Home आलेख आज लघुकथा दिवस-जँजीर की विवशता, दायित्व बोध,जल ही जीवन,रोटियाँ-महेश राजा

आज लघुकथा दिवस-जँजीर की विवशता, दायित्व बोध,जल ही जीवन,रोटियाँ-महेश राजा

प्रसिद्ध लघु कथाकार महेश राजा की पढ़िए लघुकथा

जिले के प्रसिद्ध लघु कथाकार महेश राजा की लघुकथा दिवस पर जँजीर की विवशता, दायित्व बोध,जल ही जीवन,रोटियाँ सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है ।

जँजीर की विवशता-पहले कुत्ते ने दूसरे कुत्ते की तरफ देख कर कहा,-“यार,इस तरह दूसरों की जँजीर मे बंँध कर अपना जीवन क्योँ बरबाद कर रहे हो?मेरी तरह आजाद रहो…कब तक अपनी वफादारी दूसरो के टुकड़ों पर बेचते रहोगे?”

दूसरा कुत्ता बोला-“पार्टनर, मैं तो अपने मालिक को छोड़ना चाह रहा हूं, पर मालिक ही मुझे नहीं छोड़ता।कल कह रहा था,अब तुम ट्रैंड हो गये हो…याद है न तुम्हें, मैंने जिन लोगो की लिस्ट तुम्हें दी है,उन पर तुम्हें मुझसे पूछे बिना ही भौकना है।” पहला कुत्ता फिर बोला,”यानि कि तुम आदमी के ईशारों पर जी रहे हो? भौंकना तो हमारा जातीय संस्कार है बास….लेकिन ऐसा नहीं हो सकता कि आदमी हमेँ सिखाये कि हमे किस पर भौंकना है।”

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आज लघुकथा दिवस-जँजीर की विवशता, दायित्व बोध,जल ही जीवन,रोटियाँ-महेश राजा
सभी फाइल फोटो

दूसरा कुत्ता संयत स्वर मे बोला,”सही कहते हो भाई….जंँजीर की विवशता वही समझ सकता है,जिसके गले मे जंँजीर होती है। अपने मालिक की रोटी पर पलने पर भी मैं तुम पर भौंक नहीं रहा हूं, यही क्या कम है।”

 दायित्व बोध-

हर रोज की तरह सुबह की सैर के बाद राज अपनी मनपसंद जगह हनुमान मंदिर पर बैठा हुआ था। रीमा का फोन आया।वह गाँव गयी हुयी थी।कल लौटेगी। रीमा एक पढ़ी लिखी,शानदार आफिस में एक्जीक्यूटिव थी।अच्छे परिवार से थी।सब कुछ ठीक था,पर कहीं कुछ छूट गया था।

रीमा कह रही थी।गाँव आयी हूँ जरूरी काम से।इस बहाने माँ से मिलना हो गया।अवि भी साथ है,नानी से मिल कर खुश है। रीमा ने बताया अगले माह चाचा ससुर के घर पर शादी है।चाचा नहीं रहे तो सब कुछ इन्हें और मुझे करना है।इन्होंने सारा भार मुझ पर डाल दिया है।समय कम है।रुपयों की परवाह नहीं।पर,मेरे पास सीमित साधन है,कार भी न ही तो सबको कह दिया है खर्च करते जाओ बिल मुझे दे दो।

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यहाँ यह बताना लाजिमी होगा। रीमा ने ससुराल को पूरी तरह से अपना लिया है।सास जी,ससुराल साईड के उन्नीस बच्चे साथ ही अवि।सबकी पूरी जिम्मेदारी एक कुशल सारथी की तरह निभाई है।अभी पता चला कि भतीजी दो बरस पोस्ट ग्रेजुएशन के लिये उसके पास आकर रहेगी।

यह बताते हुए उसका स्वर भीगा लगा। राज मुझे जिम्मेदारी वहन से कोई परहेज नहीं।रूपयों की भी चिंता नहीं।मुझे वाहवाही भी नहीं चाहिये।परंतु छोटी छोटी बातों पर आलोचना, निंदा यह सब मुझे भीतर तक तकलीफ़ देती है।अब ऊब गयी हूँ।जी चाहता है सब छोड़कर कहीं चली जाऊं।पर,फिर अवि…..।

बापा जी ने इनके साथ ब्याहते समय कहा था कि ससुराल को अपना लेना पूरा दायित्व निभाना।बस…..आज तक दायित्व बोध ही तो निभा रही हूँ। बहुत तकलीफ़ हैती है। राज को भी रोना आ गया।उसने कहा,रीमा तुम्हें हिम्मत रखनी हे,अपने लिये,अवि के लिये।हम सब के लिये……।प्लीज अपना ख्याल रखना।।

जल ही जीवन

गुजरात का प्रख्यात शहर।आदित्य कालोनी में सब संभ्रात परिवार रहते। पानी की समस्या थी ,तो हर रोज सोसायटी बडे टैंकर मँगवाकर सुबह सात से आठ जल आपूर्ति करती। पानी की बचत पर ध्यान दिया जाता। एक रोज सी विंग के परिवार जन पिकनिक हेतू छह बजे ही निकल गये।बाथरूम का नल खुला रह गया। दिन भर पानी बहता रहा।समिति ने फोन लगाया तो कव्हरेज क्षेत्र से बाहर बताता रहा।मुश्किल से मेन वाल्व से बंद किया गया।

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नियमानुसार उन्हें एक हजार रूपये जुर्माना होना तय था।कालोनी के एक बुजुर्ग ने कहा,यह सजा कम है।रूपये तो वे भर देंगे,परंतु पानी की कीमत उन्हें कैसे पता चलेगी।हाँ उनकी एक दिन की पानी सप्लाई बंद कर दें तो शायद वे इसका मोल समझ सकेंगे। आज पानी रूपयों में बिक रहा है।भविष्य में जलस्तर और भी नीचे हो सकता है।हमारी भावी पीढ़ी की भलाई हेतू जल का बचाव जरूरी है।

रोटियाँ

मई माह की चिलचिलाती धूप।राष्ट्रीय मार्ग पर सडक किनारे के ढाबा मे बडी भीड थी।आने जाने वाले यात्री,ट्रक ड्राइवर आदि भोजन के लिये यहाँ ही रूकते।सभी भोजन करते थे।पसीना पोंछते हुए तृप्त मन से निकलती।ढाबे का मालिक पैसे वसूलने मे व्यस्त था।नौकर रामू गरमागरम तंदूरी रोटीयां सेंकता जा रहा था।साथ हीपास रखे गंदे तौलिए से अपने माथे का पसीना भी पोंछते जा रहा था।

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-“एक रोटी दे दो बाबा।भगवान आपका भला करेगा।बडी भूख लगी है।”-मैले कुचेले कपडो मे एक आठ वर्षीय बालिका हाथ मे अल्युमिनियम का कटोरा लिये खडी थी। रामू ने देखा।रोटियाँ सेंकते हुए उसे अपने पुराने दिन याद आ गये,जब वह भी इसी तरह,भूखा प्यासा ,एक रोटी के लिये दर दर की ठोकरें खा रहा था।उसने बेली हुई रोटी को तंदूर मे डाला और दूसरी रोटी के लिये लोई बनाने लगा।

मालिक ने रामू को देखा,और एक भद्दी गाली दी.सा…। पहले ग्राहकों को देख। रामू को लगा कि मालिक ने उसके मन की बात समझ ली है,कि वह चाहता था ,तवे पर की रोटी मालिक की नजर बचा कर उस लडकी को दे देता।
मालिक की डांट सुन कर वह अपने पुराने दिनों को भूल गया। अब उसे केवल इतना याद था कि बाहर ग्राहक बैठे है और उसे जल्दी से रोटियाँ बनानी है। वह जल्दी जल्दी रोटियां बनाने लगा।

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