महासमुंद- जिले के ख्यातिप्राप्त लघुकथाकार महेश राजा की लघु कथाए “तुम कब आजाद होओगे,तिरंगा, खरी-खरी, परिंदे ” सुधि पाठकों के लिए उपलब्ध है ।
तुम कब आजाद होओगे-आलीशान इमारत।चारों तरह खूब सजावट हो रही थी।नौकर बिरजू सफाई कार्य में व्यस्त था।पास ही उसका छोटा लडका ननकू खड़ा होकर यह सब देख रहा था। कुछ देर बाद उसने बिरजू का हाथ पकड कर पूछा-“,बाबू ,यह सब क्या हो रहा है,कोई शादी ब्याह होने वाला है क्या?” बिरजू ने दिवार से जाला हटाते हुए ,हंँसते हुए कहा-“नहीं रे,कल 15 अगस्त है न।नेताजी से मिलने बड़े -बड़े लोग आयेंगे।खूब खुशियाँ मनायी जायेगी,मिठाइयांँ बाँटी जायेगी।”
ननकू बाल सुलभ मुद्रा मे बोला, -” आज के दिन क्या हुआ था ,बाबू जो कि मिठाई बांँटी जायेगी? बिरजू ने अपनी समझ से 15 अगस्त और 26 जनवरी को गड्ड मड्ड करते हुए बताया-“,बेटा इसी दिन तो हमारा देश आजाद हुआ था।अंँग्रेज भारत छोड़ कर भागे थे। -“बाबू यह आजादी क्या होती है? ननकू की पीली पड़ी आंँखों में उत्सुकता थी।
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-आजादी के माने स्वतंँत्रता, किसी का किसी पर दबाव नहीं।सबको अपने ढ़ंग से जीने का पूरा हक होता है” बिरजू बोला।
नन्हें ननकू की आंँखो में बापू का पसीने से भीगा तरबतर शरीर तैर आया। सुबह पांँच बजे से रात को दस बजे तक उसने अपने बाबू को बैल की तरह काम करते हुए ही देखा था।
एक मिनट का भी चैन नहीं।उस पर नेताजी की डांटफटकार अलग। मालकिन की गालियाँ।और खाने मे बची खुची झूठन।उसके मुंँह से एकाएक निकल पडा-“तो बाबू ,तुम कब आजाद होओगे?”बिरजू चुप रहा। वह असहाय भाव से अपना काम करता रहा।उसके बेटे के इस सवाल का जवाब नहीं था।
तिरंगा
-तिरंगा ले लो दादा जी।दो और तीन रुपये में। वे चौंके पलट कर देखा,एक आठ वर्षीय बालक सामान्य,साफ सुथरे कपड़ों में ढ़ेर सारे छोटे-बड़े तिरंगे लिये आवाज लगा रहा था। उनका नित्य नियम सुबह उठकर नहा-धो कर वे चौराहे वाले हनुमानजी मंदिर आते दर्शन करते फिर सामने बने बाल उद्धान की सैर करते।नन्हें नन्हें बच्चों को अपने माता -पिता या पालक के साथ हँसते-खेलते देखना अच्छा लगता।उन्हें अपने पोते की याद आ जाती।
पास पहुंच कर पूछा-पढ़ते लिखते नहीं हो?उतर मिला- जी चौथी कक्षा में हूं।बीमारी की वजह से शालाऐं बंद है। उन्होंने पूछना चाहा कि इस तरह से झंड़े बेच रहे हो? इसका अपमान नहीं होगा? वह क्या समझा पता नहीं पर,स्वगत बुदबुदाया,दीदी ने बताया है कि लोग तो देश को बेच रहे है,मैं तो पेट की खातिर….।
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पता चला,पिता चल बसे।माँ सिलाई बुनाई का कार्य करती है।इन दिनों बीमार है।पडोस की दीदी ने यह दिये है। उन्हों ने पचास रूपये के तिरंगे लिये।बालक खुश हो गया।वे आगे बढ़े,बगीचे में ढ़ेर सारे बच्चे आये हुए थे,उन सबको एक एक तिरंगा देकर समझाया,यह हमारे देश की शान है।इसे गिरने मत देना।बच्चों ने हामी भरी।वे खुश हुए। दूर से देखा तो वह बालक उनकी तरफ स्नेह भरी नजरों से देख रहा था।उन्होंने हाथ उठा कर उसे विदाई दी।
खरी-खरी
एक चैनल के स्टुडियो में लाइव टेलीकास्ट चल रहा था।विषय था,सरकार का फैसला शराब दुकान को खोलने बाबत,उचित या अनुचित। पक्ष-विपक्ष के नेताओं के अलावा वरिष्ठ पत्रकार,एक धर्म गुरु साथ ही एक प्रसिद्ध राजनैतिक विशलेष्क महोदय को भी आमंत्रित किया गया है।वे मानव मन के भी जानकार थे।
डिबेट सफल रही।खासकर विश्लेषक महोदय ने शराब की बुराइयों का जोरदार वर्णन किया।सब उनकी वाक प्रतिभा का लोहा मान गये। काफी आदि की औपचारिकता के बाद विश्लेषक महोदय रवाना हुए।बाहर स्टुडियो के गेट पर एक पुराने मीडिया कर्मी से उनकी मुलाकात हो गयी। मीडिया कर्मी ने विश्लेषक महोदय को साधुवाद देते हुए कहा-“आज आपने खूब खरी खरी सुनायी।सबकी बोलती बंँद हो गयी।” विश्लेषक महोदय ने मीडिया कर्मी के कंँधे पर हाथ रखा,-वो तो भाई जोश जोश में सब कह गया।”
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फिर धीमे स्वर में बोले-“राज की बात बताऊँ।बिना हलक में उतारे ज्ञान की बात निकलती ही नहीं।सच कहूँ,एक माह से ज्यादा हो गया था,गला तर किये हुये।घर में एक बूँद भी न थी।जैसे ही सरकार ने खोलने का एलान किया, वैसे ही सहायक को भेज कर चार पांच अच्छे ब्रांड की बाटल मंगवा कर रख ली।जाने कब बंद करने का आदेश आ जाये।”
थोडी़ देर रूकने के बाद बोले,”–चलता हूँ।रूचि रखते हो तो शाम को बंगले पर आ जाना।तुम्हारी भाभी प्याज के पकौड़े बढ़िया बनाती है।”फिर फुसफसाते हुए बोले,-” मिल बैंठेगे दो यार…पर हाँ सोशल डिस्टेंशन मेंटेन करते हुए।फिर ढ़ेर सारी बातें करेंगे,समाज की,शासन की और शराब की।” उन्होंने जोर का ठहाका लगाया और बढ़ गये अपनी कार की तरफ।
परिंदे-
अचानक अरूपा का फोन आया तो अन्विति आश्चर्य मिश्रित भाव से उछल पड़ी। वे दोनों कालेज के दिनों की सहेलियाँ थी।फिर विवाह और बाद में बच्चे हो गये।धीरे धीरे सम्पर्क टूटता गया। औपचारिक बातों के दौरान अरूपा ने बताया कि बेटी डाक्टर है,और वेलसेट है।बेटा एक्सपोर्ट इंपोर्ट बिजनेस में है,बहु हाउस वाइफ है,एक पोता भी है।
अचानक अरूपा के स्वर में तल्खी आ गयी।पूछने पर बोली,-“आज बहु ने पहली बार उनका विरोध किया।सामने से जवाब दिया।” अन्विति समझ गयी।वह पढ़ीलिखी सफल गृहिणी थी।आजकल तो लगभग हर घर की यही कहानी है।सांत्वना आदि देकर पूछा तो अरूपा खुल कर बोली-“अब तक तो सब ठीक चला।पर,आज बहु कह रही थी,-‘बारह बरसों से आपको सुनते चली आ रही हूँ, अब नहीं… अब मैं भी कहूंगी.. मेरा बच्चा भी अब बड़ा हो गया है।इस घर पर मेरा भी बराबरी का हक है’।बेटा भी आजकल बहु का होकर रह गया है।शिकायत करो तो हँस कर टाल जाता है।शायद अब वे अलग रहना चाहते है।पर,मेरे मोह का क्या करूं,मेरा तो इकलौता बेटा है।उससे अलग कैसे रह पाऊंगी।”
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अन्विति ने अपनी बात कही कि मेरे भी दोबेटे है,बहुएं है,एक प्यारा सा पोता है।वे अपनी अपनी जाब के सिलसिले में बड़े शहरों में रच-बस गये है।हम दोनों साल में दो बार उन सबके यहाँ जाते है।साल में दो तीन बार वे सब यहाँ आजाते है।और पारिवारिक कार्यक्रमों में तब एक साथ आ जुटते है।कोई दखल नहीं।सब स्वतंत्र,समझदार।ऐसे में प्रेम भी बना रहता है।
आगे वे बोली-“शादी से पहले तुम ही कहती थी न कि सबको अपने ढ़ंग से जीने का हक है।बस यही बात फालो करे।साथ रहो तो प्रेमपूर्वक और अलग रहो तो भी मतभेद रहे पर,मनभेद नहीं हो।”
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” -सारे मोह त्याग दो।यही मोह जीवन में हमें बहुत तकलीफ़ देता है।”” -एक बात और बहु को बेटी समझ कर व्यवहार करो,फिर देखो वह तुम्हारे कदमों में आ बिछेगी।”-“अरुपा,बच्चे अब बड़े है गये है, उन्हें अपनी उड़ान उड़ने दो।नहीं तो आगे पछतावे के सिवाय कुछ भी हाथ नहीं आयेगा।” अरुपा ने फोन रख दिया था।
अन्विति सोच रही थी कि निजी संबंधों में हमारे “ईगो” ही आड़े आते है।वरना प्यार और स्नेह के बीच पारस्परिक मतभेद के लिये तो जगह ही शेष नहीं रह जाती।वे अरूपा को जानती थी।मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि उनके बीच सब ठीक हो जाये।।
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