महासमुंद- महेश राजा की लघु कथाए उदाहरण,सपना व् शहर की हवा सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है । उदाहरण- अचानक फोन की घंटी बज उठी।अजय-अनिल चौंक पडे।अभी रात के ग्यारह बजे थे।अभी ही वे एक मरीज को हास्पिटल पहुँचा कर आये थे। अजय ने फोन उठाया।कोविड अस्पताल से फोन आया था,एक मरीज को तुरंत प्लाज्मा की जरूरत थी।
अनिल ने तुरंत गाड़ी निकाली। दरअसल अजय-अनिल दो मित्र थे।अजय की माँ समय पर इलाज न मिल पाने के कारण इस सँसार में नहीं रही थी,और अनिल के एक रिश्तेदार को अस्पताल में बेड न मिल पाने की वजह से मौत हो गयी थी।
तब से दोनों ने प्रण लिया था कि हर पल वे इस कठिन समय में जरूरत मंदों की मदद करेंगे। तब से वे दोनों सुबह से देर रात तक मरीज को अस्पताल पहुंचाने ,उनके लिये दवाई,आक्सीजन, भोजन और हर जरूरत को पूरा करने में जी जान से लग गये। शहर में दोनों मानवता की जीती जागती मिसाल बन गये।लोग उनका उदाहरण सामने रख कर मानव सेवा में जुट रहे है।
अधूरापन, बँटवारा, तलाश जारी है,अजनबी, तलाश जारी है, तेरे मेरे सपने- महेश राजा
सपना
आज राज बहुत खुश था।सुबह से जाकर अपने आराध्य की चौखट में बैठ गया था। रीमा की एक और उपलब्धि।वह भी अंतरराष्ट्रीय स्तर की।वह खुशियों से फूला न समा रहा था। राज शुरु से जानता था कि रीमा गुणों की खान है।पर,रीमा ने सब कुछ एक अभेद्य खोल में छिपा कर रखा था।राज ने तो उसे समय समय पर प्रोत्साहित ही किया।
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रीमा गुणी,स्वयं सिद्धा,सर्वगुणसम्पन्न नारी थी।पर,वह अंतर्मुखी थी।उसे पद,नाम आदि की लालसा न थी।राज ने बस इतना समझाया कि तुम अपने गुणों को बाँटो,ताकि दूसरों को इसका लाभ मिले। रीमा राज को बहुत मान देती है।अपने भीतर के जागरण का श्रेय भी। पर,राज कहता है,यह सब तुम्हारी मेहनत और हौसलों का नतीजा है। आराध्य देव को नमन कर आँख में भर आये आँसुओं को पोंछकर राज यह सोचता आगे बढ़ चला कि रीमा ने उसके सपनों को साकार किया है।
शहर की हवा
आखिर बेटे ने बापू को शहर आने के लिये मना ही लिया।बेटा चाहता था कि बापू उसके साथ शहर में ही रहे।परंतु बापू को गांव की मिट्टी से लगाव था। गांव में फार्म हाउस,गोशाला और सुंदर बगीचा था।मौसमी फल ऊगा करते।पिछले बरस ही उनकी धर्मपत्नी का देहांत हो गया था।घर का पुराना चाकर बिरजू और उसकी पत्नी हरदम उनकी सेवा में रहते।
आजकल उनकी तबियत कुछ ठीक नहीं रहती थी।बेटा कार में आकर बापू को शहर ले आया। बेटा ऊंचे ओहदे पर सरकारी अफसर था।बड़ी कोठी थी।बापू के लिये एक हवादार कमरे में व्यवस्था कर दी गयी। कोठी में उनकी पत्नी ,एक बेटा और पांच नौकर चाकर रहते थे।
बापू को एक अच्छे अस्पताल में ले जाकर जाँच आदि करायी।सामान्य सर्दी, खाँसी थी जो कि वातावरण बदलने से ठीक है जायेगी। पोता भी दादा से मिल कर खुश था। सब कुछ ठीक था,पर बहु स्वतंत्रता से जीने में विश्वास रखती तो उसे बापू का आगमन अच्छा न लगा था।
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एक रात बापू पानी के लिये रसोई घर में जा रहे थे तो बेटे के कमरे से बहु की आवाज आ रही थी ए जी,,बापू की तबियत ठीक नहीं ,वे दिन भर खाँसते रहते है।बिट्टू उन्हीं के पास रहता है,मुझे ड़र बना रहता है।क्यों न बापू को सरकारी विश्रामगृह में शिफ्ट करवा देते,वह भी तो आप ही के अंड़र में है न।वहाँ केयरटेकर भी है।”
आगे उनसे न सुना गया। रात उन्होंने ने निर्णय लिया,गाँव पहुंच कर मित्र जमनलाल के वकील बेटे को बुलाकर सारी सँपति पोते के नाम लिख देंगे।वही तो इसका सच्चा वारिस है। दूसरे दिन बेटे को बुलाकर कहा-“,बेटा अब मैं ठीक हूँ, मुझे गाँव जाना है ।मेरा गाँव मुझे पुकार रहा है।वैसे भी शहर की हवा मुझे राश नहीं आती।फिर गाँव की खुशबु में तुम्हारी मांँ की यादें भी लिपटी हुई है।
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बेटे ने बहुत मनाया।पर,वे तय कर चुके थे।हाँ ,पोते का मोह उन्हें सता रहा था,पर जाना भी जरुरी था। बहु को पता चला तो वे खुश हुई।तुरंत बापू का सामान तैयार कर दिया। कार आ गयी थी।पोता रोनी सूरत बनाये,उनसे लिपटा हुआ था।वे समझा रहे थे कि बहुत जल्दी ही वे वापस शहर आयेंगे। बेटा बहु ने पांँव पड़े।सब कर्मचारी एक एक कर आ मिले।सबको उन्होंने सौ सौ रूपये का एक नोट आशीर्वाद स्वरूप दिया।वे मना करते रहे।पर,बापू का मन रखने सबने ले लिया।
वे कार में बैठ गये।बड़ी मुश्किल से पोते को उनसे दूर किया गया।जैसे ही कार गेट से आगे बढ़ी उनकी आँखों से आँसू झर झर निकल पड़े।सब कुछ धुंधला सा हो गया था।चश्मा निकाल कर उन्होंने आँखे पोंछी और सीट पर सिर टिका कर आँखे बंद कर ली।कार तेजी से शहर से गाँव की ओर बढ़ रही थी।
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