खल्लारी से तारेश साहू- ऐतिहासिक धार्मिक दैवीय माता तीर्थ स्थल खल्लारी में विभिन्न गतिविधियों सहित धार्मिक, सामाजिक, राजनीति, गीत, संगीत जैसे विभिन्न क्षेत्रों में रुचि रखने वालों की कमी नहीं है। इसी तरह से संगीत के क्षेत्र में भी रुचि रखने वाले सूरदास मंगल सिंग यादव (35) मुख से गीत गायन व ईको साउंड की संगीत कला से हर कोई आनंदित हो जाता है। गांव में कई युवा उनके फैन हैं। जिस गली-गाँव से सूरदास निकल जाए उस गली-मोहल्ला के लोग उसके मुख से गीत व ईको साउंड सुनने की फरमाइश जरुर करते हैं।
खल्लारी के वार्ड क्रमांक-5 निवासी बिसहत यादव एवं चैती बाई यादव के सुपुत्र सूरदास मंगल सिंग यादव की आंखों में जन्म से ही रोशनी नहीं है। वह स्व प्रेरित होकर गायक बने है। बचपन में जब उसके पास ढोलक नहीं था, तो वह घर के बर्तनों को बजा-बजाकर गाना बजाना सीख गए,साथ में ईको साउंड भी आवाज निकालने की महारत भी हासिल कर लिया है । गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाला मंगल सिंग यादव की यह कला उसके स्वयं के खर्च उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
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मंगलसिंग यादव के मुख से प्रतिदिन माता के द्वार के सीढी में जसगीतों की आवाज गुंजती है। वे छत्तीसगढी, हिन्दी जस गीत और दर्शनार्थीयों के मांग के अनुरूप विभिन्न गीतों का प्रस्तुति देते हैं। जिससे खल्लारी पहुंचने वाले दर्शनार्थीयों का माता दर्शन के साथ मनोरंजन भी हो जाता है और श्रधालुओं से कुछ पैसा भी मिल जाता है,जिससे उसका जीवकोपार्जन होता है।
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सूरदास मंगलसिंग यादव ने बताया कि आंखों में रोशनी नहीं होने के वजह से उन्होंने अब तक शादी नहीं की है। टीवी, रेडियो में छत्तीसगढ़ी व हिन्दी गीतों को सुन-सुनकर गाना और ईको साउंड निकालना सिख गए। संगीत कला के क्षेत्र में जस सम्राट दुकालू यादव भी उन्हें बेहद पसंद है।
इसलिए उन से भी वह मिलना चाहते हैं। उनके साथ गाना गाने का मौका मिला तो वह गीत गाना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें छत्तीसगढ़ी व हिन्दी फिल्मों के दो-तीन सौ गीत गाने याद हैं। पांच-दस गीत खुद बनाए हैं। जिसे वह रोज गाता भी है। मंगलसिंग यादव स्टुडियो में अपने गीतों की रिकार्डिंग कराना चाहता है, लेकिन गरीबी के चलते यह नहीं कर पा रहा है।
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