Home आलेख उजियारा-रोशनी का पर्व के साथ अन्य लघुकथाऐ महेश राजा की

उजियारा-रोशनी का पर्व के साथ अन्य लघुकथाऐ महेश राजा की

एक कालोनी के फ्लैट में जगमगाती लाईट जल रही थी।सब कुछ चमक रहा था

प्रसिद्ध लघु कथाकार महेश राजा की पढ़िए लघुकथा

महासमुंद- जिले के ख्यातिप्राप्त लघुकथाकार महेश राजा की लघु कथाए -उजियारा,दीपावलीःएक चित्र, दर्द की लकीरें,बेटे घर लौट आओ, दिवाली की सफाई,रूतबा और स्टेट्स व् अपने अपने त्यौहार सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है ।

उजियारा-रोशनी का पर्व-हर घर में दीपक रोशन थे। एक कालोनी के फ्लैट में जगमगाती लाईट जल रही थी।सब कुछ चमक रहा था। सामने ही वर्कर क्वार्टर में दीपक अपने माता पिता के साथ रहता था।दीपक की मां ने रंगोली बनायी थी,और दीपक जलाया था।घर पर भी तुलसी क्यारे व मंदिर में दीपक जल रहा था।

उजियारा-रोशनी का पर्व के साथ अन्य लघुकथाऐ महेश राजा की

फ्लैट मालिक के पुत्र बंटी पटाखे चला रहा था,और जगमगाते बल्ब की रोशनी पर ईतरा रहा था।वह दीपक को चिढा भी रहा था।दीपक खामोश फुलझड़ी हाथ में लिये ,दीपक निहार रहा था। तभी कोई खराबी आ जाने से बिजली गुल हो गयी।बंगलें में अंधेरा छा गया।बंटी रोने लगा। उधर दीपक के छोटे से घर में दीयें रोशन हो रहे थे । दीपक मुस्कराता हुआ दीपक की रोशनी में फुलझड़ी जला रहा था।

दीपावलीःएक चित्र

इस बार की दीपावली अजीब थी।मौसम भी अपने तेवर दिखा रहा था।हर दूसरे रोज पानी गिर जाता। महावीर कालोनी में रहने वाले दंपति चुपचाप बैठे थे।महिला टीवी पर ईंडियन आईडल देख रही थी।पुरूष पुरानी पत्रिका से कहानी पढ रहे थे।
दोनों को ईंतजार था,रात होने का।कुछ हल्का फुल्का खाकर सो जाये।

रूटीन में रोज जैसी पूजा की गयी थी।महिला ने चार दीपक बाहर,दो आंगन में और एक तुलसी पौधे पर जलाया था। बाहर पटाखे चलाये जा रहे थे।चारों तरफ रंग बिरंगी रोशनी चमक रही थी। पिछली बार वे बच्चों के साथ थे।उन्हें बखूबी याद है,पोते लव के साथ खूब आतिशबाजीयां की थी।उस बार की दीपावली बहुत ही खुश गवार थी।

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पुरूष को पोते के साथ बिताये पल याद आ रहे थे,खासकर दंगल दंगल खेलना।पर,यह सब तो बीते दिनों की बात थी।आज वे एकदम अकेले थे। सादा भोजन तैयार था।वे दरवाजा बंद करने वाले थे कि पडौस का विहान दरवाजे पर दिखा।भीतर आकर -“हैप्पी दिवाली दादा,दादी “कह कर चरण स्पर्श करने लगा।बातें करने लगा।बातों में बताया कि मम्मी ने सिखाया है कि बडों के पैर छू कर आशीर्वाद लेना।

दोनों भावुक हो गये।महिला ने बिस्किट और फल निकाले।पुरूष ने लव की याद में फ्रिज में रखी केडबरीज चाकलेट ला कर दी।कुछ देर में विहान अपने घर चला गया। दोनों बुजुर्ग चेहरों पर मुस्कान आ गयी।अब वे भोजन कर शयनकक्ष जाने वाले थे।उन्हें पता था,आज रात बडी अच्छी नींद आने वाली है।कोई भी दवाई लेने की जरूरत नहीं पडने वाली थी।
बाहर बच्चे पटाखे चला रहे थे।

 दर्द की लकीरें

दीपावली की शाम।पूजा आराधना सम्पन्न हो गयी थी।वे सपत्नीक बच्चों की बातें कर रहे थे। तभी पाठकजी पहुंचे।जिंदगी भर बच्चों के सुख के लिये प्रबंध करते रहे,एक दिन दोनों बेटे अपने परिवार को लेकर अलग हो गये। चाय-नाश्ते के दौरान पाठकजी ने घर की गृहिणी से पूछा’-इस धनतेरस आपने क्या खरीदी की?

गृहिणी उत्साह से बता रही थी।एक बेटा और बेटी है।दोनों के लिये ही नयी घडी और एक फ्रीज खरीदा है।दोनों के नाम से कुछ बचत भी की है,आगे दो प्लाट दोनों के नाम से खरीदने है।भविष्य में दोनों को एक एक मकान देना है। पाठक जी ने ध्यान से सब कुछ सुना उन्हें अपने बच्चों की याद हो आयी, बड़े ही दुःखी स्वर में कहा,-एक छोटा सा मकान अपने लिये भी रखना,जाने कब..जरूरत पड़ जाये..।

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उनके चेहरे पर दर्द की अनगिनत लकीरें थी,जो साफ पढ़ी जा सकती थी। वातावरण को हल्का करने मेजबान ने कहा,-अरे,पाठक जी,गुझिया तो आपने चखी ही नहीं। भई ,हमारी श्रीमती जी गुझिया एक्सपर्ट है।

बेटे घर लौट आओ

दीपावली का त्यौहार।रोशनियों की झगमगाहट।चारों तरफ खुशी और उमंग का वातावरण। बाबू जीवन लाल अपनी बैठक से सबको हंसते,खेलते देख रहे थे।काफी दिनों बाद पूरा परिवार ईकट्ठा हो पाया था।शेष समय तोसब अपने अपने कामधंधों में मशगूल रहते थे। लेकिन जीवनलाल जी को एक कमी खल रही थी।मंझला विनोद साथ नहीं था।

विनोद बचपन से ही शरारती था।गलत संगत में पड कर पढ लिख न पाया था।दुकान पर बिठा दिया था।पर वह मनमानी करता ।बाद में स्वयं की पसंद से शादी कर अलग हो गया।इस बात ने जीवनलाल जी का दिल ही तोड दिया था। विवाह के बाद ही विनोद पत्नी को लेकर ससुराल में शिफ्ट हो गया था।तब से बातचीत, आना जाना सब बंद था।घर में सबकी ईच्छा विनोद से मिलने की होती,परंतु जीवनलाल जी के डर से कोई कुछ न कहता।

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आज, जीवनलाल जी सब बेटे बहू,बच्चों को साथ देख कर मन ही मन रो पडे।काश!आज विनोद ,बहु और बिटिया सची साथ होते तो कितना अच्छा होता। चश्मा निकाल कर उन्होंने अपने आंसू पोंछे फिर बडे बेटे को आवाज दी,”भयला,विनोद को फोन तो लगा बेटा और कहदे कि त्यौहार में सबके साथ चार दिन आकर रह ले।”

घर के सब आश्चर्य भरी नजरों से उन्हें देख रहे थे।मन ही मन खुश हो रहे थे। हालांकि वे जानते थे कि विनोद जिद्दी है,नहीं आयेगा।फिर भी उनके मन से आवाज निकल रही थी,बेटा घर लौट आओ। ऐसा सोचते हुए उनकी आंखे भर आयी।वे जानते थे कि आज रात उन्हें नींद नहीं आयेगी। आंखे किवाड़ पर ही लगी रहेगी,प्रतीक्षा रत।

 दिवाली की सफाई

दिपावली का त्यौहार नजदीक था।बेटा देश से आया हुआ था।घर में सब खुश थे। घर के मुखिया साहित्य से जुडे थे।घर में एक कमरा उनकी पुरानी किताबों, पत्र पत्रिकाओं से लदा पडा था। बेटा सफाई पसंद था।मां से बोला,यह सब क्या भर कर रखा है।चलो साफसफाई करते है।पुरानी पुस्तकों को रद्दी में दे देते है।”

मां ने कहा,तुम्हारे पापा मना करते है।” वे बाजू के कमरे से यह सब सुन रहे थे।पिछले बतीस वर्ष के साहित्य सफर की यादें जुडी थी,इन किताबों से।कई छपी अनछपी रचनाएं,पत्र,डायरी और ढेर सारी यादें।हालांकि बहुत सारी किताबों के पन्ने समय के साथ पीले पड चुके थे।पर,इन सबके साथ उनकी भावनाएं जुडी थी।

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बेटा इस बार जिद में था।वे थके स्वर में पत्नी से बोले,-“ठीक है,बडे दिनों बाद आया है बेटा जैसा कहता है करो।मैं मन्दिर जा रहा हूं।देर से आऊंगा।तब तक तुम लोग सफाई निपटा दो।”

वे जानते थे इतने दिनों से सम्भाली हुई उनकी धरोहर आज घर से चली जायेगी।कितने दिनों का साथ था।पुरानी यादें लिपटी हुई थी।वे मन ही मन रो रहे थे।थके कदमों से मंदिर की तरफ चल पडे।अब शायद सबकुछ नये सिरे से शुरु करना होगा।क्या कर पायेंगे वे ऐसा….?

रूतबा और स्टेट्स

वैभवजी बहुत बड़े बिजनेस मेन थे।शहर में ही रच बस गये थे।उनका अपना रूतबा था। इस दीपावली पर उन्होंने हुंडई का नया माडल वेन्यू लिया था। छोटाभाई गांव में पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता।खेत थे।उसकी देख भाल करता था।

इस बार त्यौहार पर वे मिल नहीं पाये थे।उन्होंने भाईदूज पर गांव में भाई को फोन लगाया,सारी बातें बतायी।छोटा सरल ह्रदय था।खुश हुआ।वैभव जी ने गुडिया अम्बु को कहा,-“दिसंबर छुट्टियों में जरूर आना।तुम्हारा गिफ्ट रखा है।और हां,आओगी तो नयी कार में घूमने चलेंगे।”

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कुछ देर रूककर छोटे से बोले,”बड़े बड़े लोगों का आनाजाना लगे रहता है।नयी कार रहने से ईम्प्रेशन पडता है। लोग प्रभावित होते है।शहर में आजकल यही हो रहा है।ठीक है अपना ख्याल रखियो।बहु और बच्चों को लेकर शहर जल्दी आना।रखता हूं।कोई मिलने आया है।”

अपने अपने त्यौहार

दुखिया जल्दी जल्दी हाथ चला रही थी।कल दिपावली का त्यौहार था।उसने कल की छुट्टी और कुछ रुपये मालकिन से मांगे थे।मालकिन ने उसकी छुट्टी नामंजूर कर दी थी,यह कह कर कि कल दोपहर कुछ मेहमान भोजन पर आने वाले थे।कम से कम एन टाईम वह जरूर आये।

उसे मनुवा की बडी याद आ रही थी।वह मिठाई और नये कपडों के लिये जिद कर रहा था।सोच रही थी,कल काम जल्दी निबटा कर मालकिन का मूड देखकर पैसे मांगेगी।उसने मनुवा से वायदा किया था कि इस बार नये कपडे और मिठाई जरूर ला देगीमनुवा की पीली पडती आंखों में चमक देख कर उसे अच्छा लगा था।

सुबह से ही सब लोग नये कपडे पहन कर घूम रहे थे।वह आज काम पर जल्दी चली आयी थी।मालकिन के घर से मिठे पकवानों की सुगंध आ रही थी। मालकिन का बेटा राजू ने नये कपडे पहन रखे थे।एकदम राजकुमार लग रहा था।उसे गोदी में उठाकर उसका माथा चूमकर वह अपने काम में लग गयी।

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दोपहर होने को थी।मेहमानों का आना जाना जारी था।उसके मन में बैचेनी थी।पर,मालकिन की व्यस्तता देख कर चुप रही।कैसे पैसे मांगे।सारा ध्यान मनुवा की तरफ था।झोपड़ी के बाहर सबको नये कपडों में देखकर उसका मन मचल रहा होगा।उसे भूख भी लगी होगी।उसे यूं खडा देखकर मालकिन ने आवाज लगायी,जल्दी जल्दी हाथ चलाओ।

वह रसोई में आ गयी।ढेर सारी मिठाईयां देख कर मन हुआ कि थोडी सी मिठाई आंचल में बांध ले।पर उसने ऐसा नहीं किया।आंखों में पानी भर आया और मनुवा का कुम्हलाता चेहरा भी याद आया। चार बजने को थे।उसने हिम्मत कर मालकिन से पैसे मांगे।मालकिन ने कहा,पहले पूरे बर्तन साफ कर ले फिर देती हूं। वह बर्तन साफ करते हुए सोच रही थी,आज फिर घर लौटते देर हो जायेगी और मनुवा रोते रोते सो जायेगा।