महासमुंद:-जिले के प्रसिद्ध लघु कथाकार महेश राजा के व्यंजनों का मजा व् स्नेह का गणित पाठकों के लिए उपलब्ध है शादी का सीजन चल रहा था। काफी दिनों से घर पर रहकर,घर का खाना खाकर लोग ऊब गये थे।वे एन्जॉय करना चाह रहे थे।फिर आज तो हद हो गयी।चार निमंत्रण एक साथ मिले। आफिस के मित्रों मे हडकंप मच गया ।सारी पार्टियां एक ही रोज है,कहाँ कहांँ जाये।खाने के शौकीन मुंगेरी लाल ने तो यहाँ तक कह दिया कि….एक ही दिन क्यों मर हे है।अलग अलग दिनों मे रखते तो हर जगह अलग अलग व्यंजनों के खाने का आनंद आता।
मैंने पूछा,”-अब क्या करोगे?”
वह बोले-“पता लगाते है कि किसके यहां अच्छा माल बना है।वहीं पहले चलेंगे।सौ रूपये का लिफाफा देंगे ,तो कुछ तो वसूल करना ही पडेगा न।”
मैंने कहा-“यह तो तुम्हारी आदत में शामिल है।,सौ की जगह दो सौ रूपये
वसूल नहीं लेते,कोई काम नहीं करते । तुम्हारी इस रूचि से तो पूरा आफिस परीचित है।”
स्नेह का गणित:-
वे बहुत सहज और सरल व्यक्ति थे।पत्नी को गुजरे पांच बरस हो गये।बेटा एब्रॉड में था।दो साल में आ पाता। उन्होंने एक कालोनी में छोटा घर बनवा लिया था।किताबों का उन्हें बहुत शौक था,और अध्यात्म का भी। अकेले रहते तो पडोस के बच्चे उन्हें आ घेरते।वे उनके साथ खेलते और उन्हें अच्छी कहानियां सुनाते।
पीली कोठी का बच्चा उनका प्रिय था।वह उन्हें लेकर बगीचा जाते।उसे सायक्लिंग करवाते। कभी कभी पीली कोठी की बहु उन से दूध या सब्जी भी मंगवा लेती।वे खुशी खुशी सब काम करते। अभिजात्य लोगों की कालोनी थी।पीली कोठी वाली अधेड महिला बहु से कह रही थी।भाई साहब लल्ला का बड़ा खँयाल रखे है।कभी चाय पानी पूछ लिया कर।इससे स्नेह संबंध बने रहते है। (महेश राजा महासमुंद-छत्तीसगढ़.9425201544)
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