जयपुर-अरावली की हरी-भरी वादियों में बलखाते घुमावदार रास्तों से होकर जब सज्जनगढ़ पहुंचते हैं, तो इतिहास का एक नया अध्याय हमारे सामने होता है। प्रकृति प्रेम का एक नायाब उदाहरण हमारी आंखों के सामने उस गुजरे हुए दौर की कहानी कहता है, जहां से कभी आसमां में गुजरने वाले बादलों पर नजर रखी जाती थी। इस महल का निर्माण सन् 1883 ई. में मेवाड़ के महाराणा सज्जन सिंह (शासन काल 1874-1884) ने बांसदरा की पहाड़ी पर करवाया था।
महाराणा सज्जनसिंह ने इस महल का निर्माण मानसून के बादलों पर नजर रखने के लिए करवाया था, लेकिन महल का निर्माण पूरा होने से पहले ही मात्र 25 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई। उन्हीं के नाम पर इस महल को सज्जनगढ़ नाम दिया गया। किले की सुदृढ़ प्राचीर सज्जनसिंह के उत्तराधिकारी महाराणा फतहसिंह (शासन काल 1884-1930) के कार्यकाल में पूर्ण हुई। सन् 1956 में महाराणा भगवतसिंह ने यह महल जनता को समर्पित कर दिया था।
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समुद्र तल से 932.60 मीटर ऊंचाई पर निर्मित सज्जनगढ़ महल शिल्पकला, प्रकृति प्रेम और दूरदृष्टि का अनुपम उदाहरण है। महल पर गिरने वाली बारिश की हर बूंद को सहेजने का प्रबंध किया गया है। इस महल की वर्षा जल संग्रहण प्रणाली आधुनिक इंजीनियरिंग के लिए भी एक अजूबा है।
महल की हर मंजिल पर गिरने वाले वर्षा जल को उसी मंजिल की छत के भीतरी भाग पर निर्मित टंकियों में एकत्रित किया जाकर महल की दीवारों में निर्मित पाइप लाइन से भूतल पर निर्मित पानी की टंकियों में संग्रहित किया जाता था। इन टंकियों में एक लाख 95 हजार 500 लीटर वर्षा जल संग्रहित किया जाता था, जो साल भर के लिए महल में रहने वाले लोगों की आवश्यकता को पूरी करता था। वर्तमान में भी 138 साल पुरानी इस वर्षा जल संग्रहण प्रणाली के माध्यम से जल संग्रहण किया जाता है और एक भी बार इसकी मरम्मत की आवश्यकता नहीं पड़ी।
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इस महल की नींव महाराणा सज्जनसिंह के शासनकाल में 18 अगस्त 1883 को रखी गई थी, लेकिन महल का निर्माण कार्य 1898 में महाराणा फतहसिंह के शासनकाल में पूर्ण हुआ। फतहसिंह ने सन् 1900 में यहां एक शिकारबाड़ी का निर्माण भी करवाया, जिसे महल की पश्चिम दिशा में देखा जा सकता है। सज्जनगढ़ के जनाना और मर्दाना महल में कलात्मक स्तम्भ, सभामण्डल, झरोखे और तहखानों में मेवाड़ की समृद्ध स्थापत्यकला के दर्शन होते हैं।
महल में मेवाड़ का गौरवशाली इतिहास समेटे सुंदर बाग-बगीचे, फव्वारे और होद पर्यटकों के पसंदीदा सेल्फी पॉइंट बन गए हैं। महल में प्रवेश करते ही महाराणा सज्जनसिंह का मुजस्समा मानो मेवाड़ के गौरवशाली इतिहास का निगहबान हो। उसी के चारों और दीवारों पर टंगी पेंटिंग्स में मुगलकालीऩ चित्रशैली का असर नजर आता है। वन्य जीवों और पर्यावरण से जुड़ी कई रोचक जानकारियां भी यहां प्रदर्शित की गई है, जो बालमन की जिज्ञासाओं को नई उड़ान देती हैं। राजस्थान सरकार के पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग ने इस क्षेत्र को संरक्षित क्षेत्र घोषित कर रखा है।
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इतिहासकार श्रीकृष्ण जुगनू सज्जनगढ़ को झीलों की नगरी का मुकुट कहते हैं। जुगनू बताते हैं, सज्जनगढ़ मेवाड़ में बनने वाला आखिरी किला था। इस किले के निर्माण में भील महिलाओं का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। किले के निर्माण के समय बांसदरा की पहाड़ी पर भील महिलाएं चमडे़ के थैलों में पानी भर-भरकर पहुंचाती थी। निर्माण कार्य में जुटे श्रमिकों की हाजिरी का रजिस्टर भी चलता था। एक तरह से आधुनिक मस्टरोल का पहला प्रयोग भी इसी महल के निर्माण कार्य में हुआ था। रात के समय सज्जनगढ़ झीलों की नगरी के मुकुट की तरह चमकता है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बजट घोषणा के अनुसार वर्तमान में सज्जनगढ़ में जीर्णोद्धार का कार्य प्रगति पर है। लगभग साढे़ चार करोड़ की लागत से जनाना महल सहित महल के विभिन्न हिस्सों को सुरक्षित व संरक्षित करने का कार्य चल रहा है। इसके साथ ही यहां पर्यटकों के लिए आधुनिक सुविधाओं का विकास भी किया जा रहा है। आने वाले समय में सज्जनगढ़ का स्वरूप और निखरा हुआ नजर आएगा।
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उदयपुर आने वाले पर्यटकों को सज्जनगढ़ की प्राकृतिक आबोहवा खूब लुभाती है। उप-वन संरक्षक अजीत उचोई ने बताया कि राज्य सरकार के निर्देशानुसार सज्जनगढ़ महल और बायोलॉजिकल पार्क को पर्यटकों के लिए खोला गया है। इस साल 8 जून से 2 अगस्त तक की अवधि में 44 हजार 242 पर्यटक आए हैं और कुल 64 लाख 90 हजार 269 रूपये का राजस्व प्राप्त हुआ है।
उदयपुर शहर से लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर अरावली की बांसदरा पहाड़ी पर स्थित सज्जनगढ़ में 1983 में आई जेम्स बॉण्ड सीरीज की मशहूर हॉलीवुड फिल्म ऑक्टोपसी के सीन भी फिल्माए गए। फिल्म में खलनायक अफगान राजकुमार कमाल खान के निवास के रूप में दिखाया गया है। गाइड, कुंदन, जिस देश में गंगा रहता है, जय चित्तौड़ सहित कई हिंदी फिल्मों और मशहूर गीतों व म्यूजिक एल्बम की शूटिंग भी यहां हुई है।
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