महासमुंद-जिले के प्रसिद्ध लघुकथाकार महेश राजा Mahesh Raja की लघुकथा जागी आँखों का सपना,मजदूर दिवस व् वे आँखे सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है।
जागी आँखों का सपना
समय ठीक नहीं चल रहा था।लह बोर हो रहा था।चुपचाप सामने वाली सफेद दीवार को देख रहा था। महसूस हुआ,सब कुछ ठीक हो गया है,पहले की तरह। सभी पहले के जैसे ही सामान्य जीवन जीने लगे है।वह भी चौक वाले समौसे और शाम के मथुरावासी गुपचुप चाट का मजा ले रहा है।बच्चे स्कूल जाने लगे है।सब स्वस्थ दिख रहे है।
तभी दीवार पर एक छिपकीली ने भागते कीड़े को पकड़ लिया था।कीड़ा बचने को छटपटा रहा था। उसकी जागी हुयी तंद्रा भंग हुयी।वास्तविक ता से सामना हुआ जो बहुत कष्टदायक था। फिर भी एक क्षण को भी सकारात्मक सोचना उसे अच्छा लगा।वह सोच रहा था।जल्द ही सब ठीक होगा।
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मजदूर दिवस
वे बडे प्रसन्न चित अपने बंगले पहुंचे। आज मजदूर दिवस पर एक मजदूर यूनियन ने उन्हें मुख्य अतिधि की भूमिका मे आमंत्रित किया था।उन्होंने अपना भाषण एक विद्वान मित्र से लिखवाया था।जिसमे मजदूरों के उत्थान, उनके पी एफ एवम स्वास्थ्य संबंधी बातों का जिक्र था।सबसे ज्यादा तालियां उन्हें बाल मजदूरी के विरोध में कही गयी बातों पर मिली।उन्होंने यह भी कहा था कि बच्चों का अधिकार पढाई आदि का है,उनसे मजदूरी करवाना सामाजिक अपराध है।उनका स्वागत बहुत ही अच्छे ढंग से हुआ था।
स्टडी रूम मे बैठकर उन्होंने सर्वेंट को पानी लाने का आदेश दिया।शहर के धनाढ्य लोगो मे उनकी गिनती है।वे समाजसेवी एवम क ई संस्था के संरक्षक भी है।उनकी अनेक फैक्ट्री ज है,जिसमे अधिक तर बालमजदूर ही कार्य करते है।राजनीति में उनकी पकड है,समाज मे रसूख भी।तो कोई उनकी शिकायत नहीं कर पाता।
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एक लगभग पंद्रह वर्षीय किशोर एक ट्रे मे ठंडे पानी का गिलास लेकर आया।यह भी उनकी फेक्ट्री मे काम करता था।फुर्तीला था,सो उसे घरकाम के लिए ले आये थे। उन्होंने धीरे से आंखे खोली,पानी का गिलास लिया।फिर बालक से कहा,अरे राजू बहुत थक गया हूं, पांव दबा दे। राजू जमीन पर बैठ कर पैर दबाने लगा,उन्होंने फिर से आंखे बंद कर ली और आज के कार्यक्रम मे हुई अपनी वाहवाही का आनंद लेने लगे।
वे आँखे
रोज की तरह रीमा चार बजे उठ गयी।दैनिक कार्य से निवृत होकर आज शंकराचार्य जी का भजन सुनने लगी।चाह कर भी मोड़ तक जाने की हिम्मत न हो रही थी।दो मासूम आँखे जेहन में पीछा कर रही थी।
दरअसल रूटीन में रीमा रोज घर से निकल तक मोड़ तक भ्रमण करती।उस दिन अचानक उसकी नजर गली के साइड वाले मकान पर पड़ी।एक मासूम बच्ची आँगन बुहार रही थी।आदतन रीमा की आँखे मुस्कुरा उठी।बच्ची उसे ही देख रही थी।
अब यह रोज का नियम हो गया।एक सुबह बच्ची की माँ से परिचय हुआ।सुनकर दुःख हुआ।बच्चे के पिता गुजर गये थे।आसपास के घरों में काम कर अपना व बच्ची का पेट पालती थी।अब तो घर भी बिक गया है।कोई रिश्तेदार मदद को आगे नहीं आया।शहर में बुजुर्ग माता पिता है।बच्ची को लेकर शहर शिफ्ट होने का सोच रही है।
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एक रोज रीमा कुछ रूपये लेकर गयी।पर बच्ची को देने की हिम्मत न हुयी।वह औरत बहुत स्वाभिमानी थी।महिला ने बताया एक दो दिन में चले जायेंगे।
रीमा ने कहा था,अगर आप रहने का प्रबंध कर ले तो दोनों समय का भोजन और बच्ची की जिम्मेदारी मेरी।बदले में आप घर का काम कर देना। महिला तैयार न हुयी।पर शाम को बच्ची को लेकर घर आने का वादा किया। रीमा ने बाजार से बच्ची के लिये,कपडे,बैग और खिलौने मँगवाये।घर पर समौसे भी बनाये।
वह शाम यादगार रही।रीमा ने महिला का फोन नंबर लिया और कहा,कभी भी जरूरत हो बात कर बताना।बच्ची मासूमियत से रीमा की आँखों में देखते रही। उस रोज रीमा के पति ने कहा,यह तुमने अच्छा किया।तुम्हारे इस स्नेह भाव के सहारे बच्ची जी लेगी।
रोज वह मिलती बस देखती रहती।एक दिन वे चले गये। रीमा की आँखों से झर झर आँसू बहने लगे।एक अलग सा रिश्ता कायम हो गया था। तभी नीचे से अवि ने पुकारा।आँखे पोँंछते हुए रीमा सामान्य हुयी,आ रही हूँ बेटे……।
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