Home आलेख आलोचक मित्र,कार्य कुशलता,पोस्टर,चुनाव,कुत्ता और ईंसान:- महेश राजा की लघु कथा

आलोचक मित्र,कार्य कुशलता,पोस्टर,चुनाव,कुत्ता और ईंसान:- महेश राजा की लघु कथा

मित्र ने मेरी एक सामयिक रचना पर त्वरित टिप्पणी की

महेश राजा की लघुकथा कान्वेंट कल्चर ,टेढ़ी पूँछ वाला कुत्ता ,उदाहरण व् ए.टी.एम

महासमुंद- जिले के ख्यातिप्राप्त लघुकथाकार महेश राजा की लघु कथाए आलोचक मित्र,कार्य  कुशलता,पोस्टर,चुनाव,कुत्ता और ईंसान सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है

आलोचक मित्र- मित्र ने मेरी एक सामयिक रचना पर त्वरित टिप्पणी की,-“आजकल खूब अच्छा लिख रहे हो।कथ्य भी अच्छा है,पर संस्मरण उस पर हावी हो रहे है।इससे सावधान रहना होगा।यू नो,अंग्रेज़ी शब्दों कै प्रयोग के मोह से बचना होगा।बाकी सब लगभग ठीक है।प्लीज,टेक केअर एन्डकीप ईट अप।”

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कार्य कुशलता

सेवानिवृत्ति के समय किसी ने उनसे पूछा,-“सरकारी विभाग मे इतने अच्छे ढंग से पैंतीस साल,सफलतापूर्वक गुजारने का राज?” वे मूंछों मे मुस्कुराये,-“मैं किसी भी कार्य को पैन्डिंग नहीं रखता था।जो भी फाईल मेरी मेज तक आती थी,कोई न कोई आब्जेक्शन लगाकर दूसरे प्रभाग मे भेज देता था।मेरी सफलता का राज है कि मैंने अपने सेवाकाल मे हर कार्य मे केवल ‘”आब्जेक्शन”ही लगाये है।

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पोस्टर

सरकार भंग होते ही दुकानदार ने अपनी दुकान पर लगे पार्टी के पोस्टर निकाल दिये। मैंने कहा,-“आप तो इस पार्टी के समर्थक रहे है…फिर…आपने पोस्टर क्योँ निकाल दिये?” वह बोले,-‘आजादी के बाद हम पोस्टर बदल बदल कर ही तो अपनी दुकान चला रहे है।’

 चुनाव

बारिश हो रही थी।तालाब मे पानी भरने लगा था।शाम होते ही मेढ़कों ने टर्राना शुरु कर दिया था। मेंढ़की ने अपने मेंढ़क से कहा-“,क्यों जी।यदि अपने तालाब में चुनाव होने लगे तो क्या तुम चुनाव लडोगे?” मेंढ़क संँयत स्वर मे बोला -“डियर?साँपों के रहते हुए मुझे कौन टिकट देगा?”

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कुत्ता और ईंसान

सनी जब छोटा था,तब उसके पापा रोज सुबह -शाम आंँगन में उसे लेकर बैठते।किचन से रोटी मंँगवाते।फिर मुहल्ले के कुत्ते मोती को आवाज लगाते,तू…तू…तू…।मोती दौड़ा चला आता,सनी के हाथ से उछल उछल कर रोटी के टुकड़े खाता,इधर उधर दौड़ता,खेलता कूदता।

नन्हा सनी दोनों हाथोँ से ताली बजाता खुश होता। समय बदला।दिन फिरे।सनी के पापा को बिजनेस में बडा लाभ मिला।उन्होंने तीन मंझिला बंगला बनवा लिया। सनी बड़ा हो गया।स्कूल जाने लगा।पर जब भी घर पर होता,मोती को अवश्य बुलाता।,तू…तू..तू…। मोती भी बचपन के मित्र की आवाज सुन दौड़ा चला आता।

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दोनों साथ खूब खेलते। एक दिन सनी के पापा शाँप से जल्दी लौट आये।सनी को मोती के साथ खेलते देख कर बहुत नाराज हुए।उन्होंने मोती को भगाया।सनी को भीतर ले गये।मोती निरीह नेत्रों से सनी को देखता,भाग खड़ाहुआ। पापा ने सनी को डांँटते हुए कहा-,गंदी बात है बेटा,अच्छे बच्चे मुहल्ले के गंदे कुत्तों के साथ नहीं खेलते।सनी रोने लगा।खिड़की पर जा खड़ा हुआ।दूर मोती ड़बड़बाई आंखो से उसे देखता रहा फिर उसके पापा की आवाज सुन कर कोने मे दुबक गया।

सनी के पापा उसे समझा रहे थे,-बेटा ये गंदे है,इनको छूने से ईंन्फेक्शन हो जाता है। सनी का अबोध मन यह मानने को तैयार न था।बचपन से ही तो वह मोती के साथ खेलता चला आ रहा था।वह जोर जोर से रोने लगा। उसके पापा ने उसे गोदी मे उठा लिया।दुलारा,-थोडा बडा हो जाओ फिर तुम्हारे लिये अच्छी नस्ल का डाँगी लाकर देंगे।

परिचय

महेश राजा
जन्म:26 फरवरी
शिक्षा:बी.एस.सी.एम.ए. साहित्य.एम.ए.मनोविज्ञान
जनसंपर्क अधिकारी, भारतीय संचार लिमिटेड।
1983से पहले कविता,कहानियाँ लिखी।फिर लघुकथा और लघुव्यंग्य पर कार्य।
दो पुस्तकें1/बगुलाभगत एवम2/नमस्कार प्रजातंत्र प्रकाशित।
कागज की नाव,संकलन प्रकाशनाधीन।
दस साझा संकलन में लघुकथाऐं प्रकाशित
रचनाएं गुजराती, छतीसगढ़ी, पंजाबी, अंग्रेजी,मलयालम और मराठी,उडिय़ा में अनुदित।
पचपन लघुकथाऐं रविशंकर विश्व विद्यालय के शोध प्रबंध में शामिल।
कनाडा से वसुधा में निरंतर प्रकाशन।
भारत की हर छोटी,बड़ी पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन और प्रकाशन।
आकाशवाणी रायपुर और दूरदर्शन से प्रसारण।
पता: महेश राजा वसंत /51,कालेज रोड़।महासमुंद।छत्तीसगढ़।
493445
मो.नं.9425201544

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