अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन कानून 2018 पर सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी मुहर लगा दी है।केंद्र के कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति संशोधन अधिनियम 2018 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा।जस्टिस अरूण मिश्र, जस्टिस विनीत शरण और जस्टिस रवीन्द्र भट्ट की बेंच ने इन याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि कोई अदालत सिर्फ ऐसे ही मामलों पर अग्रिम जमानत दे सकती है जहां प्रथमदृष्टया कोई मामला नहीं बनता हो ।पीठ ने कहा कि अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज करने के लिए शुरुआती जांच की जरूरत नहीं है और इसके लिए वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की मंजूरी की भी आवश्यकता नहीं है।
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न्यायमूर्ति भट ने कहा कि यदि प्रथमदृष्टया एससी/एसटी अधिनियम के तहत कोई मामला नहीं बनता तो कोई अदालत प्राथमिकी को रद्द कर सकती है।गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एससी,एसटी संशोधन अधिनियम 2018 को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर आया है।दरअसल सुप्रीम कोर्ट वे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के हो रहे दुरूपयोग के मद्देनजर इसमें आने वाली शिकायत पर स्वत: एफआईआर और गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी।इसके बाद संसद ने कानून में संशोधन कर पुरानी व्यवस्था को बहाल रखा। सरकार के संशोधन के बाद पहले के मुताबिक ही एफआईआर दर्ज करने से पहले वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों या नियुक्ति प्राधिकरण से अनुमति जरूरी नहीं होगी । साथ ही अग्रिम जमानत का भी प्रावधान नहीं होगा। संसद से पास नए संशोधन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी थी जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया है।
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