Home आलेख “अधिकार की बात ” के अलावा अन्य लघुकथा महेश राजा की

“अधिकार की बात ” के अलावा अन्य लघुकथा महेश राजा की

अनु कार्यालय से लौट रही थी।आज मानव अधिकार दिवस पर कार्यशाला का आयोजन किया गया

महेश राजा की लघुकथा कान्वेंट कल्चर ,टेढ़ी पूँछ वाला कुत्ता ,उदाहरण व् ए.टी.एम

महासमुंद-जिले के प्रसिद्ध व्यंगकार महेश राजा की लघुकथा अधिकार की बात,अधिकार,हरिश चरितावली,पोस्टर के अलावा गुनगुनी धूप सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है।

अधिकार की बात-अनु कार्यालय से लौट रही थी।आज मानव अधिकार दिवस पर कार्यशाला का आयोजन किया गया।मानवाधिकार के महत्व पर परिचर्चा आयोजित थी।अनु ने भी भाग लिया था।उसके विषय संबंधी भाषण पर खूब तालियाँ बजी थी।वह उत्साहित थी।

मौसम में ठंड़क थी। सिर में भारीपन था।घर पहुंँच कर मसाला चाय पीने का बड़ा मन हो रहा था। घर पहुंँची तो देखा ,पतिदेव आज जल्दी आ गये थे।उनका मूड़ उखड़ा हुआ था।अनु जल्दी से अपने कमरे की तरफ बढ़ी कि हाथ मुँह धोकर कपड़े बदल कर चाय बनायेगी।

"अधिकार की बात " के अलावा अन्य लघुकथा महेश राजा की
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पति की आवाज आयी,कहाँ से आ रही हो महारानी?घड़ी पर समय देखा।घर गृहस्थी की परवाह नहीं ।बस!सैर सपाटे। सुनो मेरे दो तीन मित्र आ रहे है।आज पार्टी होगी।पकौड़े तल लेना।कुछ नमकीन भी।सब टैरेस में लगवा देना।वे सब आते ही होंगे।

और हाँ,रात का भोजन भी वे यहीं करेंगे।कुछ ढ़ंग का बना लेना और स्वयं को भी ठीकठाक रखना। आज का सारा उत्साह धूमिल पड़ गया।मानव अधिकार के मौलिक और शुरुआती नियमों से वंचित थी।पति को उसकी जरा भी कद्र न थी।मायूस होकर लड़खड़ाते कदमों से अनु किचन की तरफ बढ़ गयी।

 अधिकार

अक्सर कांग्रेस भवन चौक पर इस मां जी को देखा है।आज भी उसी जगह पर बैठी थी।किसी से कुछ नहीं कहती।चुपचाप शून्याकाश को देखती रहती। उमा ने उस जगह पर अपनी स्कूटी रोकी।घर से लाये टिफीन में से आधे से ज्यादा सामग्री माँ जी के कटोरे में ड़ाल दी।आशीष भरी नजरों से वे एक टक ,सूनी वीरान आँखों से देखती रही।उमा ड़र गयी।

पास जाकर पूछा,-माँ घर में कोई नहीं है?ठंड़ में इस तरह… कुछ क्षण माँ जी चुप रही।ड़रते सहमते स्वर में बोली,-पति रिक्शा चलाते थे।वे नहीं रहे।बेटा दिहाडी मजदूर है।और…. बहु सुबह से कटोरा थमा कर भेज देती है।कुछ रूपये लेकर जाती हूँ। तब.. शाम को खाने को रूखा सूखा देती है।

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उमा की आँखों में आँसू आ गये।वह सोच रही थी आज मानव अधिकार दिवस है।परंतु किसे किसकी पड़ी है।हालात बदतर है।सब अपने अपने में सिकुड़ गये है।दूसरों के कल्याण की बातें सोचना लगभग बंद ही हो गया है।-जाने कब यह सब बदलेगा।काश! वह कुछ कर पाती।उमा ने ऊँसांस ली।

उसने सोचा कि आज प्रेस क्लब म़े साथी पत्रकारों से इस संबंध में जरूर बात करेगी जाते समय देखा।माँ जी उसके द्बारा दिये गये भोजन को उतावली से खा रही थी,मानो उसे ड़र था कि कोई यह भी छीन ना ले।

 हरीश चरितावली

मुर्दे का रेट राजा ने बांध दिया था।प्रति मुर्दा पचास रूपया।हरीश ईमानदार तो थे ही।किसी से पचास का ईंकावन नहीं लिया।लेकिन जब मिसेज का पत्र आया कि तुम्हारी पत्नी और पुत्र महंगाई की मार से परेशान है।तब हरीश को अकल आयी कि कुछ करना चाहिये।

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वैसे भी मुर्दों की संख्या मे काफी वृद्धि हुई थी।लेकिन हरीश का बेसिक बढ ही नहीं रहा था। सौभाग्य से तीन मुर्दे एक साथ आ गए, लेकिन हरीश ने उन्हें श्मशान घाट मे जलाने से ईंकार कर दिया और कहा,-“आज से हरीश हडताल पर है।जब तक राजा मुर्दों के नये मूल्य निर्धारित नहीं करेंगे, कोई मुर्दा इस श्मशान में नहीं जलेगा।आखिर हमारे भी बाल बच्चे है।
हरीश ने अधिकारी को अपनी मांग का ज्ञापन भिजवा दिया। श्मशान घाट पर अभी भी हडताल जारी है और मुर्दे परेशान है ।

पोस्टर

वे बहुत छोटे थे।समूह में निकल कर अलग-अलग पार्टी के पोस्टर दीवार पर चिपका रहे थे।वे बहुत जल्दी में थे।इस बार के चुनाव में उन्हें बडा काम मिला था।वे जल्दी-जल्दी अपना काम निपटा रहे थे। मैंने उनमें से एक को रोक कर पूछा,-“यह काम जो तुम लोग कर रहे हो,इसकी कुछ जानकारी है,तुम सबको, कि शहर में क्या कुछ हो रहा है?” वह हिचकिचाया।डर भी गया।ना में सिर हिलाया।फिर दूर हट गया।

मैंने फिर से पूछा,-“इन पोस्टरों पर क्या कुछ लिखा है, इसकी जानकारी है,तुम सब को?” अब उन सब में से एक बच्चा जो कुछ बडा था,सामने आया।बोला-“नहीं, साहब,हम ठहरे अंगूठाछाप।हमें यह सब नहीं पता..हम तो केवल इतना जानते है कि एक पोस्टर दीवार पर चिपकाने की हमारी मजदूरी पांच रुपए है।”

 गुनगुनी घूप

सुबह जल्दी नींद उड गयी।सब सोये हुए थे।बाहर निकल कर देखा,सुंदर दृश्य सामने थे।मौसम खुशगवार था।ठंडी ठंडी हवा के झोंके चल रहे थे। दैनिक कार्यों से निवृत होकर प्राणायाम और योगा किया।आसमान से बाल भास्कर ने अपना मुख दिखलाया। वे पिछले दिनों के बारे में सोचने लगे।पढाई लिखाई,ब्याह, दो बच्चे,अच्छी जाब।फिर उनकी परवरिश।दोनों पढ़ लिख लिये।अच्छी जगह सेटिल भी हो गये।खुद का घर भी बन गया।दोनों का ब्याह भी हो गया।

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बहुऐं घर आयी तो सबने कहा,ये तो परायी है।बहुएं है,बेटों को लेकर चली जायेगी।वे कहते नहीं ये मेरी बेटियां है,और हमेंशा मेरे साथ रहेगी।हुआ भी यही।दोनों संस्कार वान थी। हवा का तेज झोंका आया तो वे वर्तमान में लौट आये।अपने जीवन से वे पूर्ण संतुष्ट थे। तभी नीचे से आवाजें आयी।दोनों बहु बेटियाँ उपर आयी।उनके पैर पड़ कर बोली,हैप्पी फादर्स डे। वे खुश हो गये।ढ़ेर सारा आशीर्वाद देकर बोले,बच्चों सदा खुश रहो,स्वस्थ रहो। सूरज देवता आसमान से मुस्कुरा रहे थे।

जीवन परिचय

महेश राजा
जन्म:26 फरवरी
शिक्षा:बी.एस.सी.एम.ए. साहित्य.एम.ए.मनोविज्ञान
जनसंपर्क अधिकारी, भारतीय संचार लिमिटेड।
1983 से पहले कविता,कहानियाँ लिखी।फिर लघुकथा और लघुव्यंग्य पर कार्य।
दो पुस्तकें1/बगुलाभगत एवम2/नमस्कार प्रजातंत्र प्रकाशित।
कागज की नाव,संकलन प्रकाशनाधीन।
दस साझा संकलन में लघुकथाऐं प्रकाशित
रचनाएं गुजराती, छतीसगढ़ी, पंजाबी, अंग्रेजी,मलयालम और मराठी,उडिय़ा में अनुदित।
पचपन लघुकथाऐं रविशंकर विश्व विद्यालय के शोध प्रबंध में शामिल।
कनाडा से वसुधा में निरंतर प्रकाशन।
भारत की हर छोटी,बड़ी पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन और प्रकाशन।
आकाशवाणी रायपुर और दूरदर्शन से प्रसारण।
पता:वसंत /51,कालेज रोड़।महासमुंद।छत्तीसगढ़।
493445
मो.नं.9425201544

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