महेश राजा की लघु-कथाए” हालात” “स्वीकारोक्ति” “बँटवारा” “बेड़ियाँ ” व् थकान

साब यह ले जाईये किसी गरीब बच्चे को दिजियेगा,बहुत दुआऐं मिलेगी। उसके चेहरे पर गरीबी और अभाव की आड़ी तिरछी लकीरें साफ दिख रही थी

प्रसिद्ध लघु कथाकार महेश राजा की पढ़िए लघुकथा

महासमुंद:-जिले के प्रसिद्ध लघु कथाकार महेश राजा की लघु कहानी “हालात” “स्वीकारोक्ति” “बँटवारा” “बेड़ियाँ ” व् थकान सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है ।

हालात-नववर्ष की तीसरी सँध्या। हल्की हल्की ठंड़ पड़ रही थी। वे शाम को भ्रमण को निकले। मुख्य चौक पर भीड़ कम थी। जबकि आज रविवार था। लोहिया चौक पर मथुरा वासी चाट वाले भैयाजी ने राधे राधे कहा। उन्होंने हँस कर अभिवादन किया। भैयाजी बोले,साहब कभी आईये न आजकल बीस रुपये की बारह गुपचुप दे रहे है। तीस रूपये में असल घी की टिकिया चाट। स्वाद ऐसा कि ऊँगलियाँ चाट जाये। उन्होंने वादा किया।

थोडी दूर पर तुमगांव चौक पर साहुजी समौसा वाले के यहाँ गरमागरम नमकीन कडाही से निकल रहे थे। साहु ने उन्हें देखकर नमस्कार किया,सर,आप तो राह ही भूल गये। उन्होंने सब बात कही। वह बोला,सच कहते है साहब महामारी ने जीना मुश्किल कर दिया। देश के हालात ठीक नहीं है। साहब आजकल पार्सल की सुविधा भी है। गरम समौसों के साथ मटर टमाटर की चटनी,दहीं की लहसुन वाली चटनी भी है।

वहाँ से निकल कर वे वापस नेहरू चौक आये। कांग्रेस भवन के पास वाले हनुमानजी मंदिर पर बैठे। सामने उन्हें गुब्बारे वाले खान दिख गये। दाढ़ी सफेद हो गयी है। बच्चे जब छोटे थे तो अक्सर गुब्बारे ले जाते थे। खान चाचा ने सलाम कहा,साब ,गुब्बारे ले जाईये। उन्होंने कहा,बच्चे सब बडे हो गये। सब दूर शहर में है।

खान चाचा ने सिर हिलाया। फिर पीले रंग का एक शानदार गुब्बारा फूला कर दिया। साब यह ले जाईये किसी गरीब बच्चे को दिजियेगा,बहुत दुआऐं मिलेगी। उसके चेहरे पर गरीबी और अभाव की आड़ी तिरछी लकीरें साफ दिख रही थी। उन्होंने मुस्कुराकर गुब्बारा लेकर पर्स से दस रूपये निकाल कर मना करने के बावजूद खान भाई को थमा दिया। अब भारी कदमों से घर की तरफ बढ़ चले। हालात यह रही सड़क पर भीड़ कम थी। यदा कदा ही लोग दिख रहे थे।

 

स्वीकारोक्ति

रविवार,गृहिणियों के लिये ज्यादा व्यस्त दिवस,रीमा किचन में ही थी,अचानक फोन बजा।कोई अननोन नंबर था।आदतानुसार रीमा ने फोन ले लिया,सामने वाले की आवाज पहचान ली-“के.पी. सर आप….आपको मेरा नंबर कहाँ से मिला?”

केपी. बोले-“वो सब बाद में । आज बधाई देने और खुशखबरी बताने फोन किया है।” के.पी. सर एक प्रोजेक्ट में उसके हेड थे।तब किसी दूसरे राज्य में रीमा की ड्यूटी थी। जगह न होने के कारण के.पी. सर ने ही सारी व्यवस्था की थी। आज…अचानक..उनका फोन…। के,पी. कह रहे थे,तुम्हारी छात्रा याने मेरी बेटी सुनंदा की कालेज में जाब लग गयी है,और उसकी सगाई होने वाली है। सब तुम्हारे मार्ग दर्शन के कारण हुआ।मैं आभारी हूँ।

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आज मैं एक कन्फैंश करना चाहता हूँ। जब तुम यहाँ काम कर रही थी।मैं आदर्श वादी होते हुए भी तुम पर क्रश कर बैठा।मैं अपनी मेज पर बैठा तुम्हारे सुंदर चेहरे पर के काले तिल को देखा करता था। मैं यह भी स्वीकार करता हूँ कि मैंने रजिस्ट्रर से तुम्हारा नंबर चुराया था।

बाद दिनों में तुम्हारे पवित्र व्यवहार के कारण मेरी आँख खुली। मैं अपने बेटे से जुड़ पाया। बेटी तो तुम सी पारस पत्थर के स्पर्श से सोना बन गयी। मैं नंबर दो के रूपये कमाता था। तुम से जुड़कर,तुम्हारा निष्कपट व्यवहार पाकर मैं सुधर गया.अब मैं सबकी मदद करता हूँ। और गलत काम से बचता हूँ।

यह सब तुम्हारी वजह से….आभार…। तुम्हें बेटी के विवाह पर जरूर आना है। उन्होंने फोन रख दिया था। रीमा मंत्रमुग्ध थी। वह पूरी तन्मयता से अवि के लिये नाश्ता बनाने लगी।

बँटवारा

दोनों भाईयों के बीच बँटवारा होना था। मतभेद और मनभेद दोनों काफी बढ़ गये थे। हालांकि दोनों की पत्नियाँ अलग होना नहीं चाह रही थी। दोनों के एक एक संतान थी और माँ साथ थी। माँ ने बहुत कोशिश की सुलह की। पर, संभव न हो पाया।

चल अचल सँपति बराबर बराबर बाँट दी गयी।अब माँ की बात आयी कि वह किसके साथ रहेगी। शहर में रह रही शादीशुदा बेटी चाहती थी माँ उसके साथ रहे,पर,पुराने सँस्कारों से घिरी माँ को यह मंजूर न था। अँत में वे रो पडी,-“तुम लोगों के पिता के चले जाने के बाद कितनी कठिनाई से दोनों को पाला,पढ़ाया लिखाया। पर,एकता का पाठ न पढ़ा सकी।”

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अपने आँसू पोंछ कर बोली,-“ठीक है।तुम लोग रहो ,अपने ढ़ंग से। मैं तुममें से किसी के पास नहीं रहूँगी । अलग कमरा लेकर रहूँगी। तुम लोगों के पिता की पेंशन ही काफी है,मेरे लिये। जिसको मिलना होगा,आ जाना। “सब चुप सिर झुकाए खड़े थे।

बेड़ियाँ

भांजी के जन्मदिन पर चाँदी की पायल जिसमें छोटे छोटे घूँघरू लगे थे,पहना कर वह बहुत खुश हो गयी। पुरानी बात ताजा हो गयी। वह छोटी थी तो बहुत प्यारी और चुलबुली। बापाजी उसे राधा रानी पुकारते। वह हमेंशा बापा के साथ रहती। घर हो या खेत। बापा आदर्श वादी शिक्षक थे। सैलरी कम थी,तो शहर से उसके लिये स्टील की पायल लाये थे।जब वह पहन कर मेड़ पर दौडती। रूनझून आवाज आती।

इन्हीं पलों के साथ बड़ी हो गयी.बापा ने एक बड़े परिवार में उसकी शादी कर दी। पुरानी पायल टूट गयी तो ससुराल में कभी नहीं पहनी। बापा उसे छोड़ कर चले गये। वह रह गयी उनकी यादों के साथ,अकेली। वह सबके लिये कुछ न कुछ लाती। चूडिय़ां, अन्य महिला आर्टिफिशियल ज्वैलरी,ईत्यादि। अपने लिये कभी कुछ न लाती। ससुराल में आकर गृहस्थी की बेड़ियों में ऐसे जकड़ी फिर कभी आजाद न हो पायी।

थकान

आफिस से लौटते ही थी। फ्रेश होने वाशरूम जा ही रही थी कि पतिदेव का फोन आ गया।वह दौरे से लौट रहे थे। कह रहे थे। बड़ी थकान है,खाकर जल्दी सो जाऊंगा। आफिस में ज्यादा काम था।थक कर चूर हो गयी। दूसरे दो दिनों से इनका फोन न आया था तो मन भी विचलित था। मैड को बुखार होने से वह तीन दिनों से नहीं आ रही थी। कूक को शाम की छुट्टी दे रखी थी।गैस खतम हो गया था,वह भूल गयी थी।

उसने जल्दी जल्दी हीटर पर चाय चढ़ायी। ढ़ेर सारे काम थे।दिन के बर्तन माँझने थे। मशीन चलाना था। माँ जी की तबियत खराब थी उनकी दवाई ले आयी थी। खाने में उनके लिये खिचड़ी बनानी थी। बेटा पास्ता की मांग कर रहा था। उसने सब काम निपटाये। बेडरूम की बेडशीट बदली। इन्हें सब कुछ साफ सुथरा चाहिये। भोजन में सब बनाना होगा,दो सब्जी,दाल भात,परांठे और दलिया भी।

वह एक मशीन की तरह जुट गयी। बेटु का होमवर्क करा कर,खिला पिलाकर जल्दी सुलाना होगा। मां जी को खिचड़ी खिलानी होगी,और स्वयं….उसकी जरूरतें कम थी। सब से आखिर में एक-डेढ़ रोटी दाल के साथ खा लेगी। एकाएक उसे कुछ याद आया। आलमारी से आइ पिल्स का पैकेट निकाल कर बैडरूम में रख दिया।

पतिदेव की थकान का अर्थ वह अच्छी तरह से जानती थी। भले ही स्वयं थकी माँदी हो,परंतु पत्नी धर्म तो निभाना ही होगा। उसे याद आया,एक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट की रिपोर्ट तैयार कर सुबह दस बजे से पहले मेल करना होगा। सब सो जायें…..तब वह तैयार करेगी रिपोर्ट…..।

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