महासमुन्द-क्लब पारा में आयोजित श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह के चतुर्थ दिवस आचार्य मोनू महाराज ने कथा प्रारम्भ करते हुए कहा कि प्राचीनकाल से ही भारत संस्कारों की धरती रही है, हमारे पूर्वज व शास्त्रों ने हमें सोलह संस्कारों में जीने का ज्ञान दिया है लेकिन पाश्चात्य सभ्यता सुरसा की भांति हमारे प्राचीन संस्कारों को निगलने का प्रयास कर रही है, इस सभ्यता के चलते हम वर्तमान में तरह-तरह से खाना-पीना तो सीख रहे हैं लेकिन सही अर्थों में जीने से हम कोसों दूर जा रहे हैं।
वास्तविक तीर्थ माता-पिता के चरणों में
श्रीमद्भागवत महापुराण की प्रत्येक कथा हमें संस्कारों में जीना सिखाती है, जिस प्रकार कोई भी आकृति कच्चे घड़े में ही बनाई जा सकती है पके घड़े में नहीं, उसी प्रकार व्यक्ति में संस्कारों का प्रादुर्भाव बचपन से ही होता है ।
ध्रुव चरित्र की कथा सुनाते हुए आचार्य जी ने कहा कि लोग तीर्थ के नाम पर विविध स्थानों का भ्रमण करते हैं लेकिन वास्तविक तीर्थ को प्राप्त नहीं कर पाते क्योंकि वास्तविक तीर्थ माता-पिता के चरणों में ही होता है जबकि वर्तमान में लोग माता- पिता की सेवा से दूर होते जा रहे हैं, एक दृष्टांत के साथ आचार्य जी ने बताया कि व्यक्ति अपने माता – पिता के साथ जैसा व्यवहार करता है उनकी संतानें भी उनसे उसी प्रकार व्यवहार करती हैं।
किया गया रोचक वर्णन
क्लब पारा में सुधा होरीलाल शर्मा द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह में आज आचार्य मोनू महाराज द्वारा पुराणों में वर्णित 16 संस्कारों का विस्तार से वर्णन किया गया तथा सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्मा के दूसरे अंश से उत्पन्न कश्यप, दिति और अदिति प्रसंग, गुरु और ब्राह्मण के अपमान के परिणाम बताते हुए ध्रुव चरित्र, भरत कथा, जड़भरत चरित्र, नरसिंह अवतार, प्रहलाद चरित्र का रोचक वर्णन किया गया।
23 जनवरी तक आयोजित इस श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह में 01 से 05 बजे तक व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जिसमें श्रद्धालू श्रोतागण बड़ी संख्या में उपस्थित रहते हैं ।
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