Home आलेख कीमत, ईमानदारी,लाकर, दायित्व बोध व् उपयोगिता:-महेश राजा की लघु कथा

कीमत, ईमानदारी,लाकर, दायित्व बोध व् उपयोगिता:-महेश राजा की लघु कथा

प्रसिद्ध लघु कथाकार महेश राजा की पढ़िए लघुकथा

जिले के प्रसिद्ध लघु कथाकार महेश राजा की लघु कथाए कीमत, ईमानदारी,लाकर, दायित्व बोध व् उपयोगिता सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है ।

कीमत-रीमा फोन पर कह रही थी।घर परिवार के लिये इतना कुछ करती हूँ, पर मेरी कदर नहीं। राज ने हँस कर कहा,-“कौन कहता है,हम है न। वैसे भी घर का जोगी जोगड़ा।समय आने पर वे सब जानेंगे। तुम सर्वगुण संपन्न हो यह सब जानते है।

साहित्य की बातें हो ही रही थी की रीमा के दूसरे फोन पर पडोसन भाभी का फोन आ गया।उनके घर दोपहर को पूजा थी तो एक कामवाली की जरूरत थी। रीमा ने जवाब दिया कि कामवाली व्यस्त रहती है,वह तो नहीं आ पायेगी।पर,हाँ मेरी जरूरत हो तो कालेज से हाफ डे लेकर हाथ बँटाने आ सकती हूँ।

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राज ने फोन रख दिया।वह रीमा को जानता था ।दूसरों की मदद के लिये वह हमेंशा तैयार रहती हूँ।पूरी तन्मयता के साथ।पर उसे रीमा के समय की कीमत का भी अंदाजा था।राज के लिये रीमा बहुत कीमती थी।मन ही उसे नमन कर दुआएं देता हुए लेखन में जुट गया।

ईमानदारी

थ्री टीयर,स्लीपर कोच के पास बडी भीड थी।जैसे ही टीटसी बोगी से बाहर निकले,लोगो के हुजूम ने उन्हें घेर लिया। लोग 200 एवम 500 के नोट लेकर टीसी की तरफ बढे।कंडक्टर ने कहा, नहीं.. नहीं।।।। रहने दीजिए,भीतर जाकर बैठिये…बर्थ होगी तो मै जरूर आबंटित करूंगा।

उन्होंने किसी से भी पैसे नहीं लिये,और कुछ लोगो को ईमानदारी से रसीद काट कर सीट एलाट की। मै रोजाना अपडाउन करता था,मुझसे रहा नहीं गया,क्यों हो,साहब आज …ईमानदारी से…क्या बात है?मैंने राज जानना चाहा। वे सपाट स्वर मे बोले,आगे विजिलेंस की चेकिंग है।

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लाकर

एक ताजा ताजा बने नेताजी ने घर आकर पत्नी को बताया,आज हमने भी लाकर ले लिया। पत्नी ने आश्चर्य से पूछा, लाकर…आप क्या करोगे इसका? नेताजी मूंँछो मे मुस्कुराये,.-अरी भाग्य वान…मुखौटे रखूंगा, उसमे।आखिर वही तो हमारी पूंँजी है।

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दायित्व बोध

हर रोज की तरह सुबह की सैर के बाद राज अपनी मनपसंद जगह हनुमान मंदिर पर बैठा हुआ था। रीमा का फोन आया। वह गाँव गयी हुयी थी।कल लौटेगी। रीमा एक पढ़ी लिखी,शानदार आफिस में एक्जीक्यूटिव थी।अच्छे परिवार से थी।सब कुछ ठीक था,पर कहीं कुछ छूट गया था।

रीमा कह रही थी।गाँव आयी हूँ जरूरी काम से।इस बहाने माँ से मिलना हो गया।अवि भी साथ है,नानी से मिल कर खुश है। रीमा ने बताया अगले माह चाचा ससुर के घर पर शादी है।चाचा नहीं रहे तो सब कुछ इन्हें और मुझे करना है।इन्होंने सारा भार मुझ पर डाल दिया है।समय कम है।रुपयों की परवाह नहीं।पर,मेरे पास सीमित साधन है,कार भी न ही तो सबको कह दिया है खर्च करते जाओ बिल मुझे दे दो।

यहाँ यह बताना लाजिमी होगा।रीमा ने ससुराल को पूरी तरह से अपना लिया है।सास जी,ससुराल साईड के उन्नीस बच्चे साथ ही अवि।सबकी पूरी जिम्मेदारी एक कुशल सारथी की तरह निभाई है।अभी पता चला कि भतीजी दो बरस पोस्ट ग्रेजुएशन के लिये उसके पास आकर रहेगी।

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यह बताते हुए उसका स्वर भीगा लगा। राज मुझे जिम्मेदारी वहन से कोई परहेज नहीं।रूपयों की भी चिंता नहीं।मुझे वाहवाही भी नहीं चाहिये।परंतु छोटी छोटी बातों पर आलोचना, निंदा यह सब मुझे भीतर तक तकलीफ़ देती है।अब ऊब गयी हूँ।जी चाहता है सब छोड़कर कहीं चली जाऊं।पर,फिर अवि…..।

बापा जी ने इनके साथ ब्याहते समय कहा था कि ससुराल को अपना लेना पूरा दायित्व निभाना।बस…..आज तक दायित्व बोध ही तो निभा रही हूँ। बहुत तकलीफ़ होती है। राज को भी रोना आ गया।उसने कहा,रीमा तुम्हें हिम्मत रखनी हे,अपने लिये,अवि के लिये।हम सब के लिये……।प्लीज अपना ख्याल रखना।।

उपयोगिता

बडे सबेरे मित्र का फोन आया।कह रहे थे-“आज तिथि बहुत अच्छी पड़ रही है। आपकी भाभी की ईच्छा एक धार्मिक अनुष्ठान की है।घर के ही दस-पंद्रह लोग रहेंगे।आपकी भी जरूरत होगी।” उन्होंने सहर्ष कहा-“बताईये,मुझे क्या करना होगा। मैं तैयार हूँ।”

मित्र ने कहा-“कुछ ज्यादा नहीं।बारह बजे तक आ जाईयेगा।पूजा वगैरह होती रहेगी।मेहमानों के साथ आपको रहना होगा।आप अच्छे लेखक है।बातें भी अच्छी करते है तो लोगों का मनोरंजन होगा।वे बोरियत महसूस नहीं करेंगे। फिर सब साथ भोजन लेंगे।”

 

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