महासमुंद- जिले के ख्यातिप्राप्त लघुकथाकार महेश राजा की लघु कथाए -कफन,एक अधूरी प्रेम कथा,चिंता,जन्म तिथि व् पेट और प्रार्थना सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है ।
कफन-माधव की मौत हो गयी।सुबह ज्यादा काम था।कुछ खाया न था।दोपहर को पानी पीया और गिर गया। माधव मजदूरी का काम करता था।सब के साथ छोटी बस्ती में रहता था।उसका कोई न था।कहते है,एक बेटा था ,वो अचानक एकदिन कहीं चला गया ,फिर वापस लौट कर न आया।
सब चर्चा कर रहे थे,अटेक आया होगा?एक बुजुर्ग खोखली हँसी हंसा,-बेटा हम गरीबों की मौत अटेक से नहीं होती।हमें तो भूख मार ड़ालती है।” सबने मिलकर अंतिम सँस्कार करने का तय किया। दो साथी कफन का कपड़ा लाने बाजार गये।एक ने पूछा,-कैसा कपड़ा खरीदें।कोई अच्छा वाला?” दूसरा दुःखी स्वर में बोला,-कैसा भी ले ले।जीते जी एक धोती में जीवन काट दिया।अब मौत के बाद क्या पहनना और ओढ़ना।”
एक अधूरी प्रेम कथा: –
अब कब मिलोगी? कभी भी नहीं। -क्यों? घरवालों ने मेरी सगाई तय कर दी। मेरा क्या होगा?
तुम भी किसी से ब्याह कर लेना। तुम्हारे बिना कैसे जी सकूंगा। जैसे सब जीते है।
-हम पहले ऐसे प्रेमी थोडे ही है,जो नहीं मिल पाते है।हीर रांझा,सोहिनी महिवाल। उसने कहा था,भूल गये।कालेज में पढ़ते थे। वे अलग लोग थे।मैं एक सरल,सीधा सादा। अधिक तर के साथ यही होता है। समय सब ठीक कर देगा।अब जाती हूँ।फिर नहीं मिलूंगी।
चिंता:-
रीमा ने सुबह उठकर देखा भोजन की थाली ज्यों की त्यों ढ़ंकी पड़ी थी।पति देव ने रात को भोजन नहीं किया था। पति अक्सर दौरे पर रहते।देर से आते।रीमा सबको खाना खिला कर गरम भोजन बनाती, केसरोल में रख देती। सुबह पति के उठते ही पूछा तो वे नाराज हो गया,तुम मेरी चिंता मत किया करो।ढ़ेरों काम रहते है।भोजन का क्या?अपनी सेहत का ख्याल रखो।कितनी कमजोर हो गयी हो।
रीमा को पति का इस तरह से पूछना अच्छा लगा।पर,इस बात का बुरा लगा कि वे काम काज के सिलसिले में भोजन का ध्यान नहीं रखते।एक पत्नी को कितना दुःख होता है,जब पति उसके बनाये भोजन को न खाये।परंतु यह तो रोज का ही है। रीमा ने सिर को झटका ,यह उनका जीवन है।ज्यादा व्यवधान पैदा करना उसकी प्रवृत्ति में नहीं है।अब वह पति के लिये गरम पानी और चाय बनाने में जुट गयी।
जन्म तिथि
अंग्रेजी माह अनुसार बेटे का अवतरण दिवस तीन अक्तूबर पड़ता है। एक कवि मित्र घर आये।बेटे को आशीर्वाद देते हुए बोले,बच गये बेटा।एक दिन पहले जन्म लेते तो आजीवन दुःखी रहते।”
पेट और प्रार्थना
आठ नौ वर्षीय बच्ची ने इधर-उधर देखा।चौक वाले मंदिर पर कोई न था। धीरे से भीतर गयी।भगवान जी को नमन किया।थोड़ी देर पहले ही एक भक्त केला और मिठाईयां रख कर गया था।
बच्ची ने दो केले और एक मिठाई उठाकर भगवान जी से प्रार्थना की,-“मुझे माफ करना भगवन।घर पर माँ बीमार है,दो दिन से काम पर नहीं जा सकी।छोटा भूखा है।आपका प्रसाद समझ कर ले जा रही हूँ।” रूककर धीरे से बोली-“एक विनंती है,अगली बार जन्म देना तो बिना पेट के मुझे घरती पर भेजना।जब भूख लगती है न तो पेट बहुत दुःखता है।”
लेखक परिचय
महेश राजा
जन्म:26 फरवरी
शिक्षा:बी.एस.सी.एम.ए. साहित्य.एम.ए.मनोविज्ञान
जनसंपर्क अधिकारी, भारतीय संचार लिमिटेड।
1983से पहले कविता,कहानियाँ लिखी।फिर लघुकथा और लघुव्यंग्य पर कार्य।
दो पुस्तकें1/बगुलाभगत एवम2/नमस्कार प्रजातंत्र प्रकाशित।
कागज की नाव,संकलन प्रकाशनाधीन।
दस साझा संकलन में लघुकथाऐं प्रकाशित
रचनाएं गुजराती, छतीसगढ़ी, पंजाबी, अंग्रेजी,मलयालम और मराठी,उडिय़ा में अनुदित।
पचपन लघुकथाऐं रविशंकर विश्व विद्यालय के शोध प्रबंध में शामिल।
कनाडा से वसुधा में निरंतर प्रकाशन।
भारत की हर छोटी,बड़ी पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन और प्रकाशन।
आकाशवाणी रायपुर और दूरदर्शन से प्रसारण।
पता:वसंत /51,कालेज रोड़।महासमुंद।छत्तीसगढ़।
493445
मो.नं.9425201544
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