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इस बार होली में लक्ष्मी आगमन होली का हुडदंग व् इस बार की होली- महेश राजा

इस बार होली में लक्ष्मी आगमन होली का हुडदंग व् इस बार की होली- महेश राजा
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इस बार होली में लक्ष्मी आगमन होली का हुडदंग व् इस बार की होली
महेश राजा

महासमुंद:-जिले के प्रसिद्ध लघु कथाकार महेश राजा की लघु कथाए रंगो के महापर्व होली की कुछ अलग व् रोचक लघुकथा -इस बार होली में लक्ष्मी आगमन होली का हुडदंग व् इस बार की होली सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है ।

इस बार होली में लक्ष्मी आगमन-चारों तरफ ढोल व नगाड़ों की आवाज गूंज रही थी। उसका मन कहीं नहीं लग रहा था।मन भीतर से बहुत बैचेन था।पास के कमरे से पिताजी के खांसने की आवाज आ रही थी। जब भी होली का त्यौहार आता,घर मे खामोशी छा जाती।होली के दिन ही माताजी का देहांत हुआ था। तबसे इस घर में होली नहीं मनायी गयी थी।

यूं सबका मन होता कि होली मनाये,परन्तु पिताजी की खामोश निगाहें देखकर कोई भी साहस न करता। बाहर होली जलने को थी।सभी आनंद से नाच रहे थे। वह अपने कमरे के बरामदे मे चहलकदमी कर रहा था। बाजु के कमरे से पत्नी के कराहने की आवाज आ रही थी।वे पूरे दिनों से थी।दाई ने बताया था,रात तक बच्चा हो जायेगा।

धीरे धीरे बाहर शोर बढने लगा।दस बजने वाले थे। तभी बाहर के कमरे से बेबी के रोने की आवाज आयी।उसका मन हल्का हो गया ।पिताजी भी दौडे दौडे बाहर आये। दाई ने कमरे से निकल कर पिताजी को कहा,बधाई हो दादा जी घर मे लक्ष्मी आयी है। इतना सुनना था कि पिताजी की आंखे चमक उठी। पांच सौ रूपये का नोट दाई मां को दिया।

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इस बार होली में लक्ष्मी आगमन होली का हुडदंग व् इस बार की होली

वह पिताजी के चरणों मे गिर गया। पिताजी ने उसे खूब आशीष दिये। अब वह कुछ देर सोने की सोच रहा था।कल रंग है।वैसे भी आफिस नहीं जाना। तभी पिताजी नये कुरता पाजामा पहने हाथ मे गुलाल लिये आये।बोले,तू बाप बन गया है रे….फिर भी सोया पडा है।चल आज होली की शुरुआत तेरे कमरे से ही करते है।

पूरे घर मे हर्षोल्लास छा गया।वह पत्नी के कमरे मे गया।वह थकी मुस्कान से उसे देख रही थी।पास ही नन्ही परी सोयी पडी थी। सब होलिका पूजन की तैयारी करने लगे। सभी खुश थे कि बरसों बाद इस घर मे होली खेली जायेगी। पिताजी कमरे मे अम्मा की तस्वीर को देख कर आंसू पोंछ रहे थे। मुहल्ले से होली जल गयी थी।उसकी लपटे उपर तक जा रही थी।

इस बार की होली

इस बार होली कुछ फीकी सी थी।वेतन का समय पर न मिलना,महंगाई का भूत सिर पर सवार साथ ही बजप और बच्चों की एक्जाम का भय। इन सब से उपर पत्नी जी का होली के नाम से चिढना।पता नहीं उसे रंगो से एलर्जी थी।यह क्या कि अच्छे खासे चेहरे को भूत सा बना लिया जाये। पहले की बात और थी।त्यौहारों का अपना मजा था।होली पर एक सप्ताह पूर्व ही,नमकीन, गुझिया आदि पकवान बनने शुरु हो जाते।मां रात को टेशू के फूल भीगो देती।सुबह उसी केसरिया रंग से खूब खेलते।केमिकल का डर भी नहीं और प्राकृतिक।

थोडे बडे हुए तो जीवन की पहली लडकी ने ईंद्रधनुषी रंग लिये जीवन मे प्रवेश किया।दिन जैसे हवा मे उड जाते।होली के रोज उसे भिगोने की तरह तरह की तरकीबें लगाते।वह भी ऐसी थी कि एक बार जरूर सामने आ जाती।प्यार के रंग निखर जाते। स्मृतियों के झरोखों से पुरानी होली की यादों के पलछिन आंखो मे कुछ देर के लिये उतर आये:किसी मनमोहक स्वप्न की तरह।फिर एकाएक दृश्य बदला।वर्तमान की धरातल पर लौट आये।

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इस बार होली में लक्ष्मी आगमन होली का हुडदंग व् इस बार की होली

पत्नी जी पुकार रही थी,इस होली मे बाहर निकलोगे कि घर पर रहोगे।बाहर निकलना हो तो पुराने कपडे निकाल दूं।और हां,अजय,विजय :बेटा तुम लोग भी कालोनी मे थोडी देर खेल आना।फिर पढाई भी करनी है। वह मुस्कुरा पडा।अच्छा लगा वर्तमान, अतीत तो पीछे ही छूट गया था।पत्नी की तरफ स्नेहिल नजरों से देखा,बच्चों को जाने दो.मैं घर पर ही लेखन कार्य करूंगा।पत्नी हमेंशा की तरह एक कुशल गृहिणी की तरह किचन मे चली गयी।नाश्ता और भोजन की तैयारी मे जुट जाने को।

होली का हुडदंग

चारों तरफ ढोल नगाड़ों की आवाज से वातावरण गुंज उठा था।बच्चे -बडे सभी के शोर से कालोनी मे प्रफुल्लित माहौल था।सनी अपने रूम में मायूस बैठा था।एक्जाम चल रहे थे।ये सारी आवाजें उसे अपनी ओर खींच रही थी।उसका मन हो रहा था कि पढाई लिखाई छोड कर वह भी इन सबमें शामिल हो जाये।

मम्मी का स्ट्रीक्ट आदेश था,जो कल से ही लागू हो गया था,रंग खेलना और आवारा बच्चों की तरह धूमना जाहिलों का काम है।तुम्हें पढना है,और टाप करना है।अपने रूम से बाहर कहीं नहीं जाओगे।पढाई और केरियर की बात थी,सो पापा भी विवश थे। दो माह पूर्व ही वे टा्ंसफर होकर आये थे। ज्यादा किसी से मेलजोल भी न हुआ था कि परीक्षा भी आ गयी।
उसने अपने बाल नोंच लिये।खिडकी पर जा कर खडा हो गया।पडोस के सोनू मोनू अपनी टोली संग रंग गुलाल खेल रहे थे।एक दूसरे के गले मिल रहे थे।कितने प्रसन्न थे सब।और एक वह कितना विवश……

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वह पिंजरे मे कैद पंछी की तरह ईधर ऊधर चहलकदमी कर रहा था।फिर जाने क्या हुआ।एकाएक पढने की मेज तक आया।स्याही की नयी दवात को अपने नये टी शर्ट पर ऊंडेल दिया। अब वह ठहाके लगा कर हंसने लगा।उसके मन को बडा संतोष मिला।कुरसी पर बैठ कर वह मम्मी के आने और इस बार की होली पर डांट खाने का ईंतजार करने लगा।

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