लॉवर म लोर लोर,तिखुर म झोर झोर,राय झुम झुम बॉस पान,हंसा करेला पान
सुपली म बेलपान, लट्ठर जा रे भौरा भुंनर जा रे भौरा के गीतों की याद दिलायगा भौरा प्रतियोगिता
बलौदाबाजार -बचपन मे जीन गीतों को गाकर भौरा चलाया जाता था आज वह भौरा युवा महोत्सव का विशेष आकर्षण का केंद्र होगा। भारतीय लोक खेलों की परम्परा में भौरा का अपना एक विशिष्ट स्थान है। छत्तीसगढ़ में भौरा को अलग अलग नामों से जाना जाता है जहां सरगुजा क्षेत्र में लट्टू के नाम से तो रायपुर के आसपास भुन्नाटी के नाम से जाना जाता है।
भौरा जब जमीन पर एक ही स्थान में अपनी धुरी पर तीव्र गति से घूमता है तब फूलों पर मंडराने वाले भ्रमर जैसी मन मोह लेने वाली ध्वनि उत्पन्न करता एवं जब वह अपनी धुरी पर घूमते हुए संतुलित हो जाता है और धीरे धीरे दायें बाये झूलता है तो आभास होता है मानों किसी फूल पर भ्रमर बैठा हो जिस कारण इसका नामकरण भौरा हुआ। भौरा तब चर्चा में जब आया जब मुख्यमंत्री भुपेश बघेल ने हरेली के दिन खुद अपने हाथों में भौरा लेकर चलाया।
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जिसे देखकर अच्छे अच्छे लोग आश्चर्य चकित हो गये की मुख्यमंत्री होते हुए भी कोई इतना अच्छा भौरा चला सकता है। क्योंकि भौरा हर कोई नही चला सकता इसके लिए दक्ष व सतत अभ्यास की जरूरत होती है। प्रारंभ से ही भौरा छत्तीसगढ़ के आँचलिक क्षेत्रों में संस्कृति का अटूट हिस्सा रहा है जिस कारण लोग इसे छतीसगढी अस्मिता से जोड़कर देखने लगे है। गाँव मे जब बच्चों के समूह द्वारा भौरा खेला जाता है तो उसके पहले कुछ छत्तीसगढ़ी गीत गाया जाता है उनमें प्रमुख
लॉवर म लोर लोर,तिखुर म झोर झोर
राय झुम झुम बॉस पान,हंसा करेला पान
सुपली म बेलपान,लट्ठर जा रे भौरा भुंनर जा रे भौरा है।
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जैसे ही गीत खत्म होता है तो भौरा खेलने का कार्य शुरु हो जाता। ऐसे तो पूरे छत्तीसगढ़ में सामान्य बोल चाल में भौरा खेलना कह देते है पर वास्तव में इसके तीन स्वरुप छत्तीसगढ़ में प्रचलित है पहला चांदा दूसरा नोगोदिया व तीसरा रट्ठ मार भौरा। जिसमें चांदा रूपी भौरा का खेल सर्वाधिक लोकप्रिय है। भौरा प्रतियोगिता में जिले से दो विभिन्न वर्गों में कुल 4 प्रतिभागी जिला का प्रतिनिधित्व करेंगे जिसमे कु करीना भाटापारा से,तरुण कुमार सिमगा से वैसे 40 वर्ष से अधिक में वीणा साहू भाटापारा से भुनेश्वर खरसे पालारी से है युवा महोत्सव में भौरा चलाकर अपने हुनर का प्रदर्शन करेंगें।
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पलारी विकासखंड ग्राम ससहा निवासी भुनेश्वर खरसे पेशे से किसान है जिसका उम्र 71वर्ष है। उन्होंने चर्चा के दौरान कहा में हा गाँव मे किसानी के काम करथो जब मोला पता चलिस की भौरा चलाय के प्रतियोगिता होवत है ता अपन आप ला रोक नही पाय काबर मैं हा बचपन म स्कूल के संगवारी मन सन मिलकर अब्बड़ भौरा खेलेव हो। ब्लॉक व जिला में सबझन ला हराकर अब प्रदेश में भौरा चलाहु।
आगे उन्होंने कहा आज उमर के इस पड़ाव मा भौरा चलावत हो ता अइसे लागत है मानो मोर बचपन ह लौट गेहे। उसी तरह शासकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय माता देवालय पटपर भाटापारा की शिक्षिका वीणा साहू भी भौरा व गेड़ी दौड़ प्रतियोगिता में जिला का प्रतिनिधित्व कर रही है। उन्होंने कहा इस तरह हमारी छत्तीसगढ़ की विलुप्त होते संस्कृति को सहजने का जो कार्य सरकार के द्वारा किया जा रहा है वह निश्चित ही एक सहरानीय कदम है। जिसका आने वाले समय मे दूरगामी परिणाम हमे देखने मिलेगा।
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