Home आलेख महेश राजा की लघुकथा:-साहित्यिक पक्षधरता,तैयारी,पोस्टर युद्ध व् स्वरूचि भोज

महेश राजा की लघुकथा:-साहित्यिक पक्षधरता,तैयारी,पोस्टर युद्ध व् स्वरूचि भोज

वह प्रगतिशील विचारधारा के पक्षधर है।शोषण के खिलाफ ही लिखते थे।अपनी रचनाओं में पूंजीवाद को नकारते थे

महेश राजा की लघुकथा कान्वेंट कल्चर ,टेढ़ी पूँछ वाला कुत्ता ,उदाहरण व् ए.टी.एम

महासमुंद- जिले के ख्यातिप्राप्त लघुकथाकार महेश राजा की लघु कथाए साहित्यिक पक्षधरता,तैयारी,पोस्टर युद्ध व् स्वरूचि भोज सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है । साहित्यिक पक्षधरता-वह प्रगतिशील विचारधारा के पक्षधर है।शोषण के खिलाफ ही लिखते थे।अपनी रचनाओं में पूंजीवाद को नकारते थे। एक रोज मेरे घर पधारे।मैंनै दरवाजे पर उनका स्वागत किया।रिक्शेवाले को उन्होंने दस रूपये का नोट दिया।

रिक्शे वाले ने कहा,साहबजी!महंगाई बहुत बढ गयी है।गरमी भी सखत पड रही है।एक सवारी का यहां तक बीस रूपया होता है,दस और दे दिजिये। इस पर वे नाराज हो गये।गुस्से से काँपने लगे,अरे लूट मचा रखी है।तुम लोगों के लिये हम कितना संधर्ष कर रहे हो जानते हो।

जिला के ख्यातिप्राप्त लघुकथाकार महेश राजा की लघुकथा:- हिँसक, मुक्ति,व्यवहार

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रिक्शेवाले ने सिर से टपक रहे पसीने को गंदे गमछे से पोंछा, अपनी मेहनत का पैसा ही तो मांग रहे है,बाबुजी!इस तरह से हमारा शोषण मत किजिये।दस रूपये दे दिजिये।देर हो रही है। इस बार उनका गुस्सा सांतवे आसमान पहुंच गया।बोले ,मजदूर होकर हम साहित्यकारों से जबान लडाते हो,शोषण की बात करते हो?सीधी तरह से दस रू.लो और चलते बनो।

रिक्शे वाले ने दस रूपये का नोट लौटाते हुए कहा,बाबू जी हम गरीब मजदूर है ,एक दिन भूखे रह लेंगे। उन्होंने दस का नोट वापस जेब मे रख लिया,एक गंदी गाली दी और बडबडाये,सबकी चमडी मोटी हो गयी है,सब सिर पर चढ़ गये है।

तैयारी

वे लगभग भागते हुए घर पहुंचे।आलमारी खंगालने लगे। पत्नी ने पूछा,ए जी,क्या हो गया।क्या ढूंढ रहे हो।
उन्होंने बताया ,कुरता पाजामा और खादी के कपडे। पत्नी ने आश्चर्य से पूछा,आज अचानक।तुम तो यह सब पहनते नहीं।
उन्होंने रहस्यमयी ढंग से मुस्कुराते हुए कहा,अब पहनना होगा।चुनाव की तिथि की घोषणा हो गयी है।अब यह ही काम आयेंगे।पांच साल मे एक बार। हमारी रोजीरोटी का साधन है यह।इस बार मेरी लालबती पक्की।

 बाबू की कार्यशैली से पंचायत सचिव परेशान,संघ ने की संसदीय सचिव से शिकायत

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झटपट निकाल दो ।ड्राईक्लीन करवा लाता हूं।अब चुनाव तक रोज इसकी जरूरत होगी।और भी ढेर सारी तैयारियां करनी है। पत्नी चुप रही।वह जानती थी कि जरूर किसी पार्टी वाले ने ईन्हें आश्वासन दिया होगा कि टिकीट दिलवा देंगे या जीतने पर कोई पद दे देंगे।हर पांच साल मे यही होते चला आया है। पर होता कुछ नहीं. उल्टे जेब से रूपये खर्च होंगे और समय भी। पर वह यह भी जानती थी कि पतिदेव मानेंगे नहीं. और इस मोहपाश मे हमेशा की तरह फंस जायेगे।जैसा कि हर बार आम जनता के साथ होता है।हर चुनाव मे.विकास की बात होती है।पर,प्रतिनिधि चुनाव जीतने के बाद अपने विकास मे लग जाता है।

 पोस्टर युद्ध

अभी अभी टीवी पर न्यूज सुनकर हटा।एक राज्य के दो बड़े शहरों में दो अलग पार्टी वालों ने जगह-जगहपोस्टर लगवाये।विषय यह था कि महामारी के इस कठिन दौर में जन प्रतिनिधि लापता। एक राजनीति में रूचि रखने वाले मित्र से पूछा-” इस तरह आपस में लड़ने से क्या लाभ?यह समय तो एक दूसरे के साथ मिल कर जनसेवा करने का है।जनता पर इन सबका क्या प्रभाव पड़ेगा”

मित्र हँसे-“भाई ,यह पोस्टर युद्ध है।राजनीति में इसका अपना महत्व है।
यह एक शस्त्र की भूमिका निभाता है।आम आदमी थोड़ी देर के लिये विचलित होता है।फिर अपने पेट की खातिर रोजी-रोटी के चक्कर में फँसा रहता है।” “आगे चुनाव में इन बातों का प्रभाव पड़ता होगा न।”-मित्र से फिर पूछा।

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मित्र ने कहा-“देखिये, राजनीति का गणित अलग होता है।हमारे देश की जनता भोली है।वे जल्दी ही सब भूला देती है।और फिर इन महारथियोंँ को जन सामान्य को लुभाने के अनेक तरीके आते है।” थोड़ा रूक कर फिर बोले-“और मजे की बात यह कि ये लोग अपने आलीशान बंगलों में एयरकंडीशनर में बैठ कर हँस हँस कर इसकी समीक्षा बैठक भी करते है।”
आजकल की राजनीति में यह आम बात है।आप भी टीवी पर इसे देखो और भूल जाओ।यही सच है।”

शादी का सीजन चल रहा था। काफी दिनों से घर पर रहकर,घर का खाना खाकर लोग ऊब गये थे।वे एन्जॉय करना चाह रहे थे।फिर आज तो हद हो गयी।चार निमंत्रण एक साथ मिले।आफिस के मित्रों मे हडकंप मच गया ।सारी पार्टियां एक ही रोज है,कहाँ कहांँ जाये।खाने के शौकीन मुंगेरी लाल ने तो यहाँ तक कह दिया कि….एक ही दिन क्यों म. रहे है।अलग अलग दिनों मे रखते तो हर जगह अलग अलग व्यंजन खाने का आनंद आता।

मैंने पूछा,”-अब क्या करोगे?” वह बोले-“पता लगाते है कि किसके यहां अच्छा माल बना है।वहीं पहले चलेंगे।सौ रूपये का लिफाफा देंगे ,तो कुछ तो वसूल करना ही पडेगा न।” मैंने कहा-“यह तो तुम्हारी आदत में शामिल है।,सौ की जगह दो सौ रूपये वसूल नहीं लेते,कोई काम नहीं करते ।तुम्हारी इस रूचि से तो पूरा आफिस परीचित है।”

परिचय

महेश राजा
जन्म:26 फरवरी
शिक्षा:बी.एस.सी.एम.ए. साहित्य.एम.ए.मनोविज्ञान
जनसंपर्क अधिकारी, भारतीय संचार लिमिटेड।
1983से पहले कविता,कहानियाँ लिखी।फिर लघुकथा और लघुव्यंग्य पर कार्य।
दो पुस्तकें1/बगुलाभगत एवम2/नमस्कार प्रजातंत्र प्रकाशित।
कागज की नाव,संकलन प्रकाशनाधीन।
दस साझा संकलन में लघुकथाऐं प्रकाशित
रचनाएं गुजराती, छतीसगढ़ी, पंजाबी, अंग्रेजी,मलयालम और मराठी,उडिय़ा में अनुदित।
पचपन लघुकथाऐं रविशंकर विश्व विद्यालय के शोध प्रबंध में शामिल।
कनाडा से वसुधा में निरंतर प्रकाशन।
भारत की हर छोटी,बड़ी पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन और प्रकाशन।
आकाशवाणी रायपुर और दूरदर्शन से प्रसारण।
पता: महेश राजा वसंत /51,कालेज रोड़।महासमुंद।छत्तीसगढ़।
493445
मो.नं.9425201544

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