक मिल गये। अभिवादन की औपचारिकता के बाद एक ने दूसरे से पूछा- -“आप ! क्या करते है?” हर रोज आपको बी .टी .आइ .रोड़ तरफ सैर करते देखता हूँ।”
-“जी,एक सरकारी महकमे में मातहत हूँ। टा्ंसफर होकर आया हूँ।पास ही सरकारी क्वार्टर है।” “-दूसरे ने कदम बढ़ाते हुए बताया।
-“ओह!तो यूंँ कहिये न,कि कुछ नहीं करते,सिर्फ मौज करते है”।पहला ठहाका मार कर ताली बजाते हुए बोला। थोड़ी देर बाद के अंतराल के बाद दूसरे ने पहले से पूछा-“आपने नहीं बताया?आप कौन है और क्या करते है ?कब से है यहाँ?” पहला होंठों में हँसा,-” अरे!मैं !मेरा क्या? ‘छोड़िये न ।लोकल हूँ। कुछ खास नहीं ;बस थोड़ी -सी राजनीति कर लेता हूँ।”
दूसरा अपने कर्म – क्षेत्र से संतुष्ट न था। हर दो साल में जगह बदल जाती थी।टूटे स्वर में बोला,-“अच्छा करते हो भाई ।काश! मैं भी पढ़ा-लिखा न होता,तो कुछ और कर रहा होता।दस से पाँच की सरदर्दी से तो निजात मिलती।”
पहले ने उत्साह से कहा-“मेरे लायक कोई काम होगा तो बताईयेगा।समाज सेवा का काम है अपना तो..। फिर आदतन ठहाका लगाया। दूसरे ने कहा'”-अवश्य आपके शहर में हूँ।काम तो पड़ता ही रहेगा।” चौक आ गया था।दोनों ने हाथ जोड़े फिर एक दूसरे से विदा हुए,।दोनों के चेहरे पर एक अनचाही प्रश्न- वाचक सोच टंँगी हुयी थी।
जीवन परिचय
महेश राजा
जन्म:26 फरवरी
शिक्षा:बी.एस.सी.एम.ए. साहित्य.एम.ए.मनोविज्ञान
जनसंपर्क अधिकारी, भारतीय संचार लिमिटेड।
1983 से पहले कविता,कहानियाँ लिखी।फिर लघुकथा और लघुव्यंग्य पर कार्य।
दो पुस्तकें1/बगुलाभगत एवम2/नमस्कार प्रजातंत्र प्रकाशित।
कागज की नाव,संकलन प्रकाशनाधीन।
दस साझा संकलन में लघुकथाऐं प्रकाशित
रचनाएं गुजराती, छतीसगढ़ी, पंजाबी, अंग्रेजी,मलयालम और मराठी,उडिय़ा में अनुदित।
पचपन लघुकथाऐं रविशंकर विश्व विद्यालय के शोध प्रबंध में शामिल।
कनाडा से वसुधा में निरंतर प्रकाशन।
भारत की हर छोटी,बड़ी पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन और प्रकाशन।
आकाशवाणी रायपुर और दूरदर्शन से प्रसारण।
पता:वसंत /51,कालेज रोड़।महासमुंद।छत्तीसगढ़।
493445
मो.नं.9425201544
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