महासमुंद-जिले के प्रसिद्ध लघुकथाकार महेश राजा की लघुकथा एपेट ,प्यार और जिंदगी,सुरक्षा के लिये,जरूरत,फिक्र व् साँसों का गणित सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है।
पेट ,प्यार और जिंदगी
लड़की जवान थी,और खूबसूरत भी थी,किन्तु गरीब घर की थी। पड़ोस के एक मध्यम वर्गीय परिवार का नवयुवक उस पर जान छिडकता था। अक्सर कहता-“चलो भाग चले कहीँ।ब्याह कर ले।इस नासमझ सामाजिक बंधनो से दूर अपनी एक दुनिया बसा ले।”
लडकी पूछती,कहती,-“क्या नासमझी की बात करते हो।जानते हो जीवन चलाने के लिये,रोजी रोटी,संसाधनों की जरूरत होती है।तुम बेरोजगार हो.कुछ करते नहीं।फिर…”घर गृहस्थी कैसे चलेगी?”
लडका कहता’-“मै तुम्हें बहुत चाहता हूं।बहुत खुश रखूँगा,तुम्हें।एक बार मेरा साथ दे दो।हम दुनिया जीत लेंगे।मै कुछ न कुछ जुगाड़ कर ही लूंगा।'”
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लडकी का जवाब था.-“प्यार वगैरह तात्कालिक जजबात है।बचपन से अभाव ही तो देखा है जीवन में।मां को एक एक रूपये के लिये तरसते। हालात से लडते।इन सब बातों से बहुत कुछ सीखा है मैंने।प्यार की तुलना में पेट का गणित बडा जटिल होता है।मुझे यह मंँजूर नहीं।भूखे पेट ,भजन नहीं हो पाता।और प्यार के सहारे इतनी बडी जिंदगी नही कट सकती।
लडका इस यथार्थ वादी दर्शन को सुन कर चुप हो जाता। बाद दिनों मे लड़की ने एक अमीर लड़के से ब्याह कर अपनी गृहस्थी बसा ली। लड़का इस चोट से दुखी होकर कविताएं लिखने लगा और आज भी बेरोजगार घूम रहा है।
सुरक्षा के लिये
महामारी ने अपना विकराल रूप ले लिया था।सरकार को मजबूरन पूर्ण तालाबंदी करनी पड़ी। इस बार सख्ती भी ज्यादा थी।लोग समझने को तैयार ही नहीं थे कि थोड़ी सी असावधानी से मौत को दावत दी जा सकती है।
दो वरिष्ठ नागरिक मुंह को रूमाल से ढ़ंक कर दूध लेने डेयरी जा रहे थे।नेहरू चौक पर आफिसर ने उन्हें रोका-“देखिये ये रूमाल नहीं चलेंगे।जाईये पास के मेडिकल स्टोर से मास्क लाकर पहनिये।वरना अगली बार जुर्माना लग जायेगा।”
दोनों बुजुर्गों ने मास्क खरीदा और चुपचाप चले गये।
एक अन्य कर्मचारी ने एक दिहाड़ी मजदूर को पकड़ा हुआ था।उस गरीब ने एक पुराना गमछा लपेटा हुआ था।वे लोग सौ रूपये फाईन माँग रहे थे।मजदूर की जेब में मात्र पचास रूपये थे।वह धिधिया रहा था।
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वे लोग मानने को तैयार न थे।तभी पास से एक सुरक्षा कर्मी गुजरा।उसने भी गमछा ही लपेटा हुआ था।उसे देखकर मजदूर ने ईशारा किया तो अधिकारी ने गाली देते हुए कहा-“ये तो हम सब की सुरक्षा के लिये धूम रहे है।तुम लोग क्यों मरने के लिये घर से निकलते हो?”
मजदूर की आँखों में विवशता के आँसू थे।वह कहना चाह रहा था कि साहब घर से निकलेंगे नहीं, काम नहीं करेंगे तो पूरा परिवार मर जायेगा। वह कुछ कह न सका। चुपचाप हाथ जोड़कर जाने देने के लिये विनंती करने लगा।ताकि वह अपने कार्य पर जा सके और घरवालों का पेट भर सके।
जरूरत
जैसे ही वे बँगले पहुँचे।सेठजी ने तपाक से उनका स्वागत किया।चाय आदि की औपचारिकता के बाद पान पराग का डिब्बा पेश करते हुआसेठ जी ने उनसे पूछा,और बतायें साहब।कैसा चल रहा है सब?मेरे योग्य कोई सेवा बताये?
वे एक कार्यालय में अफसर थे।सेठ जी को हमेंशा उस कार्यालय में काम पड़ता। वे भी जरूरत पड़ने पर उनकी हर सँभव मदद करते। आज पारिवारिक कार्यवश एक बड़ी रकम की जरुरत आन पड़ी।संकोच सहित उन्होंने सेठ जी को सारी बातें बतायी।
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रूपयों की बात आयी तो सेठ जी के आँखों के भाव बदल गये।प्रत्यक्ष में मुस्कुराते हुए बोले-अवश्य मैं आपकी जरूरत पूरी करता।पर, आजकल एकांउट का कार्य बड़े साहबजादे देखते है।वे दिल्ली गये है।आते ही सलाह कर आपको खबर करूंगा।साहब हाथ जोड़ कर उठ खड़े हुए।इस बार सेठजी उन्हें विदा करने खड़े नहीं हुए।मोबाईल में व्यस्त हो गये।
फिक्र
जंगल में दूर से गुजरती हुयी बकरी को देखकर शेर ने चिंतित स्वर में पूछा-अरे,बकरी बहन।बहुत दिनों बाद दिखी।क्या हालचाल है।दुबली लग रही हो।बीमार रही क्या?
बकरी लगभग भागते हुए बोली-मैं ठीक हूँ महोदय।पर ,आप बतायें आपको मेरी चिंता है या अपनी?
साँसों का गणित
सुबह वे बगीचे पहुंच गये।शुद्ध हवा बह रही थी।कुछ देर भ्रमण किया फिर योगा।एक खाली बैंच पर आकर बैठ गये अचानक बैचेनी महसूस हुयी।साँस अटकने लगी।
वे जल्दी-जल्दी बाहर आये।सिगरेट निकाल कर सुलगायी। पहले ही कश के बाद वे सामान्य महसूस करने लगे।
परंतु तुरंत प्यारी बिटिया से किया वादा याद आ गया और उन्होंने सिगरेट के टुकड़े कर जूता तले मसल दिया। अब वह मन में सुकून महसूस कर रहे थे।
जीवन परिचय-
जन्म:26 फरवरी
शिक्षा:बी.एस.सी.एम.ए. साहित्य.एम.ए.मनोविज्ञान
जनसंपर्क अधिकारी, भारतीय संचार लिमिटेड।
1983 से पहले कविता,कहानियाँ लिखी।फिर लघुकथा और लघुव्यंग्य पर कार्य।
महेश राजा की दो पुस्तकें1/बगुला भगत एवम2/नमस्कार प्रजातंत्र प्रकाशित।
कागज की नाव,संकलन प्रकाशनाधीन।
दस साझा संकलन में लघुकथाऐं प्रकाशित
रचनाएं गुजराती, छतीसगढ़ी, पंजाबी, अंग्रेजी,मलयालम और मराठी,उडिय़ा में अनुदित।
पचपन लघुकथाऐं रविशंकर विश्व विद्यालय के शोध प्रबंध में शामिल।
कनाडा से वसुधा में निरंतर प्रकाशन।
भारत की हर छोटी,बड़ी पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन और प्रकाशन।
आकाशवाणी रायपुर और दूरदर्शन से प्रसारण।
पता:वसंत /51,कालेज रोड़।महासमुंद।छत्तीसगढ़।
493445
मो.नं.9425201544
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