मंदसौर-लाख की चूड़ियां बरसों से मंदसौर की पहचान है। नयापुरा रोड बरगुंडा गली के कई परिवार 3 पीढ़ियों से चूड़ी निर्माण में लगे हैं। इस माध्यम से वे ना केवल आत्मनिर्भर हो चुके बल्कि कई सहयोगियों को भी रोजगार दिला रहे। मंदसौर में लाख से बनी चूड़ियों की डिमांड मालवांचल समेत राजस्थान, गुजरात जैसे कई राज्यों में है। इसका रॉ मटेरियल अहमदाबाद और रायपुर से आता है। वैसे लाख की इन चूड़ियों का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता के वक्त से माना जाता है और उस दौर में मोहन जोदड़ो (सिंध, पाकिस्तान) की खुदाई से नृत्य करती युवती (डांसिंग गर्ल) की जो मूर्ति मिली थी, उसने भी हाथ चूड़ियां पहन रखी हैं। इस प्रकार इन चूड़ियों का इतिहास हमारी सभ्यता में हजारों वर्ष पुराना है।
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कलेक्टर मनोज पुष्प, सीईओ जिला पंचायत ऋषव गुप्ता के मार्गदर्शन में इन उत्पादों को बढ़ाने पर काम किया जा रहा। उल्लेखनीय है कि मंदसौर विधायक यशपालसिंह सिसौदिया ने भी पिछले दिनों मेहनतकश इन परिवार के उत्पादों को एक मंच देने की बात कही थी, मंदसौर की यही पहचान अब निरंतर विस्तार ले रही है। मंदसौर की बात करें तो चूड़ी निर्माण कार्य में 100 से अधिक परिवार संलग्न हैं। जो न केवल शहर में विक्रय करते बल्कि अंचल के मल्हारगढ़, भानपुरा, गरोठ, दलौदा, सुवासरा, शामगढ़ तहसीलों व आसपास के जिलों व राज्यों में भी व्यापार को बढ़ावा दे रहे हैं।
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चूड़ी निर्माण करने वाले धनराज लक्षकार कहते हैं। समाज का एक बड़ा तबका चूड़ी निर्माण कार्य से जुड़ा है। इसके अलावा कई नौकरीपेशा भी हैं। समाज के ही पूनमचंद पिता मन्नालाल की तो अपनी अलग पहचान है, वे धोती-कुर्ता, काली टोपी पहनकर मंदसौर के गली-मोहल्लों में चूड़ी की पेटी लेकर घूमा करते थे। समाज जन लाख की सामग्री बाजार से लाते और पक्का रंग लाकर निर्माण प्रक्रिया में जुटे रहते हैं। हालांकि समय के साथ निर्माण सामग्री में आने वाला कोयला व सह उत्पाद भी महंगे हुए हैं, लेकिन आज भी इसकी खरीदारी बढ़ती जा रही है।
हर मांगलिक कार्य में लाख की चूड़ियां पहनने की परंपरा प्राचीन समय से ही रही है। जैसे करवाचौथ, गणगौर, हरतालिका तीज, माताजी पूजन इत्यादी। लाख की इन चूड़ियों की खासियत है कि इनकी बनावट मन को लुभाती है और इनका आकर्षक कलर, डिजाइन व्यक्ति को इनकी ओर आकर्षित करती हैं। यही वजह है कि समय के साथ लाख की चूड़ी के इस व्यापार में बहुत अधिक प्रतिस्पर्धा भी देखने को मिल रही है।
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वेद, महाभारत, शिवपुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी है लाख का उल्लेख मिलता है। लाख की चूड़ियां बनाना ऐसी विधा है जिसके निर्माण में पुरुष और महिलाओं दोनों की जरुरत होती है। आज भी लाख की चूड़ियां बनाने में सदियों पुरानी तकनीक का ही उपयोग हो रहा। इस तरह मंदसौर में कई ऐसे परिवार हैं जो लाख की चूड़ियों की निर्माण विधि, व्यवसाय को जीवित रखे हुए हैं और इस उत्पाद को मंदसौर की पहचान बनाने में सरकार की आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश योजना एवं प्रशासन का प्रयास सराहनीय भूमिका निर्वहन कर रहा है
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