इंदौर-मध्यप्रदेश इंदौर के प्रसिद्ध लघु कथाकार जितेन्द्र कुमार गुप्ता की लघु कथा अनफिट,अब और नहीं व् गुमनाम ताज सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है ।
अनफिट “अरे,देखो कितना बड़ा हादसा हुआ है? लोगों ने जैसे सारा ईमान धरम बेच खाया है।” निर्माण विभाग के हेड आफिस में इंजिनियर के रूप में नये पदस्थ जतिन ने पेपर पढ़ते हुए द्रवित आवाज में पत्नि सुधा से कहा। पेपर में निर्माणाधीन पुल के ढहने और चार मजदुरों के दबकर मरने की खबर थी। तय था कि पुरे मामले में दोषियों को ढुंढने के लिए अब जाँच कमेटी बैठाई जायेगी ।
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जतिन जैसे ही आफिस पहुँचा….”बॉस ने बुलाया है” ,संदेश उसे दिया गया। “जी ,सर।” जतिन केबिन में घुसा। सामने ही शर्माजी, वर्माजी और शैलेषजी भी बैठे मंद- मंद मुस्कुरा रहे थे। पिछली बार किशनपुरा पुलिया कांड की कमेटी के भी ये सदस्य थे। पुलिया -काँड में भी तीन लोग मर गये थे। कहते है ,जाँच- कार्य में कमेटी के सदस्यों के पौ -बारह हो गये थे। ठेकेदार, बिल्डर्स ,दलालों के साथ मिल- मिलाकर,मनमाफिक रिपोर्ट बनाकर मामला निपटा दिया गया था।
“आओ जतिन! कल मोहनगढ़ में जो पुल हादसा हुआ, उसके बारे में तो जानते ही होगें न! इस बार जाँच कमेटी में पुराने,अनुभवी चेहरों के साथ- साथ,युवा चेहरे के रूप में तुम्हे भी लेने का प्रस्ताव रखा गया है। मै चाहता हूँ ,आप चारों आपस में सलाह कर मुझे बता दें तो मै जाँच कमेटी सदस्यों के रूप में घोषणा कर दूँ।” बॉस भी हर्षित लग रहे थे।
” मैं सहमत हूँ सर। मेरी नजरों के आगे उन बेकसूर मजदूरों के रोते -बिलखते, मासूम बच्चे, बेहाल रोती बेवा और परिजन घुम रहे है , सर । मै अपनी निष्पक्ष रिपोर्ट शीघ्र ही दे दूँगा सर!” “हूँ”! आँखों ही आँखों में इशारे हुए,और निर्णय हो गया। अनफिट पात्र का रोल काटा जा चुका था।
अब और नहीं
” हुजुर,देख लिजीये । सारे सबूत, सारे गवाह मेरे मुअक्किल को बेगुनाह साबित करते है,इसलिये अदालत से मेरी दरख्वास्त है कि मेरे मुअक्किल को बरी किया जावे।” जज रश्मि के सामने एक गंभीर केस था जिसमें एक नाबालिग बच्ची से छेड़छाड़ के आरोप में उसका करीबी ही आरोपी था। बचाव पक्ष बहुत मजबूत था । उसने बच्ची से स्वयं बात की थी । ईशारों में उसने जो बताया था उससे रश्मि को बचपन में खुद के साथ घटित घटना याद हो आई । और साथ ही याद आ गई अपनी बेबसी भी, जिसके कारण वो कुछ नही कर सकी थी।
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आज फिर उसका बचपन सामने था और फिर उसके हाथ और कलम को सबूतों के हाथ ने जकड़ रखा था। उसे फर्ज और अंतर्आत्मा में से चुनना था। “सारे सबूतों के आधार पर………बरी किया जाता है। साथ ही पीड़ित पक्ष चाहे तो हाई कोर्ट में अपील कर सकता है।” फर्ज ने फर्ज पूरा किया। और उसी समय अपना इस्तीफा भी भेज दिया। हाईकोर्ट में पीड़िता की ओर से केस लड़ने का ठान लिया था उसने। अब न वो मजबूर थी और न किसी बेबस को हारने देना चाहती थी।
फर्ज और अन्तर्आत्मा दोनो मुस्कुरा उठे थे।
गुमनाम ताज
“देखो अमित,मैं कोई बहाना, अब नही सुनना चाहती।हम शादी कब करेंगें ? अब और मैं इस बात को नहीं छुपा सकती!” रानू ने अमित से कहा। ” भरोसा करो मुझ पर,मैंने समस्या का हल ढूंढ लिया है ।”अमीत मुस्कुराकर बोला। ” अच्छा,सच ,इतना प्यार करते हो?” रानू ने अमित की आँखों में झांकते हुए कहा।
“अरे ,इतना ज्यादा, जितना शाहजहाँ ने मुमताज से भी नहीं किया होगा।” “अच्छा तो मेरे लिये ताजमहल बना दोगे!”
“हाँ,हाँ क्यों नहीं ! बनवाऊंगा क्या, बनवा लिया है।”पीछे से आकर अमित ने अचानक रानू का ही दुपट्टा हाथों में पकड़कर उसके गले में कस दिया । मुमताज फिर दफन हो गई, मगर गुमनाम खंडहर में।
परिचय
नाम :- जितेन्द्र कुमार गुप्ता
पिता का नाम:- स्व. श्रीरामचंन्द्र गुप्ता
जन्मस्थान :- मां रेवा के किनारे बसे गांव महेश्वर
शिक्षा:- विज्ञान स्नातक (गणित)
प्राथमिक शिक्षा महेश्वर में उच्च शिक्षा बुरहानपुर से
व्यवसाय :- श्रम मंत्रालय के अधीन विभाग में अधिकारी
लेखन कर्म :- कहानी ,कविता , गजल,. शे’र विशेष रूचि लघुकथा लेखन में । राजभाषा विभाग की “दिशा” और
“मालवा ज्योति” पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन , म.प्र.हिन्दी साहित्य समिति की मुख पत्रिका ” वीणा ” और “क्षितिज” में लघुकथाएं और कविताएं प्रकाशित , क्रांतिबोल समाचार पत्र में रचनायें , सोशल मिडिया के लघुकथाकार, लघुकथा के परिंदे, गागर में सागर, जिन्दगीनामा,…..और भी कई समुह में सक्रिय भागीदारी
प्रकाशन :-
लघुकथाओं का प्रथम महाविशेषांक “ लघुकथा कलश” में रचनायें ,साझा लघुकथा संग्रह….
“भाषा सहोदरी”,“सफ़र संवेदनाओं का” “आसपास से गुजरते हुए” “ दीप देहरी पर” अनाथ जीवन का दर्द”
में लघुकथायें प्रकाशित..।
साझा काव्य संग्रह “अभिव्यक्ति” काव्य करूणा“में रचनायें प्रकाशित।
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