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महेश राजा की लघुकथा एक अधुरी प्रेम कथा के अलावा पढिए अन्य कथा

-अब कब मिलोगी? -कभी भी नहीं। -क्यों? -घरवालों ने मेरी सगाई,,,

प्रसिद्ध लघु कथाकार महेश राजा की पढ़िए लघुकथा

महासमुंद-जिले के प्रसिद्ध लघुकथाकार महेश राजा की लघुकथा एक अधुरी प्रेम कथा, कोरा कागज, परायी सोच,धनवान  व् सुरक्षा के लिये सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है।

एक अधुरी प्रेम कथा

-अब कब मिलोगी? -कभी भी नहीं। -क्यों? -घरवालों ने मेरी सगाई तय कर दी। -मेरा क्या होगा? -तुम भी किसी से ब्याह कर लेना। -तुम्हारे बिना कैसे जी सकूंगा। -जैसे सब जीते है।

-हम पहले ऐसे प्रेमी थोडे ही है,जो नहीं मिल पाते है।हीर रांझा,सोहिनी महिवाल। -उसने कहा था,भूल गये।कालेज में पढ़ते थे। -वे अलग लोग थे। मैं एक सरल,सीधा सादा। -अधिकतर के साथ यही होता है। समय सब ठीक कर देगा। अब जाती हूँ। फिर नहीं मिलूंगी।

 कोरा कागज

उसे डायरी जमा करने का बड़ा शौक था।नयी नयी ड़ायरियाँ। रोज उनमें कुछ न कहा लिखता,अनकहा…अनछुआ…। परंतु उसकी ज्यादा तर डायरियाँ कोरी थी,उसके जीवन की तरह। फिर भी वह हर बार नयी ड़ायरी खरीदता रहता।अजीब था न वो…..

परायी सोच

रात से बारिश हो रही थी।समीर जी झूले में बैठकर आज का अखबार पढ़ रहे थे। सुनीता जी अदरक वाली चाय के दो प्याले लिये आयी।पास रखी कुर्सी पर बैठ गयी।रात से घुटनों में बड़ा दर्द था।रात भर कराहती रही।समीर भी जाग रहे थे। काफी इलाज करा लिया था।बेटा भी माँ की सेहत को लेकर चिंतित रहता।परंतु उम्र अपना असर दिखाती ही है।

महेश राजा की लघुकथा-कफन,एक अधूरी प्रेम कथा,चिंता,जन्म तिथि व् पेट और प्रार्थना

महेश राजा की लघुकथा एक अधुरी प्रेम कथा के अलावा पढिए अन्य कथा
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चाय की चुस्कियों के बीच सुनीता जी कह रही थी-“ओ जी,आज अगर हमारी बेटी होती तो कितना अच्छा रहता।घर के काम में मेरी मदद करती।यह घुटने का दर्द कमबख्त…..। समीर आश्चर्य से पत्नी की तरफ देख रहे थे। आज के हालात देख कर बेटी न हो वे हमेंशा ऐसा कहती ।उन्होंने एक ही बेटे को जन्म दिया था। समीर ने क ई बार कहा कोई कामवाली रख लो।पर सुनीता को यह पसंद नहीं था।वे घर के काम हाथ से ही करना पसंद करती।

धनवान

रीमा को सप्ताह में दो बार मुख्य बाजार तक आना ही पड़ता है। नेहरू चौक पर बहुत सारी दुकानों के साथ खाली जगहों पर फलवाले मोची और अन्य लोग बैठकर दुकानदारी करते।

वहीं कोने पर एक ग्रामीण महिला मिट्टी के घड़े,गुल्लक और अन्य सामान लेकर बैठती।वह हमेंशा हंस कर बात करती।उम्र ज्यादा न थी।पर,वक्त के थपेडों ने असमय उसे वृद्धा बना दिया था।चेहरे पर की झुर्रियाँ अनुभवों की आँच से तप कर निकलने का दावा कर रही थी।

रीमा हमेंशा कुछ न कुछ खरीदी करती।कभी भी मोल भाव न करती।वापसी में आज भी वह रूकी एक घड़ा और दो सकोरे लिये।माँजी ने कीमत सौ रूपये बतायी।रीमा के मुँह से निकलने ही वाला था कि हमेंशा तो आप बीस रूपये लगाती है।एन वक्त पर उसने स्वयं को रोका और चुपचाप सौ रूपये दे दिये।

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घड़ेवाली महिला ने उसके चेहरे के भाव पढ़ लिये थे।गाड़ी में घड़ा और सकोरा रखते हुए उसने रीमा को दस रूपये लौटाये,बेटी,तुम कभी कुछ नहीं कहती।आज मेरा मन है।यह रख लो।

रीमा मन में आये विचारों के कारण आत्मग्लानि से ग्रस्त थी।रीमा ने मन ही मन संकल्प किया भविष्य में वह मेहनतकश लोगों से कभी मोलभाव नहीं करेगी।

 सुरक्षा के लिये

महामारी ने अपना विकराल रूप ले लिया था।सरकार को मजबूरन पूर्ण तालाबंदी करनी पड़ी। इस बार सख्ती भी ज्यादा थी।लोग समझने को तैयार ही नहीं थे कि थोड़ी सी असावधानी से मौत को दावत दी जा सकती है।

दो वरिष्ठ नागरिक मुंह को रूमाल से ढ़ंक कर दूध लेने डेयरी जा रहे थे।नेहरू चौक पर आफिसर ने उन्हें रोका-“देखिये ये रूमाल नहीं चलेंगे।जाईये पास के मेडिकल स्टोर से मास्क लाकर पहनिये।वरना अगली बार जुर्माना लग जायेगा।”
दोनों बुजुर्गों ने मास्क खरीदा और चुपचाप चले गये।

एक अन्य कर्मचारी ने एक दिहाड़ी मजदूर को पकड़ा हुआ था।उस गरीब ने एक पुराना गमछा लपेटा हुआ था।वे लोग सौ रूपये फाईन माँग रहे थे।मजदूर की जेब में मात्र पचास रूपये थे।वह धिधिया रहा था।

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वे लोग मानने को तैयार न थे।तभी पास से एक सुरक्षा कर्मी गुजरा।उसने भी गमछा ही लपेटा हुआ था।उसे देखकर मजदूर ने ईशारा किया तो अधिकारी ने गाली देते हुए कहा-“ये तो हम सब की सुरक्षा के लिये धूम रहे है।तुम लोग क्यों मरने के लिये घर से निकलते हो?”

मजदूर की आँखों में विवशता के आँसू थे।वह कहना चाह रहा था कि साहब घर से निकलेंगे नहीं, काम नहीं करेंगे तो पूरा परिवार मर जायेगा। वह कुछ कह न सका। चुपचाप हाथ जोड़कर जाने देने के लिये विनंती करने लगा।ताकि वह अपने कार्य पर जा सके और घरवालों का पेट भर सके।

जीवन परिचय-

जन्म:26 फरवरी
शिक्षा:बी.एस.सी.एम.ए. साहित्य.एम.ए.मनोविज्ञान
जनसंपर्क अधिकारी, भारतीय संचार लिमिटेड।
1983 से पहले कविता,कहानियाँ लिखी।फिर लघुकथा और लघुव्यंग्य पर कार्य।

महेश राजा की दो पुस्तकें1/बगुला भगत एवम2/नमस्कार प्रजातंत्र प्रकाशित।
कागज की नाव,संकलन प्रकाशनाधीन।
दस साझा संकलन में लघुकथाऐं प्रकाशित
रचनाएं गुजराती, छतीसगढ़ी, पंजाबी, अंग्रेजी,मलयालम और मराठी,उडिय़ा में अनुदित।
पचपन लघुकथाऐं रविशंकर विश्व विद्यालय के शोध प्रबंध में शामिल।
कनाडा से वसुधा में निरंतर प्रकाशन।
भारत की हर छोटी,बड़ी पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन और प्रकाशन।
आकाशवाणी रायपुर और दूरदर्शन से प्रसारण।
पता:वसंत /51,कालेज रोड़।महासमुंद।छत्तीसगढ़।
493445
मो.नं.9425201544

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