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महेश राजा की लघुकथा उपयोगिता के साथ पढिए अन्य लघुकथा

बड़े सबेरे मित्र का फोन आया।कह रहे थे-"आज तिथि बहुत अच्छी पड़ रही है

महेश राजा की लघुकथा उपयोगिता के साथ पढिए अन्य लघुकथा

महासमुंद-जिले के प्रसिद्ध लघुकथाकार महेश राजा की लघुकथा उपयोगिता, नमस्कार प्रजातंत्र, बकरी और जंगल व् स्नेह-संपर्क सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है।

उपयोगिता

बड़े सबेरे मित्र का फोन आया।कह रहे थे-“आज तिथि बहुत अच्छी पड़ रही है। आपकी भाभी की ईच्छा एक धार्मिक अनुष्ठान कराने की है।घर के ही दस-पंद्रह लोग रहेंगे।आपकी भी जरूरत पड़ेगी।”

उन्होंने सहर्ष कहा-“बताईये,मुझे क्या करना होगा।मैं तत्पर हूँ।” मित्र ने कहा-“कुछ खास नहीं।बारह बजे तक आना होगा।पूजा वगैरह चलती रहेगी।आपको मेहमानों के साथ रहना होगा।आप अच्छे लेखक है।बातें भी अच्छी करते है ,तो लोगों का मनोरंजन होगा।वे बोरियत महसूस नहीं करेंगे।फिर सब साथ मिल भोजन कर लेंगे।”

महेश राजा की लघुकथा एक अधुरी प्रेम कथा के अलावा पढिए अन्य कथा

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 नमस्कार प्रजातंत्र

वह बोले”-मैंने लोगों को नमस्कार करना छोड दिया।”

मैंने कारण जानना चाहा,तो उन्होंने कहा-” लोग नमस्कार का गलत अर्थ लगाने लगे है।जिसे नमस्कार करो वह दिन-भर परेशान रहता है और केवल यही सोचते रहता है कि मैंने उन्हें नमस्कार क्यों किया।फिर सोचता है कि जरूर मैं उनसे कुछ रूपये उधार मांगने जा सकता हूँ, या फिर ऐसा सोचते है कि उनसे मेरा जरूर कोई काम अटका होगा।आज ईंसान नमस्कार का यही अर्थ लगाता है कि नमस्कार के पीछे,नमस्कार करने वाले का कोई। स्वार्थ होगा।”

मैंने कहा-“हर आदमी ऐसा नहीं होता।जो खुद स्वार्थी होता है और लोगों की खुशामद अपने स्वार्थ के लिये करता है,वही आदमी ऐसा सोच सकता है।” वह बोले,-“कल मैं ने एक नगरपालिका के कर्मचारी को नमस्कार किया तो वह व्यंग्य करते हुए बोला,”-सुबह सुबह नमस्कार कर रहे हो….क्या बात है?”

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वह आगे बोले,-“उसकी बात सुनकर मुझे गुस्सा आ गया।सा….अपने जैसा समझते है,सबको।मैंने तो अभिवादन स्वरूप नमस्कार किया था,और वह गलत समझ बैठे।उसके बाद एक अस्पताल के कर्मचारी को नमस्कार किया तो उसने हाथ उठाने के बजाये सिर हिला दिया….सा.. बाबूगिरी करता है और अपने को अधिकारी समझता है…मेरे नमस्कार का जवाब सिर हिला कर देता है।जा मर…आज से नमस्कार करना बंद। ईसीलिये कहता हूँ कि नमस्कार करना सबसे बडी मूर्खता का काम है,आजकल।जिसे नमस्कार करोगे,उसका भाव बढ जाता है,और सोचने लगता है कि हम उनसे कोई काम निकलवा लेंगे।”

मैंनें कहा,-“लेकिन जो लोग आपको पहले से नमस्कार कहते है,उनके बारे में…।”

मेरी बात बीच में ही काटकर वे बोले,-“सब स्वार्थी है…अपने मतलब के लिये नमस्कार करते है।एक सज्जन पिछले तीन दिनों से नमस्कार कर रहे थे।मैं सोचता था वे मुझे आदर दे रहे है,लेकिन कल ही वे दफ्तर पहुंचे, और मुझसे बोले,-“मेरा टेलीफोन दूसरी जगह शिफ्ट करवा दिजिये…।मैंने सुना है आजकल यह काम आपके जिम्मे है।”

थोडी देर उन्होंने सडक पर चलते हुए आदमियों की ओर नजर दौडाई और फिर बोले.-“मैंने उनसे कह दिया कि कल से मुझे नमस्कार मत करना…आप आवेदन लगा दो।बडे साहब जब आदेश करेंगे आपका टेलीफोन अन्यत्र शिफ्ट हो जायेगा।सच कहता हूं, भाई साहब मुझे ऐसे मतलबी लोगों का चेहरा देखना भी पसंद नहीं। है।”

तभी देखा एक अलग थलग चेहरे वाला मोटा सा आदमी जिसने कुरता पाजामा पहन रखा था,जो कि इस बात की चुगली खा रहा था कि वह नेता है।चेहरे पर सत्ता लटकी हुई थी।पास से गुजरे मेरे मित्र ने हाथ उठा कर ऊंची आवाज में उन्हें नमस्कार किया।

जब वह दूर चले गये तो मित्र ने खिसियानी हंसी के साथ कहा,”क्या करे,सतापक्ष से है।कभी कभी … को भी नमस्कार करना पड जाता है।जाने कब क्या काम पड जाये…यही तो हमारे प्रजातंत्र का उपहार है।”

 बकरी और जंगल

जंगल के जानवरों ने सोचा कि उन्हें अपना राजा चुन लेना चाहिये। सियार ने कहा-“मैं रात भर चिल्ला चिल्ला कर लोगो को सावधान रखता हूँ।इसलिये राजा मुझे ही बनाओ।” गिद्ध ने कहा,-“मैं दूरदृष्टि वाला हूँ।इसलिए राजा के पद पर सबसे योग्य उम्मीदवार मैं ही हूँ।

चूहा बोला,-“मैं हर वस्तु को कुतरने मे माहिर हूँ।मुझे अपने पैने दाँतों पर भरोसा है।मुझसे अच्छा राजा कोई नहीं हो सकता।”

भेडिया बोला -“मुझे अपने पंजो पर पूरा भरोसा है।इन पंजो से कोई नहीं बच सकता,इसलिये राजा मुझे ही बनाओ।”

तभी उनकी नजर एक मिमियाती हुई बकरी पर पडी।सभी की ईच्छा थी कि आज बकरी के स्वादिष्ट मांस का आनंद लिया जाये। भेडिये ने बकरी की ओर ललचाई नजरों से देखा।

सियार चालक था,बोला-“ठहरो!इतने उतावले मत बनो।पहले चुनाव हो जाने दो।बकरी को इसी जंगल में रहना है।हमसे बच कर कहांँ जायेगी?

 स्नेह-संपर्क

समीर जी को अभी अभी नया पद मिला था।वे राजनीति के काफी घुटे हुए खिलाड़ी थे।बोलते बहुत अच्छा थे।एक ही कमी थी,शब्द ज्ञान की।पी.एस. जो लिख कर देता।उससे वे संतुष्ट न थे।यह सब रूटीन लगता।वे कुछ ऐसा चाहते थे कि कुछ ऐसा कहे जो सीधा जनता के ह्रदय में पेठ जाये।

कल एक बडे कार्यक्रम में उन्हें मुख्य अतिथि बनाया गया था।उन्हें एक स्पीच देनी थी,जो उनके भावी राजनैतिक जीवन पर बड़ा अच्छा प्रभाव पैदा करने वाली थी।

काफी सोचने के बाद उन्हें अपने सहपाठी ज्ञानेश्वर जी की याद आयी,जो भाषा शास्त्र और साहित्य के ज्ञाता थे।अक्सर मैगजीन में उनके लेख छपते।उनसे मदद ली जा सकती है उन्होंने पी.ए. को बुलाकर गाडी लेकर ज्ञानेश्वर जी के घर भेजा इस निमंत्रण के साथ कि उन्होंने चाय पर बुलाया है। थोडी देर बाद ज्ञानेश्वर जी उनके साथ थे।शानदार चाय और ढेर सारे लजीज नाश्ते के बीच औपचारिक बातें हो रही।

समीर जी कुटनीतिज्ञ थे।बातों के जादु से उन्होंने अपनी बात कही और मदद मांगी कि एक सुंदर लेख लिख कर दें।ज्ञानेश्वर जी सिद्धांत वादी व्यक्ति थे।परंतु पुराने सहपाठी की बात न टाल सके।आज ही लिखकर भेजने की बात कहकर विदा मांगी।

समीर जी ने पी.ए. को इशारा किया।एक शानदार गिफ्ट पेक में एक मोबाइल पेश किया गया।

महेश राजा की लघुकथा-कफन,एक अधूरी प्रेम कथा,चिंता,जन्म तिथि व् पेट और प्रार्थना

महेश राजा की लघुकथा उपयोगिता के साथ पढिए अन्य लघुकथा
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समीर जी मधुर स्वर में बोले,आप ठहरे विद्वान और सिद्धांत के धनी।आपको कुछ दे सकने की कूवत हममे नहीं है.पर यह तो आपको लेना ही होगा।ना मत कहियेगा।कल ही मार्केट में नया आया है।दो मँगवाये एक श्रीमति जी के लिये और एक हमारी आदरणीय भाभीजी के लिये।आपके यहाँ किसी भी कार्यक्रम में हम शामिल न हो सके।यह तुच्छ भेंट स्वीकारें।आदर सहित भाभी जी को दिजियेगा।

पी.ए. को गाडी निकलवाने का आदेश देकर समीर जी बोले देखिये आपके पास ज्ञान का भंडार है और में विद्वानों की बहुत कदर करता हूँ।जब भी समय मिले आकर हमें भी कुछ सीखा जाया करे।स्नेह संपर्क बनाये रखे।

हाथ जोडकर ससम्मान उन्हें विदा किया गया। ज्ञानेश्वर जी बहुत मुश्किल से उपहार स्वीकार कर घर तरफ बढ़ चले।वे सोच रहे थे पता नहीं पत्नी जी यह भेंट स्वीकार करेगी भी कि नहीं।फिर वे क्या कहेंगे…।सोच कर चिंता में पड गये।

जीवन परिचय-

जन्म:26 फरवरी
शिक्षा:बी.एस.सी.एम.ए. साहित्य.एम.ए.मनोविज्ञान
जनसंपर्क अधिकारी, भारतीय संचार लिमिटेड।
1983 से पहले कविता,कहानियाँ लिखी।फिर लघुकथा और लघुव्यंग्य पर कार्य।

महेश राजा की दो पुस्तकें1/बगुला भगत एवम2/नमस्कार प्रजातंत्र प्रकाशित।
कागज की नाव,संकलन प्रकाशनाधीन।
दस साझा संकलन में लघुकथाऐं प्रकाशित
रचनाएं गुजराती, छतीसगढ़ी, पंजाबी, अंग्रेजी,मलयालम और मराठी,उडिय़ा में अनुदित।
पचपन लघुकथाऐं रविशंकर विश्व विद्यालय के शोध प्रबंध में शामिल।
कनाडा से वसुधा में निरंतर प्रकाशन।
भारत की हर छोटी,बड़ी पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन और प्रकाशन।
आकाशवाणी रायपुर और दूरदर्शन से प्रसारण।
पता:वसंत /51,कालेज रोड़।महासमुंद।छत्तीसगढ़।
493445
मो.नं.9425201544

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