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जीने की वजह ,प्रजातंत्र व् सपनों की पीड़ा- जितेन्द्र कुमार गुप्ता की लघु कथा

अनफिट,अब और नहीं,गुमनाम ताज-जितेन्द्र कुमार गुप्ता की लघु कथा

महासमुंद-मध्यप्रदेश इंदौर के प्रसिद्ध लघु कथाकार जितेन्द्र कुमार गुप्ता की लघु कथा जीने की वजह ,प्रजातंत्र व् सपनों की पीड़ा सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है ।

जीने की वजह -“अरे रमिया, इस हालत में तू जा सकेगी काम पर?” गर्भवती रमिया को लाईट का गमला सिर पर रखते देखकर कमला ने चिन्ता से पूछा। कमला और रमिया एक ही गांव से थी और शहर में एक ही झोपड़ पट्टी में रहती थी। पति मजदुरी करते और ये दोनों बरातों में लाईट के जलते बल्बों वालें गमले सिर पर रखकर चलने का काम कर कमाकर घर चलाने में हाथ बंटाती थी।

जीने की वजह ,प्रजातंत्र व् सपनों की पीड़ा- जितेन्द्र कुमार गुप्ता की लघु कथा
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“देख, दो-तीन किलोमीटर चलना पड़ेगा, ऐसे में तू….. एक बार फिर सोच ले।” “सोचना क्या कमला! काम नहीं करूँगी,मैं नहीं चलूँगी तो पेट कैसे भरेगा? और ये जो मेरे अंदर है,मुझसे पहले ये चल बसेगा।” कहते हुए खुद को सम्भालती, दो पेट की आग बुझाने के लिये “मातृत्व” सिर पर आग उठा कर चल पड़ी।

सपनों की पीड़ा

“अरे ये क्या? ये तो वही है।” बारात में सिर पर लाईट का गमला उठाये चल रही गर्भवती कमली अचानक दुल्हे के रूप में मनीष को देख सकते में आ गई। उसे याद आ गया चार महिने पहले मनीष उसके गाँव आया था और वो उसकी मीठी-मीठी बाँतो के झांसे में आकर गलती कर बैठी थी। मनीष जल्दी ही आने का कहकर जो गया तो फिर न लौटा। जब पेट दिखने लगा तो गाँव वालों ने भी परिवार का जीना दूभर कर दिया।

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हारकर माँ बाप के साथ शहर में आकर पेट की खातिर वो शादीयों में खाना बनाने वाले लोगों के साथ काम करने लगी थी। अचानक दूल्हे के रूप में मनीष को घोड़ी पर आते देखकर उसकी पोल सबके सामने खोलने की ठान उसने कदम उठाया ही था कि दुल्हन पर उसकी नजर पड़ी । सुन्दर,मासूम, मुस्कुराता चेहरा। सुनहरे भविष्य के सुहाने सपने उसकी आँखों में तैर रहे थे। आखिर उसने कदम वापस खींच लिये। मासूम सपनों के उजड़ने की पीड़ा उससे बेहतर भला कौन समझ सकता था।

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प्रजातंत्र

चुनाव का समय था। राजा का चुनाव होना था ।”हमें कुछ कहना है!” दमित प्रजा का स्वर उठा ।” …….।” पुराने राजा ने घूरकर सबको देखा।  वही राजा फिर चुन लिया गया । प्रजातंत्र की जीत अगले दिन की सुर्खियां थी।

परिचय
नाम :- जितेन्द्र कुमार गुप्ता
पिता का नाम:- स्व. श्रीरामचंन्द्र गुप्ता
जन्मस्थान :- मां रेवा के किनारे बसे गांव महेश्वर
शिक्षा:- विज्ञान स्नातक (गणित)
प्राथमिक शिक्षा महेश्वर में उच्च शिक्षा बुरहानपुर से
व्यवसाय :- श्रम मंत्रालय के अधीन विभाग में अधिकारी
लेखन कर्म :- कहानी ,कविता , गजल,. शे’र विशेष रूचि लघुकथा लेखन में । राजभाषा विभाग की “दिशा” और
“मालवा ज्योति” पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन , म.प्र.हिन्दी साहित्य समिति की मुख पत्रिका ” वीणा ” और “क्षितिज” में लघुकथाएं और कविताएं प्रकाशित , क्रांतिबोल समाचार पत्र में रचनायें , सोशल मिडिया के लघुकथाकार, लघुकथा के परिंदे, गागर में सागर, जिन्दगीनामा,…..और भी कई समुह में सक्रिय भागीदारी
प्रकाशन :-
लघुकथाओं का प्रथम महाविशेषांक “ लघुकथा कलश” में रचनायें ,साझा लघुकथा संग्रह….
“भाषा सहोदरी”,“सफ़र संवेदनाओं का” “आसपास से गुजरते हुए” “ दीप देहरी पर” अनाथ जीवन का दर्द”
में लघुकथायें प्रकाशित..।
साझा काव्य संग्रह “अभिव्यक्ति” काव्य करूणा“में रचनायें प्रकाशित।

पता:  211 सी 5 सूर्यदेवनगर
 इंदौर (म.प्र.) 452009
9229203028,
8818844118

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