महासमुंद-जिले के प्रसिद्ध लघुकथाकार महेश राजा की लघुकथा कान्वेंट कल्चर ,टेढ़ी पूँछ वाला कुत्ता ,उदाहरण व् ए.टी.एम सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है।
कान्वेंट कल्चर
कान्वेन्ट स्कूल मे नौंवी कक्षा के छात्र ने आठवीं कक्षा की एक छात्रा को प्रेमपत्र लिखा,छात्रा ने इसकी शिकायत स्कूल के फादर को की।
फादर ने छात्र को बुलाया और तुरन्त सौ रूपये जुर्माना करते हुए ताकीद की,-“कान्वेन्ट मे पढते हो…. पत्र अंग्रेज़ी में लिखा करो।”
टेढ़ी पूँछ वाला कुत्ता
एक टेढ़ी पूंँछ वाले कुत्ते ने सीधी पूंँछ वाले कुत्ते से पूछा,”क्यों पार्टनर!तुम्हारी दूम सीधी कैसे हो गयी?क्या तुम्हारे मालिक ने इसे पोंगली मे डाल दिया था”?
सीधी पूंँछ वाला कुत्ता पहले हीन- भावना से ग्रसित हुआ फिर साहस बटोर कर उसने कहा,”बात दरअसल यह है कि मैं अपनी पूंँछ सीधी करने की प्रेक्टिस कर रहा हूं।”
टेढ़ी पूंछ वाला कुत्ता बोलाला,” कुत्ते की पहचान को क्यों संकट में डाल रहे हो।अभी हम कुत्ते इतने स्थापित नहीं हुए है कि चुनाव मे खड़े हो सके।जब तक हमारी पूंँछ टेढी रहेगी,आदमी हमेशा हम कुत्तों से डरेगा।”
उदाहरण
अचानक फोन की घंटी बज उठी।अजय-अनिल चौंक पडे।अभी रात के ग्यारह बजे थे।अभी ही वे एक मरीज को हास्पिटल पहुँचा कर आये थे। अजय ने फोन उठाया।कोविड अस्पताल से फोन आया था,एक मरीज को तुरंत प्लाज्मा की जरूरत थी।
अनिल ने तुरंत गाड़ी निकाली। दरअसल अजय-अनिल दो मित्र थे।अजय की माँ समय पर इलाज न मिल पाने के कारण इस सँसार में नहीं रही थी,और अनिल के एक रिश्तेदार को अस्पताल में बेड न मिल पाने की वजह से मौत हो गयी थी।
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तब से दोनों ने प्रण लिया था कि हर पल वे इस कठिन समय में जरूरत मंदों की मदद करेंगे। तब से वे दोनों सुबह से देर रात तक मरीज को अस्पताल पहुंचाने ,उनके लिये दवाई,आक्सीजन, भोजन और हर जरूरत को पूरा करने में जी जान से लग गये।
शहर में दोनों मानवता की जीती जागती मिसाल बन गये।लोग उनका उदाहरण सामने रख कर मानव सेवा में जुट रहे है।
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ए.टी.एम
रीमा शीला को बता रही थी,-गैस खत्म होने को है।टी.वी.रिचार्ज का पैसा देना है,साथ ही बिजली बिल भी भरना है।कल लास्ट डेट है। आगे फिर बोली-“ये दौरे पर है।सिर्फ दो हजार रूपये देकर गये है।”
शीला ने पूछा-“अभी ही तो सैलरी मिली है।ए.टी.एम. कार्ड से निकाल ले।”
रीमा की आँखे ड़बड़बायी-“कैसा एटीएम कार्ड़।सारा कुछ इन्हीं के पास रहता है।”आगे रूक कर बुदबुदायी,-मैं तो इस घर का ए.टी.एम. बन कर रह गयी हूँ।
जीवन परिचय-
जन्म:26 फरवरी
शिक्षा:बी.एस.सी.एम.ए. साहित्य.एम.ए.मनोविज्ञान
जनसंपर्क अधिकारी, भारतीय संचार लिमिटेड।
1983 से पहले कविता,कहानियाँ लिखी।फिर लघुकथा और लघुव्यंग्य पर कार्य।
महेश राजा की दो पुस्तकें1/बगुला भगत एवम2/नमस्कार प्रजातंत्र प्रकाशित।
कागज की नाव,संकलन प्रकाशनाधीन।
दस साझा संकलन में लघुकथाऐं प्रकाशित
रचनाएं गुजराती, छतीसगढ़ी, पंजाबी, अंग्रेजी,मलयालम और मराठी,उडिय़ा में अनुदित।
पचपन लघुकथाऐं रविशंकर विश्व विद्यालय के शोध प्रबंध में शामिल।
कनाडा से वसुधा में निरंतर प्रकाशन।
भारत की हर छोटी,बड़ी पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन और प्रकाशन।
आकाशवाणी रायपुर और दूरदर्शन से प्रसारण।
पता:वसंत /51,कालेज रोड़।महासमुंद।छत्तीसगढ़।
493445
मो.नं.9425201544
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