महासमुंद-जिले के प्रसिद्ध लघुकथाकार महेश राजा की लघुकथा बकरी और जँगल,पोस्टर युद्ध, अपने हिस्से का सुख और तैयारी सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है।
बकरी और जँगल
जंगल के जानवरों ने सोचा कि उन्हें अपना राजा चुन लेना चाहिये। सियार ने कहा-“मैं रात भर चिल्ला चिल्ला कर लोगो को सावधान रखता हूँ।इसलिये राजा मुझे ही बनाओ।” गिद्ध ने कहा,-“मैं दूरदृष्टि वाला हूँ।इसलिए राजा के पद पर सबसे योग्य उम्मीदवार मैं ही हूँ।
चूहा बोला,-“मैं हर वस्तु को कुतरने मे माहिर हूँ।मुझे अपने पैने दाँतों पर भरोसा है।मुझसे अच्छा राजा कोई नहीं हो सकता।” भेडिया बोला -“मुझे अपने पंजो पर पूरा भरोसा है।इन पंजो से कोई नहीं बच सकता,इसलिये राजा मुझे ही बनाओ।”
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तभी उनकी नजर एक मिमियाती हुई बकरी पर पडी।सभी की ईच्छा थी कि आज बकरी के स्वादिष्ट मांस का आनंद लिया जाये। भेडिये ने बकरी की ओर ललचाई नजरों से देखा। सियार चालक था,बोला-“ठहरो!इतने उतावले मत बनो।पहले चुनाव हो जाने दो।बकरी को इसी जंगल में रहना है।हमसे बच कर कहांँ जायेगी?
पोस्टर युद्ध
अभी अभी टीवी पर न्यूज सुनकर हटा।एक राज्य के दो बड़े शहरों में दो अलग पार्टी वालों ने जगह-जगह पोस्टर लगवाये।विषय यह था कि महामारी के इस कठिन दौर में जन प्रतिनिधि लापता।
एक राजनीति में रूचि रखने वाले रूचिर जीसे अमन ने पूछा-” इस तरह आपस में लड़ने से क्या लाभ?यह समय तो एक दूसरे के साथ मिल कर जनसेवा करने का है।जनता पर इन सबका क्या प्रभाव पड़ेगा”
रूचिर हँसे-“भाई ,यह पोस्टर युद्ध है।राजनीति में इसका अपना महत्व है।
यह एक शस्त्र की भूमिका निभाता है।आम आदमी थोड़ी देर के लिये विचलित होता है।फिर अपने पेट की खातिर रोजी-रोटी के चक्कर में फँसा रहता है।”
-“आगे चुनाव में इन बातों का प्रभाव पड़ता होगा न।”-अमन ने फिर पूछा।
रूचिर जी ने कहा-“देखिये, राजनीति का गणित अलग होता है।हमारे देश की जनता भोली है।वे जल्दी ही सब भूला देती है।और फिर इन महारथियोंँ को जन सामान्य को लुभाने के अनेक तरीके आते है।”
थोड़ा रूक कर फिर बोले-“और मजे की बात यह कि ये लोग अपने आलीशान बंगलों में एयरकंडीशनर में बैठ कर हँस हँस कर इसकी समीक्षा बैठक भी करते है।” आजकल की राजनीति में यह आम बात है।आप भी टीवी पर इसे देखो और भूल जाओ।यही सच है।”
अपने हिस्से का सुख:
रीमा त्यौहार में मायके गयी थी।आज वापसी थी।राज को अचानक सुदूर जाना पड़ा। सुबह आठ बजे मंदिर पहुंच कर राज ने घड़कते दिल से फोन लगाया। रीमा ने उठाया। -कैसे हो राज? -तुम बिन कैसा हो सकता हूँ।तुमसे बात नहीं हो पाती तो अवश सा हो जाता हूँ। अच्छा ,अवि कैसा है? तुम से ढ़ेर सारी बातें करनी है।पर,जानता हूँ व्यस्त होगी।
-नहीं.. नहीं.. कुछ देर कर सकते है।
राज ने अपनी कई व्यक्ति गत परेशानी बतायी।फिर सामान्य हो गया।
-राज,एक बात तो है,तुम अपनी जिम्मेदारी पूरी शिद्दत से निभाते हो।तुम्हारे साथ जो भी होगा।खुश रहेगा ही।
राज मन में बुदबुदा या,और मेरी खुशी का क्या?
रीमा ने आगे कहा,तुम मेरे यहाँ आ जाओ।मेरी व्यस्तता में हाथ बँटाओ।
राज खुश हो गया,सच!क्या ऐसा हो सकता है?
प्रत्यक्ष में चुटकी ली-,तुमने यह तो नहीं बताया कि अगर मैं तुम्हारे सारे काम कर दूँ तो एवज में तुम मुझे क्या दोगी?
रीमा एक पल को हिचकिचायी,फिर संयत स्वर में बोली,इतना तो विश्वास है राज कि तुम कोई अनुचित माँग कर मुझे विवश नहीं करोगे।हाँ तुम्हें ढ़ेर सारा स्नेह चाहिये।वो मैं आजीवन देने को प्रस्तुत हूँ।
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-अरे,मैं यह कह रहा था।बदले में तुम्हारे हाथ से बनी चाय?
-वो तो रोज होगी।दोनों साथ मिल कर पीयेंगे,और जीयेंगे।
कुछ पल के मौन के बाद रीमा बोली,-हम दोनों के ही अपने अपने दुःख है।हम समझते भी है।पर,हमारे हिस्से के सुख तो हम आपस में बाँट सकते है न।इस जीवन में जितना स्नेह तुमने दिया है,आज तक किसी ने नहीं दिया।जानती हूँ, मरते दम तक मिलेगा।तुम मुझसे बहुत ज्यादा जुड़ गये हो।शायद!मैं उतना जुड़ नहीं पायी,क्योंकि मेरा तो सब कुछ बँटा हुआ है।तुम निस्वार्थ मुझसे जुड़े हो,यह मेरे जीवन की उपलब्धि है।
राज-ऐसा मत कहो रीमा,तुमने इतने कम समय में क्या कुछ दे दिया है,शायद तुम कल्पना भी नहीं कर सकती।मुझे अच्छा जीवन जीने का सबब मिला है।बस!तुम सदा खुश रहो।दुःख तुम्हें छु भी न पाये।यही चाहता हूँ।मेरी हर दुआओं में तुम शामिल हो। – अच्छा,समय ज्यादा हो गया।तुम्हें काम पर भी तो जाना होगा।कल फिर बातें होंगी।बा..य..।
तैयारी
वे लगभग भागते हुए घर पहुंचे।आलमारी खंगालने लगे। पत्नी ने पूछा,ए जी,क्या हो गया।क्या ढूंढ रहे हो।
उन्होंने बताया ,कुरता पाजामा और खादी के कपडे। पत्नी ने आश्चर्य से पूछा,आज अचानक।तुम तो यह सब पहनते नहीं।
उन्होंने रहस्यमयी ढंग से मुस्कुराते हुए कहा,अब पहनना होगा।चुनाव की तिथि की घोषणा हो गयी है।अब यह ही काम आयेंगे।पांच साल मे एक बार। हमारी रोजीरोटी का साधन है यह। इस बार मेरी लालबती पक्की।झटपट निकाल दो ।ड्राईक्लीन करवा लाता हूं।अब चुनाव तक रोज इसकी जरूरत होगी।और भी ढेर सारी तैयारियां करनी है।
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पत्नी चुप रही।वह जानती थी कि जरूर किसी पार्टी वाले ने ईन्हें आश्वासन दिया होगा कि टिकीट दिलवा देंगे या जीतने पर कोई पद दे देंगे।हर पांच साल मे यही होते चला आया है। पर होता कुछ नहीं. उल्टे जेब से रूपये खर्च होंगे और समय भी। पर वह यह भी जानती थी कि पतिदेव मानेंगे नहीं. और इस मोहपाश मे हमेशा की तरह फंस जायेगे।जैसा कि हर बार आम जनता के साथ होता है।हर चुनाव मे.विकास की बात होती है।पर,प्रतिनिधि चुनाव जीतने के बाद अपने विकास मे लग जाता है।
जीवन परिचय-
जन्म:26 फरवरी
शिक्षा:बी.एस.सी.एम.ए. साहित्य.एम.ए.मनोविज्ञान
जनसंपर्क अधिकारी, भारतीय संचार लिमिटेड।
1983 से पहले कविता,कहानियाँ लिखी।फिर लघुकथा और लघुव्यंग्य पर कार्य।
महेश राजा की दो पुस्तकें1/बगुला भगत एवम2/नमस्कार प्रजातंत्र प्रकाशित।
कागज की नाव,संकलन प्रकाशनाधीन।
दस साझा संकलन में लघुकथाऐं प्रकाशित
रचनाएं गुजराती, छतीसगढ़ी, पंजाबी, अंग्रेजी,मलयालम और मराठी,उडिय़ा में अनुदित।
पचपन लघुकथाऐं रविशंकर विश्व विद्यालय के शोध प्रबंध में शामिल।
कनाडा से वसुधा में निरंतर प्रकाशन।
भारत की हर छोटी,बड़ी पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन और प्रकाशन।
आकाशवाणी रायपुर और दूरदर्शन से प्रसारण।
पता:वसंत /51,कालेज रोड़।महासमुंद।छत्तीसगढ़।
493445
मो.नं.9425201544
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