राजनादगांव-शासन की पहल से विलुप्त हो रही छत्तीसगढ़ी परम्परागत लोधी बुनकारी कला को पुनर्जीवन मिला है। छुईखदान एवं गंडई के बुनकर मोहक डिजाइन के लोधी साड़ी का निर्माण कर रहे हैं, जिसकी अभी मार्केट में अच्छी डिमांड है। लोधी साड़ी को बड़े भौराई साड़ी भी कहा जाता है।
यह साड़ी शादी-विवाह के अवसर ,पर बहुतायत उपयोग किया जाता है छत्तीसगढ़ की बहुमूल्य धरोहर समृद्ध हाथकरघा के रूप में अभिव्यक्त हो रही है और अपनी विविधता, गुणवत्ता एवं सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध है। राजनांदगांव जिले के बुनकरों के हाथों के, हुनर ने बेजोड़ कारीगरी से अपनी एक विशेष पहचान बनाई है।
छुईखदान बुनकर सहकारी समिति मर्यादित के तहत निर्मित, हाथकरघा उत्पाद फेब इंडिया नई दिल्ली में निर्यात किये जा रहे हैं। अनोखे रंग संयोजन से बने उम्दा फेब्रिक लोगों की पसंद बन रही है। इस वर्ष 150 बुनकरों को 70 लाख 64 हजार राशि की प्राप्त हुई है, जिनसे उनकी आर्थिक स्थिति सशक्त हुई है।
छुईखदान, गंडई एवं खैरागढ़ में डोंगरगढ़ एवं राजनांदगांव में कुशल बुनकरों द्वारा खुबसूरत डिजाइनदार साड़ी, ऊलन, स्पायडल चादर, जेकार्ड चादर, साल, रंगीन चेक, प्लेन चादर, प्रिटेंड चादर, पिलो कव्हर, फर्श दरी, फर्निशिंग क्लाथ, शर्ट क्लाथ, पेसेंट डे्रस, सर्जन गाउन, ग्रीन वर्दी, यूनिफार्म, डे्रस के लिए वस्त्र, धोती, गमछा, पंछा, नेपकीन, रूमाल एवं उपयोगी वस्त्र तैयार किये जा रहे है।
उप संचालक हाथकरघा इन्द्रराज सिंह ने बताया कि विलुप्त हो रही परम्परागत लोधी साड़ी का वेल्यू एडीशन, करने के साथ ही इसमें नया प्रयोग करते हुए ,नई डिजाइन का समावेश भी किया जा रहा है।समिति के प्रबंधक लालचंद देवांगन ने बताया कि छुईखदान प्रदेश में एकमात्र संस्था है, जिसे जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित से 54 लाख रूपए की ऋण स्वीकृति प्राप्त है।
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