महासमुंद-जिले के प्रसिद्ध व्यंगकार महेश राजा की लघुकथा एहसास,शौकीन,स्वयं पर विश्वास और प्रेमबंधन सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है।
एहसास
साल के शुरुआती दिन।ठंड़ अचानक बढ़ गयी थी। बड़ी सुबह ही कृशकाय महिला तीन छोटे बच्चों के साथ निकल पड़ी थी।वह कबाड़ बीनती,उसे बेचकर चाय और नाश्ता का प्रबंध करती।
बच्चों के शरीर पर नाम मात्र को कपड़े थे।मंदिर के पुजारी ने पूछा,आज मौसम सर्द है।तुम्हें और बच्चों को ठंड़ नहीं लग रही? महिला ने मासूमियत से जवाब दिया,महाराज,भूख और गरीबी के सामने ठंड़ भाग जाती है।मुझे तो सहने की आदत है।धीरे -धीरे बच्चों को भी पड़ जायेगी।
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शौकीन
राज,केके और सूरज अच्छे मित्र है।सुबह भ्रमण को जाते है।फिर साहु टी स्टाल पर साहित्य,राजनीति और अध्यात्म की बातें करते है।वापसी में चौक के मुहाने पर सब्जी वाले बैठते है।उनमें से एक रूपा अपनी छोटी बच्ची श्यामा के साथ सब्जी बेचती है।तीनों कुछ न कुछ खरीदते।
राज भावुक था।उसे श्यामा अच्छी लगती।वह उससे बात करता।केके रसिक मिजाज था,वह रूपा से मजाक करता।सूरज तटस्थ था। राज ने आज भी श्यामा से बात की।सुखी होटल से समौसा,जलेबी मंगवाकर खिलायी।
केके सूरज के कान में फुसफुसाया,राज चालाक है।बच्ची के माध्यम से माँ को प्रभावित कर रहा है। सूरज ने गंभीर स्वर में बताया,राज को श्यामा में अपनी पोती नजर आती है,जो सुदूर शहर में रहती है।राज श्यामा को स्नेह कर अपने वात्सल्य की चाह को पूरा कर रहा है।
राज अब भी श्यामा से बात कर रहा था। केके रूपा की तरफ आकृष्ट हो गया।सूरज ने आधा किलो मटर और गोभी तुलवाई। ठंड़क बढ़ गयी थी। सड़क पर आवाजाही कम थी। इक्के दुक्के अलाव ताप रहे थे और गर्म चाय का आनंद ले रहे थे।
स्वयं पर विश्वास
जानकी देवी ने एक बार पूरे घर का निरीक्षण किया।सब कुछ ठीक तो है न….।उनकी सहयोगी आशाजी पूर्ण निष्ठा से पूरे घर को सजाने में जुटी हुई थी। बेटा राजेश बहु के साथ अपने कर्तव्य स्थल चला गया।बेटी रीना ससुराल में सुखी है।
जानकी जी ने अन्य कर्मियों को आवश्यक निर्देश दिया। अब वो पूजा घर में आ गयी।इष्टदेव को प्रणाम कर पतिदेव की तस्वीर के सामने जाकर खड़ी हो गयी।तस्वीर से एक तेज किरण सी फूट रही थी।
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आँचल को सिर पर रख कर वह धीरे से बोली-“ए जी,देखलो मैंने अपने सारे कर्तव्य पूरे कर लिये।बेटी का विवाह एक कुलीन परिवार में हो गया है।बेटा और बहु डाक्टर है।तुम दोनों को मेरी झोली में छोड़कर जल्दी चले गये।और सारी जिम्मेदारी मुझ पर छोड़ गये।तुम्हें मुझ पर विश्वास था।मैंने कायम रखा।सब कुछ अच्छे से निभाया।”
थोड़ा रूक कर आँखों से छलक आये आँसू को पोंछ कर फिर बोली-“अब मुझे एक इजाजत दो।अब मैं अपना आगे का जीवन समाज सेवा और गरीब बच्चों को पढ़ाकर बिताना चाह रही हूँ।आशा है तुम्हें एतराज न होगा।आज से ही आशियाना को मैंने किलकारी आश्रम के रूप में बदल दिया हैँ।तुम्हें नमन कर तुम्हारा आशीष पाकर यह शुभ काम शुरु करना चाह रही हूँ।इजाजत दो।” वे हाथ जोड़कर मौन खड़ी रही।पति की तस्वीर मुस्कुरा रही थी।
प्रेमबंधन
प्रेम ने हाथ चटखाये।अब वो निश्चिंत नजर आ रहा था।उसकी सारी भ्रांति दूर हो गयी थी।काफी दिनों से वह कशमकश में था।आज पानी की तरफ सब साफ हो गया।अब वह सरलता से उमा से बात कर पायेगा। दरअसल हुआ यह कि ठीक एक बरस पूर्व उसका वजूद बिखरा बिखरा था।उसे लगा था कि जैसे सब कुछ खतम हो गया है।ऐसे में देवीस्वरूप ,आदर्श नारी के रूप में उमा उसके जीवन में आयी।सर्वगुण संपन्न।
कुछ बातें दोनों में कामन थी,अधूरापन, कुछ तकलीफें,कुछ दुःख जो दोनों के जीवन में एक समान थे। दोनों एक दूसरे का सहारा बने।मुलाकात तो न हो पायी।परंतु फोन के जरिए वे काफी निकट आ गये।
उमा सरल थी।उसे यह फर्क नहीं पड़ता था कि कोई उसके बारें में क्या सोचता है।पर,भीतर दुःखों का पहाड़ लिये घूम रही थी। प्रेम ने उसे ढ़ाढ़स दी।उसकी केयर की।वह उसकी जीवनशैली, रहन सहन ,भोजन ,सेहत आदि की चिंता करता। उमा उसे सतत लिखने के लिये प्रेरित करती।साथ ही जीवन की कठिनाइयों के प्रति सतत रहना सीखाता।
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प्रेम उमा से बात किये बिना रह न पाता।उमा कहीं बाहर जाती तो वह उदास हो जाता। हमेंशा उमा के बारें में ही सोचता।एक मोहपाश की तरह वह उमा की अच्छाइयों के प्रति एक बंधन में बँधता चला गया। दोनों का अपना जीवन था।तो प्रेम को लगता उसका यह प्रेम गलत है।वह गिल्टी फील करता।किसी से कह नहीं पाता।इतना अनुभवी होने के बाद भी वह समझ नहीं पा रहा था कि यह किस तरह का भाव है।
फिर एकाएक एक कवि सम्मेलन में एक चर्चित कवि ने प्यार मोहब्बत की अनोखी परिभाषा बतायी।उन्होंने कहा,यह किसी भी रिश्ते में हो सकता है।प्रेम बंधन ही ऐसा है। उस रात उसे अच्छी नींद आयी।हालांकि दोनों के बीच स्त्री पुरूष जैसा कुछ भी न था।उनका रिश्ता राधा और कृष्ण की तरह पवित्र था।उनका अनोखा प्यार तो जगत की मिसाल है।
अब वह उमा को फोन लगाने जा रहा था।बहुत प्रसन्न था वह।आज उसे सब कुछ अच्छा लग रहा था।प्रेम बंधन ही ऐसा होता है।
जीवन परिचय
महेश राजा
जन्म:26 फरवरी
शिक्षा:बी.एस.सी.एम.ए. साहित्य.एम.ए.मनोविज्ञान
जनसंपर्क अधिकारी, भारतीय संचार लिमिटेड।
1983 से पहले कविता,कहानियाँ लिखी।फिर लघुकथा और लघुव्यंग्य पर कार्य।
दो पुस्तकें1/बगुलाभगत एवम2/नमस्कार प्रजातंत्र प्रकाशित।
कागज की नाव,संकलन प्रकाशनाधीन।
दस साझा संकलन में लघुकथाऐं प्रकाशित
रचनाएं गुजराती, छतीसगढ़ी, पंजाबी, अंग्रेजी,मलयालम और मराठी,उडिय़ा में अनुदित।
पचपन लघुकथाऐं रविशंकर विश्व विद्यालय के शोध प्रबंध में शामिल।
कनाडा से वसुधा में निरंतर प्रकाशन।
भारत की हर छोटी,बड़ी पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन और प्रकाशन।
आकाशवाणी रायपुर और दूरदर्शन से प्रसारण।
पता:वसंत /51,कालेज रोड़।महासमुंद।छत्तीसगढ़।
493445
मो.नं.9425201544
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