Home छत्तीसगढ़ यज्ञ हवन-पूजन, कपिला तर्पण के साथ ही भागवत कथा का हुआ समापन

यज्ञ हवन-पूजन, कपिला तर्पण के साथ ही भागवत कथा का हुआ समापन

वैभव प्राप्त करना है तो अपने जीवन में प्रभु भक्ति  को विराजित करना होगा : प. हिमांशु कृष्ण भारद्वाज

यज्ञ हवन-पूजन, कपिला तर्पण के साथ ही भागवत कथा का हुआ समापन

महासमुंद। स्थानीय दादा बाड़ा में चल रहे भागवत कथा के अंतिम दिन यज्ञ हवन, तुलसी वर्षा, कपिल तर्पण के साथ ही आम भंडारा में हजारों की संख्या में लोग पहुंचे थे। पं. पंकज तिवारी ने मुख्य जजमान प्रकाश चंद्राकर उनकी धर्मपत्नी ललिता चंद्राकर के साथ ही उपस्थित जन समूह को सह जजमान मानकर सभी कार्यो में सहभागिता प्रदान की।

अपने स्थानों पर बैठक लोगों ने भगवतगीता में मंत्र जाप करते हुए तुलसी वर्षा की व गीता ज्ञान प्राप्त किया। इसी तरह हवन में भी लोगों ने सहभागिता निभाई। कपिला तर्पण के सतधरा जल से उपस्थित जन समूह को पंडितों ने छिड़काव भी किया। भगवताचार्य प. हिमांशु कृष्ण भारद्वाज ने हवन पूर्णाहुति में पहुंचकर यज्ञ नारायण भगवान को प्रमाण किया। भावविभोर का वह क्षण भी आया जब पं. हिमांशु ने पं. पंकज तिवारी का आभार व्यक्त करते हुए आयोजन के लिए सभी का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि जब भी यहां कोई प्रवचनकर्ता, साधुसंत पहुंचे तो उनका भी वैसा ही स्वागत सम्मान करना जैसा मेरे किए हो।

पं. हिमांशु कृष्ण भारद्वाज-कष्ट के समय जो काम आए उसे भूलना नही चाहिए

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इस आयोजन के दौरान आयोजकों द्वारा या स्वयं मेरे से कभी वाणी के माध्यम से दोष हुआ तो उन सभी के लिए महाराज  ने क्षमा याचना की। कभी-कभी व्यवस्थागत कारणों से कठोरवचन का भाव प्रगट हो जाता है। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि जीवन से कभी प्रभु प्रेम रिक्त नही होना चाहिए अन्यथा सूनेपन का एहसास होगा।

इस कथा स्थल से ठाकुर जी, भागवत पुराण, परीक्षित के घर पहुंचेगा। दो दिनों बाद इस स्थल से पंडाल, लाईट, माईक जब निकल जाएगा और तुम यहां आवोगे तो यहां सब कुछ सूना-सूना लगेगा। जब तक भगवान यहां विराजमान थे इसका वैभव अलग था। इसलिए वैभव प्राप्त करना है तो अपने जीवन में प्रभु भक्ति  को विराजित करना होगा।

भंडारा में हजारों ने किया प्रसाद ग्रहण

हवन-पूजन के बाद भागवत भगवान के भंडारा में हजारों लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया। दोपहर 1 बजे से शाम 4 बजे तक भंडारा चलता रहा। इस दौरान लोग प्रसादी लेने कथा स्थल पहुंचते रहे। भागवत कथा के विशाल आयोजन का ही फल था कि लोग स्वत: भंडारा में अपनी सहभागिता निभा रहे थे। कोई चावल तो कोई सब्जी, तो कोई दूध तो कोई आटा या फिर मिठाई के रूप में सूखे आइटम भिजवाकर भंडारा में प्रसाद बंटवाने का अनुरोध आयोजन समिति के सदस्यों से कर रहे थे। नगरवासियों की सहभागिता का ही परिणाम था कि प्रतिदिन पर्याप्त मात्रा में कथा स्थल से कथा सुनने आए लोगों को प्रसाद की कमी नही हु

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