महासमुन्द- ईश्वर की उपासना कभी भी व्यर्थ नहीं होता चाहे भयपूर्वक करें या भयमुक्त होकर वो सार्थक ही होता है इसलिए सुख, दुःख, निराशा या उत्साह कभी भी हो और जब कोई मार्ग ना सूझे तब ईश्वर की उपासना ही एकमात्र उपाय है। सुधा होरीलाल शर्मा द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह के तीसरे दिवस आचार्य मोनू महाराज ने डर शब्द का विस्तृत व्याख्या करते हुए बताया कि गलत धारणा जो सही की तरह प्रतीत होता है वही डर है।
भगवान् की उपासना से मोक्ष
क्लब पारा में आयोजित श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह के तीसरे दिवस परीक्षित के भय का वर्णन करते हुए आचार्य मोनू महाराज ने सिद्धार्थ का उदाहरण देते हुए बताया कि बुढापा और मृत व्यक्ति की चिता को देखकर सिद्धार्थ को ये संशय हो गया कि मेरी भी दशा क्या ऎसी ही होगी ? फिर ऐसा सोचकर उनके मन में वैराग्य की प्राप्ति हुई उसी प्रकार ध्रुव, प्रहलाद और मीराबाई ने निडरता के साथ भगवान् की उपासना की जिससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई। सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि सृष्टि की उत्पत्ति के समय जिस शब्द ब्रह्म का नाद हुआ हिन्दू उसे ओम कहते हैं वही शब्द ब्रह्म सभी धर्मों में अलग-अलग नाम से प्रचलित है।
मानव के लिए प्रासंगिक
सृष्टि की उत्पत्ति के अवसर पर भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी को ज्ञान, विज्ञान और परमज्ञान के विषय में जो बातें बताई थी वह आज भी प्रत्येक मानव के लिए प्रासंगिक है ज्ञान के अंतर्गत प्रत्येक जीव भगवान् का अंश है और भगवान में जीव के अंश विद्यमान हैं, विज्ञान के अंतर्गत कण-कण में ईश्वर विद्यमान हैं, परम ज्ञान के अंतर्गत जब मनुष्य की मृत्यु होती है तो जीव, ईश्वर में समाहित हो जाता है, जिस प्रकार नदियों का अंतिम लक्ष्य सागर में समाहित होना होता है ।
उसी प्रकार प्रत्येक जीव का लक्ष्य ईश्वर में विलीन होना ही होता है, ज्ञानी मनुष्य इस जन्म-मृत्यु के चक्र में भ्रमित नहीं होते । आचार्य मोनू महाराज द्वारा विदुर कथा, वराह अवतार, सती चरित्र तथा शिव विवाह का रोचक वर्णन किया गया।
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