महासमुंद-जिले के प्रसिद्ध लघुकथाकार महेश राजा की लघुकथा देहात का कवि सम्मेलन,मंत्रालय के पीछे वाले मित्र,नयी पीढ़ी की चिंता,व् चौदह बाय बारह सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है।
देहात का कवि सम्मेलन
सरपंच जी हमारे पास आये।बोले-इस बार हम नवरात्र के आखरी दिन अपने गांव में कवि सम्मेलन रखवाना चाहते है…..कुछ कवियों के नाम तो बताइये।
मैंने पांच-सात लोकल कवियों के नाम लिखवा दिये। उन्होंने पूछा-क्या खरचा बैठेगा?और यह भी बताइये कि क्या इंतजाम करना पड़ेगा?हम लोग पहली बार कवि-सम्मेलन करवा रहे हैं।
मैंने कहा-खरचा तो कुछ भी नहीं आयेगा…मैंने ऐसे नाम लिखवाए हैं कि उन कवियों को अपनी कविता सुनाने की इच्छा चौबीसों घंटे रहती हैं।यदि आप आने-जाने का इंतजाम कर देंगे तो ठीक हैं नहीं तो वे साइकिल से पहुँच जायेंगे।
वह बोले-फिर भी कुछ तो खाने- पीने का इंतजाम करना ही होगा न।
मैंने कहा-खाने में उनकी रूचि कम ही रहती है।यदि आप पीने का इंतजाम कर देंगे तो वे रात-भर आपको कविताऐंँ सुनाते रहेंगे।
आलोचक मित्र,कार्य कुशलता,पोस्टर,चुनाव,कुत्ता और ईंसान:- महेश राजा की लघु कथा
मंत्रालय के पीछे वाले मित्र:-
दोस्त राजधानी में रहते थे।इस बार मिलने मेरे शहर आये।फिर बातों का सिलसिला शुरु हुआ। मित्र बोले-इधर की क्या स्थिति है? मैंने कहा-हम तो कस्बे वाले हैं।आप ही बतलाये राजधानी के क्या हाल है?
वह बोले-उधर तो एक सौ एक परसैंट अपने भैया जी की स्थिति मजबूत है।नये प्रदेश में उन्होंने बहुत काम किया है।तुम बताओ कस्बों में लोगों की क्या सोच है ?
मैंने कहा-लोग तो भैया जी से खुश नहीं हैं।उन्होंने छोटे कार्यकर्ता ओं को जड़ से काट दिया हैं।
वह बोले-यह तो कार्यकर्ताओं की फैलाई हुई हवा हैं।देखना इस बार चुनाव होंगे अपने भैया जी ही दुबारा अपना मंत्रिमंडल बनाऐंगे।मेरे हिसाब से उन्हें कोई ड़िगा नहीं सकता।उनकी जीत और मुख्यमंत्री पद पक्का हैं।
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मैंने कहा-बहुत दिनों बाद मिले हो।राजधानी में घर कहाँ है तुम्हारा? वह बोले-ठीक मंत्रालय के पीछे हैं।किसी से भी पूछोगे तो बता देगा।
मैंने कहा-इसलिये तुम पर मंत्रालय और अपने मुख्यमंत्री का प्रभाव हैं।वह कुछ नहीं बोले।मैं समझ गया कि मुख्यमंत्री जी के यहाँ उनकी कोई फाईल जरूर अटकी होगी।
नयी पीढ़ी की चिंता:-
उन्हें इन दिनों नयी पीढ़ी की चिंता है।मुझसे कहने लगे-आज भी पुराने गाने कितने मेलोडियस हैं…उनमें मैलोडी के साथ अच्छी शायरी है,अच्छी कविता हैं..मैं तो पुराने गानों का बड़ा शौकीन हूँ।मदनमोहन और नौशाद की धुनें आज भी मुझे हर बार ताजगी देती है।
मैंने कहा-आप सही हैं।आप के पाँप गीतों में उछल-कूद के सिवाय कुछ भी नहीं हैं…न शब्द हैं और न ही कर्णप्रिय धुन है।मैं तो समझता हूँ कि पाश्चात्य संगीत हमारी नयी पीढ़ी को बरबाद कर रहा है।
वह बोले-मैं तो ऐसा संगीत बिल्कुल पसंद नहीं करता….हमारी शास्त्रीय गायन की परंपरा को नष्ट करने की साजिश चल रही है इसके पीछे।पुराने गीतों में शास्त्रीय रागों काटच बराबर रहता है और यही वजह है कि उनकी धुनें हमें मीठी लगती हैं।
उनकी बातों से मैंने अंदाजा लगा लिया हैं कि वे अच्छी गायकी और अच्छे संगीत के पक्षधर है।फिर उन्होंने अपने पसंदीदा पुराने गानों का भी जिक्र किया और यह भी बताया कि पुराने गायक अपनी गायकी के प्रति कितने समर्पित थे।
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कुछ दिनों के बाद उनसे मेरी मुलाकात एक सी.डी. कार्नर पर हो गयी।वे अपने पसंदीदा गीतों का कैसेट लेने आये होंगे।यही सोच कर मैंने कहा-पाकीजा के गीतों के बारे में आपकी क्या राय हैं?
वह बोले-बहुत ही अच्छे हैं।जितनी बार सुनो हर बार मीठे लगते हैं।उन्होंने दुकानदार से पूछा-कोई नया पाँप कैसेट आया?और इसके पहले कि मैं उन से कुछ पूछता,वह बोले-क्या करें….बच्चे इसके बिना नहीं रहते।बस बच्चे खुश रहें,इसके अलावा हमें और चाहिये भी क्या।
चौदह बाय बारह :-
सुबह आँख देर से खुली।दरवाजा खोला तो शुद्ध हवाएं नासिका में प्रवेश कर गयी।सुदूर पहाडों का मनोरम दृश्य आँखों को सुकून प्रदान कर रहा था।
बेटा आकर पूछ रहा था,अच्छी नींद आयी पापा।कमरा ठीक है न,बिस्तर छोटा नहीं।और क्या क्या चाहिये? वे मन ही मन मुस्कुरा उठे।दोनों बहु-बेटा बहुत ख्याल रखते है।इस उम्र में वैसे ही जरूरतें कम होती चली जाती है।
कल ही लंबी यात्रा से छोटे के यहाँ आये थे।थकान थी तो जल्दी सो गये थे।रात सपनों के जंगल में विचरतें बीती।तरह तरह के मनोभाव आते रहे।
यह कमरा बहुत आरामदेह लगा।लगभग चौदह बाय बारह।उन्हें याद आया गुजरात से जब वे सब आये थे तो किराये के मकान में दस सदस्य रहते।दो रुम किचन।छह बाय छह का शेयरिंग बेडरूम।एक ही मेज थी।पढ़ने के समय सब बारी बारी उसका उपयोग करते।
विवाह हुआ।बडे घर से मितव्ययी पत्नी मिली।दो खूबसूरत बच्चें।संतोष जनक परिवार। वेतन बढ़ा तो लोन लेकर मकान बनवाये।दो बेडरूम कम हाल।दस बाय बारह।एक लंबा समय बीता।उस घर की ढ़ेरों यादें स्मृति में कैद है।
बच्चे पढ़ लिख कर इंजीनियर बने।अच्छे पद में जाब लगी।विवाह।एक पोता।सब कुछ शानदार।आज इस बड़े से कमरे को देखकर सब याद आ गया।बेटे की तरफ देख कर मुस्कुराये,बहुत अच्छा है कमरा,बहुत बड़ा भी।तुम सब के दिलों की तरह।
जीवन परिचय
महेश राजा
जन्म:26 फरवरी
शिक्षा:बी.एस.सी.एम.ए. साहित्य.एम.ए.मनोविज्ञान
जनसंपर्क अधिकारी, भारतीय संचार लिमिटेड।
1983 से पहले कविता,कहानियाँ लिखी।फिर लघुकथा और लघुव्यंग्य पर कार्य।
दो पुस्तकें1/बगुलाभगत एवम2/नमस्कार प्रजातंत्र प्रकाशित।
कागज की नाव,संकलन प्रकाशनाधीन।
दस साझा संकलन में लघुकथाऐं प्रकाशित
रचनाएं गुजराती, छतीसगढ़ी, पंजाबी, अंग्रेजी,मलयालम और मराठी,उडिय़ा में अनुदित।
पचपन लघुकथाऐं रविशंकर विश्व विद्यालय के शोध प्रबंध में शामिल।
कनाडा से वसुधा में निरंतर प्रकाशन।
भारत की हर छोटी,बड़ी पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन और प्रकाशन।
आकाशवाणी रायपुर और दूरदर्शन से प्रसारण।
पता:वसंत /51,कालेज रोड़।महासमुंद।छत्तीसगढ़।
493445
मो.नं.9425201544
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