दिल्ली-कर्नाटक में अपनी प्रगतिशील परियोजना REHAB (मधुमक्खियों का उपयोग करके हाथी-मानव संघर्ष को कम करना) की सफलता से उत्साहित होकर खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) ने अब इस परियोजना को असम में दोहराया है। KVIC के अध्यक्ष विनय कुमार सक्सेना ने शुक्रवार को असम के गोलपारा जिले के ग्राम मोरनोई में आरई-एचएबी परियोजना का शुभारंभ किया, इस इलाके में हाथी-मानव संघर्ष की काफी घटनाएं होती हैं।
असम में स्थानीय वन विभाग के सहयोग से इस परियोजना को लागू किया गया है। घने जंगलों से घिरे हुए असम के एक बड़े हिस्से में हाथियों का आना-जाना लगा रहता है, वर्ष 2014 से 2019 के बीच हाथियों के हमलों के कारण 332 लोगों की मौत हुई है।
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आरई-एचएबी परियोजना के तहत मानवीय बस्तियों में हाथियों के प्रवेश को अवरुद्ध करने के लिए उनके मार्ग में मधुमक्खी पालन के बक्से स्थापित करके “मधुमक्खियों की बाड़” लगाई जाती है। इन बक्सों को एक तार से जोड़ा जाता है ताकि जब हाथी वहां से गुजरने का प्रयास करता है, तो एक खिंचाव या दबाव के कारण मधुमक्खियां हाथियों के झुंड की तरफ चली आती हैं और उन्हें आगे बढ़ने से रोकती हैं।
यह परियोजना जानवरों को कोई नुकसान पहुंचाए बिना ही मानव और जंगली जानवरों के बीच संघर्षों को कम करने का एक किफ़ायती तरीका है। यह वैज्ञानिक रूप से सही पाया गया है कि हाथी मधुमक्खियों से चिढ़ जाते हैं। उनको इस बात का भी भय होता है कि मधुमक्खियां उनकी सूंड और आंखों के अन्य संवेदनशील अंदरूनी हिस्सों में काट सकती हैं। मधुमक्खियों के सामूहिक कोलाहल से हाथी परेशान हो जाते हैं और वे वापस लौटने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
केवीआईसी के अध्यक्ष ने कहा कि प्रोजेक्ट आरई-एचएबी हाथी-मानव संघर्षों का एक स्थायी समाधान साबित होगा जो असम में बहुत आम बात है। आरई-एचएबी परियोजना से कर्नाटक में एक बड़ी सफलता मिल रही है और इसलिए इसे असम में अधिक दक्षता तथा बेहतर तकनीकी जानकारी के साथ लॉन्च किया गया है। हमें उम्मीद है कि इस परियोजना के जरिये आने वाले महीनों में हाथियों के हमलों में कमी आएगी और स्थानीय ग्रामीणों को उनके खेतों में वापस लाया जा सकेगा।
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15 मार्च 2021 को कर्नाटक के कोडागु जिले में 11 स्थानों पर प्रोजेक्ट आरई-एचएबी शुरू किया गया था। केवल 6 महीनों में ही, इस परियोजना ने हाथियों के हमलों को 70% तक कम कर दिया है।
भारत में हर साल हाथियों के हमले से करीब 500 लोगों की मौत हो जाती है। यह देश भर में बड़ी बिल्लियों (बाघ, तेंदुआ,चीता आदि) के हमलों से होने वाली मौतों से लगभग 10 गुना अधिक है। साल 2015 से 2020 तक हाथी के हमलों में लगभग 2500 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इसके उलट इस संख्या का लगभग पांचवां हिस्सा यानी करीब 500 हाथियों की भी पिछले 5 वर्षों में इंसानों की जवाबी कार्रवाई में मौत हो चुकी है।
बीते समय में, सरकारें हाथियों को रोकने के लिए खाई खोदने और बाड़ लगाने के काम पर करोड़ों रुपये खर्च कर चुकी हैं। साथ ही मानव जीवन के नुकसान के मुआवजे पर सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। ये खाइयां और कांटेदार तार की बाड़ अक्सर हाथियों के बच्चों की मौत का कारण बनती है और इस प्रकार यह उपाय इन विचारों को काफी हद तक अव्यावहारिक बना देता है।
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