महासमुंद-जिले के प्रसिद्ध व्यंगकार महेश राजा की लघुकथा नव वर्ष का स्वागत है,चुनाव के बाद , लाकर,दूरियाँ,सरकारी नौकरी और डर व् पिछला बरस सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है।
नव वर्ष का स्वागत है-बड़ी उदास सी घड़ी थी।2021का आखरी दिन। बूढ़ा साल लाठी के सहारे धीरे धीरे क्षितिज की ओर बढ़ रहा था।उसके चेहरे पर च़िताओं की झांईयाँ थी।दुःखों की सिलवटें थी।उसने इस बरस बहुत कुछ भोगा था। उसे इंतजार था उस घड़ी का जब उसके विश्राम का समय आने.वाला था।2022 नव.शिशु के आगमन का इंतजार…..। दूर उसे एक प्रकाश दिख रहा था।उसकी बूढ़ी आँखे चोंधिया गयी।वह इस तकलीफ़ में भी मुस्कुरा पड़ा।
आखिर वो घड़ी आ ही गयी।2022 की छाया ने 2021को नमन किया। बूढ़े साल ने उस बालक को आशीष दिया।स्वगत कहा-“,बेटे,मेरा समय मानव जाति के लिये बहुत कठिनाई का रहा।महामारी,नये नये वैरियेंट लिये करौना,आगजनी,अपहरण ,बलात्कार और किसान आंदोलन।इस बूढ़ी आँखों ने बहुत कुछ सहा।ढ़ेर सारी लाशों को कँधा दिया।मासूम की सिसकियां सुनी…और भी बहुत कुछ…।अब मैं थक गया हूँ बेटा।तुम आओ….और अपना स्थान ग्रहण करों।बहुत थक गया हूँ…..। अलौकिक प्रकाश निकट आ गया था।उसकी आकृति स्पष्ट हो रही थी।सुकुमार शिशु।
बूढ़ी आँखे मुस्कुरा उठी।पुराने साल ने नये वर्ष का स्वागत किया ।आशीष दिया।तुम्हारा आगमन समूचे विश्व के लिये वरदान सिद्ध हो…।सब कुछ ठीक हो….। धीरे धीरे पुराना साल अँधकार में गुम हो गया।नये वर्ष का आगमन हुआ।आसमान में चमकीले प्रकाश की किरणें फूट निकला।2022 मुस्कुराता खड़ा था।चारों तरफ आतिशबाजियाँ हो रही थी।नव वर्ष का आगमन हो चुका था। सबने उत्साह से नव वर्ष का स्वागत किया।चारों तरफ खुशनुमा वातावरण स्थापित हो चुका था।
चुनाव के बाद-
जंगल मे चुनाव की तिथि की घोषणा हो गयी थी। बकरे मेमना ने लंच टाईम मे अपनी मम्मी को बताया, -माम,इस बार मे शेरजी की तरफ से प्रचार कार्य कर रहा हूँ।कमेटी ने मुझे चुनाव संचालक बनाया है।
बकरी देवी भीतर तक कांँप उठी। मेमना उत्साह से बता रहा था,अगर इस बार चुनाव जीत गये तो हमारी किस्मत ही बदल जायेगी। बकरे की अम्मा जानती थी कि हर चुनाव के परिणाम के बाद क्या होता है। उसने उपर की तरफ हाथ उठा कर दुआएँ मांगी,या खुदा!हमारी कौम की रक्षा करना।
लाकर-
एक ताजा ताजा बने नेताजी ने घर आकर पत्नी को बताया,आज हमने भी लाकर ले लिया।
पत्नी ने आश्चर्य से पूछा, लाकर…आप क्या करोगे इसका? नेताजी मूंँछो मे मुस्कुराये,.-अरी भाग्य वान…मुखौटे रखूंगा, उसमे।आखिर वही तो हमारी पूंँजी है।
दूरियाँ-
दूसरा लाकडाउन का पंदरहवाँ दिन था।घर पर आटा समाप्त हो गया था।पिछली बार पैकेट वाला आटा लाये थे तो रोटियाँ अच्छी नहीं बनी थी,तो इस बार गेंहूँ लेकर आये थे।
पत्नी ने धूप दिखा कर एक झोले में भर दिया,साथ ही बड़ी वाली पन्नी भी दी थी।जैसे ही बाहर निकले पड़ोस के विनोद जी ने पूछ लिया,कहाँ जा रहे है?बताने पर वे फिर बोले-‘”उन लोगों की आटा चक्की पर मत जाना,समझ गये न,आज कल कोई भरोसा नहीं कौन क्या कर बैठे।”
अब वे हिचके।थोडी़ दूर गंजपारा वाली चक्की पर गये तो पता चला,वहां आटा मोटा पीसा रहा है। अब वे हिम्मत कर अपनी पुरानी जगह बाजार चौक गये।दो तीन लोग ही थे।जैसे ही वे पहुंचे,चक्की वाले ने पूछा,-“बड़े दिन बाद आये साहब?” उन्होंने बताया,हालात ही कुछ ऐसे है.आजकल किराने की दुकान से आटे की थैली ही ले लेते है।
सरकारी नौकरी और डर
एक पोस्ट आफिस में डाक सार्टिंग के समय असहनीय दुर्गन्ध उठी।एक लिफाफे को देखकर डाकिये को शक हुआ।पोस्ट मास्टर के और दो गवाहों के समक्ष ,लिफाफा खोला गया.तो उसमे से एक मरा हुआ चूहा निकला। उसे देखकर पोस्ट मास्टर साहब डर गये।
मैंने पूछा,क्या हो डाक साब?एट चूहे से डर गये,वो भी मरे हुए से। पोस्टमास्टर बडी सादगी से बोले,भई!हम तो ,सरकारी नौकर ठहरे।हमें तो सभी से डरना पडता है।चाहे वह ईंसान हो या मरा हुआ चूहा।
पिछला बरस
वे दार्शनिक, विचारक थे।फोन पर बहुत अरसे बात महानगर के एक मित्र से बात हुयी। वे बोले,-“मित्र आप तो हमें भूल ही गये।कभी याद ही नहीं किया।” इस पर मित्र बोले,पिछला बरस बहुत ही भयानक रहा।कटु स्मृति लिये।इसलिये याद ही नहीं कर पाये।
इस पर दार्शनिक विचारक ने कहा-“ऐसा नहीं है,भाई।पिछला बरस हमें बहुत कुछ दे गया। विषम परिस्थितियों से लड़ने की ताकत,कम रूपयों में घर चलाना,एक दूसरे की मदद करना।आदि सीखा गया।जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रख कर जीने का पाठ पढ़ा गया।आने वाले साल में सब ठीक होगा,यह आश्वासन देता गया। बस!स्वयं पर भरोसा रखते हुए थोडा़ धैर्य और सावधानी रखने की बात कह गया,पिछला बरस।
जीवन परिचय
महेश राजा
जन्म:26 फरवरी
शिक्षा:बी.एस.सी.एम.ए. साहित्य.एम.ए.मनोविज्ञान
जनसंपर्क अधिकारी, भारतीय संचार लिमिटेड।
1983 से पहले कविता,कहानियाँ लिखी।फिर लघुकथा और लघुव्यंग्य पर कार्य।
दो पुस्तकें1/बगुलाभगत एवम2/नमस्कार प्रजातंत्र प्रकाशित।
कागज की नाव,संकलन प्रकाशनाधीन।
दस साझा संकलन में लघुकथाऐं प्रकाशित
रचनाएं गुजराती, छतीसगढ़ी, पंजाबी, अंग्रेजी,मलयालम और मराठी,उडिय़ा में अनुदित।
पचपन लघुकथाऐं रविशंकर विश्व विद्यालय के शोध प्रबंध में शामिल।
कनाडा से वसुधा में निरंतर प्रकाशन।
भारत की हर छोटी,बड़ी पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन और प्रकाशन।
आकाशवाणी रायपुर और दूरदर्शन से प्रसारण।
पता:वसंत /51,कालेज रोड़।महासमुंद।छत्तीसगढ़।
493445
मो.नं.9425201544
हमसे जुड़े :–https://dailynewsservices.com/