महासमुंद- जिले के ख्यातिप्राप्त लघुकथाकार महेश राजा की लघु कथाए -वरदान-चिंता-बुरी आदत-परिभाषा व् दुआओं में शामिल सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है ।
वरदान-पति की मृत्यु के बाद पत्नी आत्मा को ले जाने वाले यमराज जी के पीछे -पीछे चली। यमराज जी ने उसे बहुत समझाया।कई प्रकार से प्रलोभन दिये।जब वह नहीं मानी तो यमराज बोले,”पुत्री मैं तुम्हारी निष्ठा से प्रसन्न हूँ।कोई एक वर मांगो?”
पत्नी ने हाथ जोड़कर कहा,”महाराज,आज कल अनुकंपा नियुक्ति में अनेक धाँधलियाँ है।कई सारे लगे हुए है।नियुक्ति मुझे ही मिले।” यमराज जी ने खुश होकर “तथास्तु”कहा और सरपट यमलोक की तरफ प्रस्थान किये।
चिंता
जंगल में दूर झाड़ियों से जाती बकरी को देख शेर सिंह ने पूछा'”कैसी हो बहन?बहुत दुबली नजर आ रही हो।जंगल में ठीक से चारा पानी नहीं मिल पाता क्या?” बकरी ने लगभग भागते हुए कहा,”आपको मेरी फिक्र है या अपनी?”
बुरी आदत
बुधारु दिन भर रिक्शा चलाकर घर आया।रमिया ने उसे पानी का लोटा दिया। बुधारु ने बेटे रामू के बारें में पूछा तो रमिया ने बताया वह दोस्त के साथ खेल रहा है। बुधारु की बीड़ी समाप्त हो गयी थी।रमिया से बोला,रामू को पुकार कर मेरे लिये नुक्कड़ से बीड़ी माचिस मँगवा दे।
रमिया ने पास आकर कहा,ऐ रामू के बाबू।क्या तुम यह चाहते हो की हमारा रामू किसी गलत आदत में पड़े।तुम बीड़ी बाहर से पीकर आया करो।या फिर यह बुरी आदत छोड़ दे।मैं तुम्हारे पैर पड़ती हूँ, रामू से बीड़ी मत मँगाना।नहीं तो उसे भी आदत पड़ जायेगी। कुछ सोच कर बुधारु ने सिर हिलाया,ठीक ही है।अच्छा चल रोटी और गोंदली दे खूब भूख लगी है।
परिभाषा-
-“क्या करते है,आप?” -“जी एक सरकारी महकमे से हूँ।” -“तो यूँ कहिये न कि कुछ नहीं करते। सिर्फ़ मौज करते है।”
दुआओं में शामिल
फोन बजा,राज ने समय देखा फिर उठा लिया। रीमा थी। सॉरी राज,मैं पूजा कर रही थी।तुम्हारा फोन उठा नहीं पायी।
-मेरी पूजा तो अब पूरी हुयी।-वो कैसे? -अरे बाबा तुमसे बात जो हो गयी। -राज,कुछ भी…..,अच्छा बताओ कहाँ हो?
-हमेशा की तरह मंदिर के पास। -मेरे लिये कुछ माँगा राज…सचमुच… मुझे इसकी जरूरत है। राज कहना चाह रहा था,तुम ही तो पूजा हो….देवी हो…।तुम्हारे लिये क्या माँगता।
-यह भी कोई कहने की बात।तुम तो मेरी हर दुआओं में शामिल…अवि के लिये भी प्रार्थना की है….।-अपने लिये कुछ माँगा? -तुम जानती हो न….मैं….।मुझे किस चीज की कमी।अच्छा बताओ ,अब सिरदर्द कैसा है? रीमा हँसी- राज,यह तो दाम्पत्य जीवन का हिस्सा है।आजीवन साथ रहता है। तुम न..जीवन दर्शन छोडो।अपना ख्याल रखो,अपने लिये न सही,अवि के लिये…मेरे लिये….हम सबको तुम्हारी जरूरत है।
अवि क्या कर रहा है? सोया है,उसी को उठाने जा रही हूँ।8.40आन लाइन क्लास है।नाश्ता बनाना है।मन नहीं कर रहा।कुक आँटी का वेट कर रही हूँ।अच्छा सुनो अदरक वाली चाय बना रही हूँ,पीयोगे? ऐसे हमारे नसीब कहाँ?जिस दिन अपने हाथ से बनी चाय पिलाओगी न।मेरे लिये अमृत समान होगा।अच्छा छोडो मैं तुम्हें कुछ होमवर्क देता हूँ।
प्लीज राज,आज नहीं… आल रेडी काम के बोझ तले दबी हुयी हूँ।
-अरे ज्यादा कुछ नहीं… एक समूह में कथा भेजनी है।दूसरे रानी लक्ष्मी बाई पर कविता..सिम्पल।-राज,लगता है अब थक गयी हूँ।इतने सारे काम शेष है।तुम्हारे आने से अवि की चिंता से तो मुक्त हो गयी।पर…शोध कार्य में पिछड़ गयी हूँ।नहीं कर पा रही हूँ।मेरे लिये दुआ करो ना..प्लीज। तुम चिंता मत करो।धैर्य से सब होगा।ठीक होगा।दुआओं का मुझ पर छोड़ दो।अच्छा….अब तुम चाय पीयो..।शाम को आफिस के बाद बात करूंँगा।
लेखक परिचय
महेश राजा
जन्म:26 फरवरी
शिक्षा:बी.एस.सी.एम.ए. साहित्य.एम.ए.मनोविज्ञान
जनसंपर्क अधिकारी, भारतीय संचार लिमिटेड।
1983से पहले कविता,कहानियाँ लिखी।फिर लघुकथा और लघुव्यंग्य पर कार्य।
दो पुस्तकें1/बगुलाभगत एवम2/नमस्कार प्रजातंत्र प्रकाशित।
कागज की नाव,संकलन प्रकाशनाधीन।
दस साझा संकलन में लघुकथाऐं प्रकाशित
रचनाएं गुजराती, छतीसगढ़ी, पंजाबी, अंग्रेजी,मलयालम और मराठी,उडिय़ा में अनुदित।
पचपन लघुकथाऐं रविशंकर विश्व विद्यालय के शोध प्रबंध में शामिल।
कनाडा से वसुधा में निरंतर प्रकाशन।
भारत की हर छोटी,बड़ी पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन और प्रकाशन।
आकाशवाणी रायपुर और दूरदर्शन से प्रसारण।
पता:वसंत /51,कालेज रोड़।महासमुंद।छत्तीसगढ़।
493445
मो.नं.9425201544
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